शोले: 50 साल बाद भी कायम है भारतीय सिनेमा का ‘गब्बर’
15 अगस्त 2025 का दिन भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक और सुनहरा पन्ना जोड़ने वाला है। इस स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की सबसे प्रतिष्ठित और आइकॉनिक फिल्मों में से एक शोले अपने 50 साल पूरे कर रही है। 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई यह फिल्म केवल एक सिनेमाई कृति नहीं, बल्कि भारतीय पॉप कल्चर का स्थायी हिस्सा बन चुकी है।
(बजट से लेकर बॉक्स ऑफिस तक का सफर)….“Curtsy & credit: Social Media”
रमेश सिप्पी के निर्देशन और सलीम-जावेद की जोड़ी की दमदार कहानी के साथ शोले को महज़ 3 करोड़ रुपये के बजट में बनाया गया था। उस दौर के हिसाब से यह एक बड़ी रकम थी, लेकिन फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 35 करोड़ रुपये की कमाई करके इतिहास रच दिया। यह अपने बजट का दस गुना से भी ज्यादा था, जो 70 के दशक में किसी भी फिल्म के लिए असंभव सा कारनामा माना जाता था।
शोले की कमाई के आंकड़े जितने प्रभावशाली हैं, उतना ही इसकी सिनेमाई यात्रा भी। यह फिल्म लगातार पांच साल यानी लगभग 2000 दिनों तक थिएटरों में चलती रही। 70 के दशक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनने के साथ ही इसने मुगल-ए-आज़म जैसे दिग्गज रिकॉर्डधारी को भी पीछे छोड़ दिया।
(स्टार कास्ट और फीस का दिलचस्प किस्सा)….“Curtsy & credit: Social Media”
फिल्म की स्टार कास्ट उतनी ही दमदार थी जितनी इसकी कहानी। वीरू के किरदार में धर्मेंद्र को 1.5 लाख रुपये की सबसे अधिक फीस मिली, जबकि ठाकुर बलदेव सिंह के रूप में संजीव कुमार को 1.25 लाख रुपये दिए गए। अमिताभ बच्चन को ‘जय’ के किरदार के लिए 1 लाख रुपये, बसंती बनी हेमा मालिनी को 75 हजार रुपये, और गब्बर सिंह के रूप में अमजद खान को 65 हजार रुपये मिले।
जया बच्चन (राधा) को 35 हजार रुपये, सांभा बने मैक मोहन को 12 हजार, कालिया के रूप में विजू खोटे को 10 हजार और इमाम साहब के रोल में ए.के. हंगल को 8 हजार रुपये दिए गए। पूरी स्टार कास्ट की फीस मात्र 4 लाख 53 हजार रुपये में निपट गई थी।
सबसे अनोखा किस्सा अभिनेता सचिन पिलगांवकर का है, जिन्हें फिल्म में काम के बदले पैसे नहीं, बल्कि एक फ्रिज बतौर फीस दिया गया था। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि 70 के दशक में फ्रिज मिलना बड़ी बात थी क्योंकि उस समय बहुत कम घरों में फ्रिज होता था।
(गब्बर का जन्म और डायलॉग्स का जादू)….“Curtsy & credit: Social Media”
‘अरे ओ सांभा’, ‘कितने आदमी थे?’, ‘जो डर गया, समझो मर गया’—ये संवाद आज भी उतनी ही शिद्दत से याद किए जाते हैं जितने 1975 में। गब्बर सिंह का किरदार निभाने वाले अमजद खान उस समय इंडस्ट्री में नए थे, लेकिन इस एक रोल ने उन्हें अमर बना दिया। दिलचस्प बात यह है कि शुरुआत में गब्बर के लिए डैनी डेंजोंग्पा का नाम तय था, लेकिन उनकी व्यस्तता के कारण यह मौका अमजद खान को मिला, और उन्होंने इसे यादगार बना दिया।
(शूटिंग के रोचक किस्से)….“Curtsy & credit: Social Media”
शोले की शूटिंग मुख्य रूप से बेंगलुरु के पास रामनगर में हुई थी, जिसे बाद में ‘शोले हिल्स’ के नाम से जाना जाने लगा। यहां की चट्टानी लोकेशन ने फिल्म को एक अलग ही विजुअल पहचान दी। कहा जाता है कि रमेश सिप्पी ने फिल्म के एक्शन सीन के लिए विदेशी फिल्मों से प्रेरणा ली थी, लेकिन भारतीय भावनाओं के साथ उन्हें पेश किया।
धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की ऑफ-स्क्रीन कहानी भी इस फिल्म के दौरान चर्चा में रही। माना जाता है कि धर्मेंद्र, हेमा मालिनी के साथ अधिक समय बिताने के लिए शूटिंग में रीटेक्स जानबूझकर बढ़ा देते थे। ठाकुर के रोल में संजीव कुमार ने भी अपनी गंभीर अभिनय शैली से किरदार में गहराई भर दी।
(रिकॉर्ड और विरासत)….“Curtsy & credit: Social Media”
शोले सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा का मानक बन गई। इसने बॉबी, मुकद्दर का सिकंदर, रोटी कपड़ा और मकान, अमर अकबर एंथनी जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों को भी कमाई में पीछे छोड़ दिया। फिल्म की एडिटिंग, बैकग्राउंड म्यूजिक, और आर.डी. बर्मन के गाने (‘ये दोस्ती’, ‘महबूबा महबूबा’) आज भी क्लासिक माने जाते हैं।
फिल्म के 50 साल बाद भी इसके किरदार, संवाद और गाने नई पीढ़ी तक पहुंच रहे हैं। यूट्यूब, टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया पर इसके सीन और मीम्स वायरल होते रहते हैं। शोले आज भी फिल्म स्कूलों में कहानी कहने, कैरेक्टर बिल्डिंग और स्क्रीनप्ले के बेहतरीन उदाहरण के तौर पर पढ़ाई जाती है।
शोले का 50 साल पूरा होना केवल एक फिल्म की सालगिरह नहीं है, बल्कि भारतीय सिनेमा की उस अदम्य भावना का उत्सव है जिसने सीमित संसाधनों के बावजूद वैश्विक मानक स्थापित किए। यह फिल्म हर दौर में प्रासंगिक रही है और आने वाले समय में भी दर्शकों को उतना ही मंत्रमुग्ध करती रहेगी, जितना उसने 1975 में किया था।