विकासनगर: जौनसार-बावर में धूमधाम से मनाया गया महासू देवता का जागड़ा पर्व, हजारों श्रद्धालु पहुंचे

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विकासनगर: जौनसार-बावर में धूमधाम से मनाया गया महासू देवता का जागड़ा पर्व, हजारों श्रद्धालु पहुंचे

विकासनगर। जौनसार-बावर क्षेत्र में आस्था और लोक संस्कृति का अद्वितीय पर्व महासू देवता का जागड़ा हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। हरतालिका तीज पर देवता का रात्रि जागरण और गणेश चतुर्दशी पर देव-डोली का पवित्र स्नान इस पर्व की प्रमुख परंपरा है। इस बार भी दसऊ गांव में छत्रधारी चालदा महाराज के देव चिह्नों और सिंहासन का स्नान गेव पानी (बावड़ी) में कराया गया। इस अवसर पर महासू महाराज के जयकारों से पूरा क्षेत्र भक्तिमय हो उठा।

सदियों पुरानी परंपरा

महासू महाराज को जौनसार-बावर क्षेत्र के लोग अपने इष्ट देव के रूप में पूजते हैं। भाद्रपद मास में मनाया जाने वाला यह पर्व न केवल आस्था का प्रतीक है बल्कि सामुदायिक एकता, लोक परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत उदाहरण भी है। महासू देवता के चार भाई माने जाते हैं— बोठा महासू महाराज (हनोल), बासिक महाराज (मैंद्रथ), पवासी महाराज (थड़ियार) और छत्रधारी चालदा महाराज, जो प्रवास यात्रा पर रहते हैं।

दसऊ गांव में भव्य आयोजन

इस बार चालदा महासू महाराज दसऊ गांव में प्रवास पर हैं। मंगलवार रात (26 अगस्त) को हरियाली पर्व पर हजारों श्रद्धालुओं ने पूरी रात भजन-कीर्तन किए। इसके बाद बुधवार (27 अगस्त) को निर्धारित समय पर मंदिर से देव चिह्न, डोरियां और सिंहासन विधिविधान से बाहर निकाले गए। परंपरा अनुसार देव सिंहासन को गांव से थोड़ी दूरी पर स्थित महाराज का पानी (बावड़ी) तक ले जाया गया, जहां खतपट्टी और आस-पास के 15 गांवों के प्रतिनिधियों ने मिलकर देवता का स्नान कराया।

उमड़ी भक्तों की भीड़

छत्रधारी चालदा महासू मंदिर समिति के सदस्य रणवीर शर्मा के अनुसार,

“यह चालदा महाराज के प्रवास का दसऊ गांव में तीसरा जागड़ा है और संभवतः अंतिम भी। इसलिए इस बार श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। बीती रात हरियाली पर्व पर 7 हजार से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए, जबकि आज करीब 8 से 10 हजार लोग पहुंचे।”

उन्होंने बताया कि परंपरा अनुसार डोरिया (देव प्रतीक) को सियाणा लोग अपने सिर पर लेकर जाते हैं और अपने हाथों से देव सिंहासन का पवित्र स्नान कराते हैं।

अन्य स्थानों पर भी पर्व का आयोजन

दसऊ के अलावा हनोल महासू मंदिर और थैना महासू मंदिर में भी जागड़ा पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। पूरे क्षेत्र में दो दिनों तक चले इस धार्मिक आयोजन ने जनमानस को आस्था और संस्कृति की डोर में बांध दिया।


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