मूवी रिव्यू: महाराजा.. जंगल में मोर नाचा किसने देखा ? और, जिसने देखा उसी के उड़े होश

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जंगल में मोर नाचा किसने देखा ? और, जिसने देखा उसी के होश ही उड़ गये। ये बात महाराजा फ़िल्म पर सही साबित होती है। Quentin Tarantino स्टाइल एक्शन फ़िल्मिंग और कुछ कुछ David Lynch स्टाइल सस्पेंस और हाउंटिंग म्यूजिक बिल्डिंग आपको मजबूत गोंद की तरह आपकी सीट से चिपका देगी।
चित्र साभार – सोशल मीडिया
निथिलान स्वामीनाथन लिखित और निर्देशित ये साधारण कहानी शुरुआत के 20 मिनट में ही असाधारण हो जाती है। विजय सेथुपति, अनुराग कश्यप, भारतीराजा इन तीनों ने इस फ़िल्म को बड़े ही स्मार्ट तरीके से बांध रखा है। 
स्क्रीन प्ले की डार्क ह्यूमर टाइप राइटिंग, सिनेमेटोग्राफ़ी और एडिटिंग सभी एक दूसरे को कॉम्प्लिमेंट करते हुए आगे बढ़ते हैं और इस कहानी को एक पल के लिये हुई स्लो नहीं होने देते है, यही महाराजा की खासियत है। जिसकी ज़रूरत हमें हिन्दी सिनेमा में भी है। 
(चित्र साभार – सोशल मीडिया) निथिलन स्वामीनाथन- विजयसेधूपति
निथिलन स्वामीनाथन ने बड़े मज़ेदार तरीक़े से छोटे से छोटे एलिमेंट का ध्यान रखते हुए उसे सीरियस और इंपोर्टेंट बनाया है, चाहे वो एक कचरे का डिब्बा हो या किसी के पीठ पर कान। “पीठ पर कान” क्यों चौंक गए ना ? (अगर बंदर के मुँह वाले बैग को समझना है तो निथिलन स्वामीनाथन की पहली फ़िल्म Kurangu Bommai देखिए, मज़ेदार है) निथिलन स्वामीनाथन ने इन्ही सबका ध्यान रखते हुए इस कहानी को सटीकता से साधा है। किरदारों का सहजता के साथ एक दूसरे से असहज हो जाना महाराजा में बखूबी दिखता है। टेल ट्विस्टिंग के साथ महाराजा स्लोबर्नर की तरह आगे बढ़े हुए हमारे दिमाग़ में कब कब्जा कर लेती है इसका हमें पता ही नहीं चलता। 
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ये एक अच्छी बात है कि निथिलन स्वामीनाथन अपने ही स्टाइल का सिनेमा क्रिएट कर उसमें सफल भी हो रहे है। उनकी अपने काम के प्रति ईमानदारी पूरी तरह से महाराजा में झलक रही है। सबसे अच्छी बात है कि अनुराग कश्यप जैसे एक्सपीरियंस फ़िल्म मेकर भी ऐसी फ़िल्मों को सपोर्ट कर रहें है। हिन्दी सिनेमा के लिए भी कुछ इस तरह की उम्मीदे हैं पर उसमें अभी तक सिर्फ़ सुजॉय घोष (कहानी) और श्रीराम राघवन (अंधाधुन) कामयाब हुए हैं, बाक़ियों के लिए अभी बंबई थोड़ा दूर ही है। 
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महाराजा एक सधी हुई फिल्म है, सीधे मुद्दे की बात करते हुए आपको “aww” वाले जोन में लाकर रख देगी। किरदार कैसे अपना पाला  बदलते हुए अपने ही जाल में फँसते जाते है इसमें बखूबी दिखाया है, क्लाइमेक्स को भी स्मार्टली बुना गया है। कुल मिलाकर दर्शकों को अंत मज़ा आएगा। विजय सेथुपति की पचासवीं फिल्म है पर परफॉर्मेंस एकदम नंबर वन है – टॉप क्लास। आपको जल्द से जल्द देख ही लेनी चाहिए, महाराजा फिल्म लवर और फ़िल्म मेकर्स दोनों को देखनी चाहिए। और हाँ, हालीवुड के शौकीन है और इस तरह की साइकोलॉजिकल फ़िल्म पसंद करते है तो डेविड लिंच की Mulholland Drive, Seven, The Lost Highway और एक्शन के लिये Kill Bill, Jackie Brown का भी आपको लुफ्त उठाना चाहिए।  
मज़ा आएगा।  
(लेखक पंद्रह साल से फ़िल्म विधा से जुड़े हुए हैं और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्मों का लगातार बारीकी से अध्यन कर रहें हैं। फ़िल्म निर्माण संबंधित सभी विषयों पर लेखक अपने अभी तक  के फ़िल्म निर्माण के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए सिनेमाजगत पर लिखते रहते है। लेखक की सिनेमा संबंधित विषयों और सिनेमाई इतिहास पर भी प्रासंगिक पकड़ है)
किसी भी प्रकार की सिनेमा संबंधित जानकारी के लिए आप tarunkash@gmail.com पर लेखक से संपर्क कर सकते हैं।

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