उत्तराखंड में पशुओं की 34 दवाओं पर प्रतिबंध, केंद्र सरकार के आदेश के बाद बड़ा कदम
देहरादून, 12 अक्टूबर:
केंद्र सरकार के आदेश के बाद उत्तराखंड में पशुओं को दी जाने वाली 34 दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसमें 15 एंटीबायोटिक, 18 एंटीवायरल और एक संक्रमणरोधी दवा शामिल है। राज्य के खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने इस संबंध में आधिकारिक आदेश जारी कर दिया है।
यह निर्णय न सिर्फ पशु स्वास्थ्य से जुड़ा है, बल्कि मानव स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (Antimicrobial Resistance – AMR) की गंभीर चुनौती से निपटने के लिए भी अहम माना जा रहा है।
केंद्र सरकार का आदेश और राज्य की कार्रवाई
उत्तराखंड के ड्रग कंट्रोलर एवं एफडीए के अपर आयुक्त ताजबर सिंह जग्गी ने बताया कि केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 23 सितंबर 2025 को इस संबंध में आदेश जारी किया था। इसके बाद राज्य स्तर पर इन दवाओं के आयात, निर्माण, बिक्री और वितरण पर रोक लगाने के निर्देश लागू कर दिए गए हैं।
राज्य के सभी औषधि नियंत्रक कार्यालयों को इन दवाओं के स्टॉक की जांच और जब्ती की कार्रवाई शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं।
प्रतिबंधित दवाओं की सूची
एंटीबायोटिक दवाएं (15):
यूरिडो पेनिसिलिन, सेफ्टोबिप्रोल, सेफ्टारोलाइन, साइडरोफोर सेफलोस्पोरिन, कार्बापेनेम्स, पेनेम्स, मोनोबैक्टम, ग्लाइकोपेपटाइड्स, लिपी पेप्टाइड्स, ऑक्साजोलिडिनोन्स, फिडैक्सोमिसिन, प्लाजोमिसिन, ग्लाइसिलसाइक्लिन्स, एरावासाइक्लिन और ओमाडासाइक्लिन।
एंटीवायरल दवाएं (18):
अमैंटाडाइन, बालोक्साविर मार्बॉक्सिल, सेल्गोसिविर, फेविपिराविर, गैलिडेसिविर, लैक्टिमिडोमाइसिन, लैनिनामिवीर, मेथिसाजोन/मेटिसाजोन, मोलनुपिराविर, निटाजोक्सानाइड, ओसेल्टामिविर, पेरामिविर, रिबाविरिन, रिमांटाडाइन, टिजोक्सानाइड, ट्रायजाविरिन, उमिफेनोविर और जानामिवीर।
संक्रमण की दवा (1):
एंटी प्रोटोजॉल्स — निटाजोक्सानाइड।
प्रतिबंध की आवश्यकता क्यों पड़ी?
विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला एंटीबायोटिक और एंटीवायरल रेजिस्टेंस (Antimicrobial Resistance – AMR) को नियंत्रित करने के लिए लिया गया है।
पशुओं में अंधाधुंध एंटीबायोटिक उपयोग के कारण
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दूध, मांस और अंडों में औषधीय अवशेष (Drug Residue) पाए जाते हैं,
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जो बाद में मानव शरीर में जाकर रेजिस्टेंट बैक्टीरिया को बढ़ावा देते हैं,
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और कई सामान्य संक्रमणों पर दवाओं का असर खत्म हो जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी चेतावनी दी है कि यदि एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले वर्षों में यह मानवता के लिए नई महामारी जैसी स्थिति बन सकती है।
भारत में भी ICMR और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) लगातार इस दिशा में सख्त कदम उठाने की सिफारिश कर चुके हैं।
पशुपालन क्षेत्र में दवा दुरुपयोग की समस्या
ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में पशुपालक अक्सर बिना पशु चिकित्सक की सलाह के मानव उपयोग की एंटीबायोटिक दवाएं पशुओं को दे देते हैं।
इनमें से कई दवाएं उच्च श्रेणी की (Critically Important Antibiotics) होती हैं, जिन्हें मानव जीवनरक्षक उपचार में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
इन्हीं कारणों से सरकार ने अब इन दवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है, ताकि पशुओं के माध्यम से मानव शरीर में संक्रमण-प्रतिरोधी बैक्टीरिया का प्रसार रोका जा सके।
केंद्रीय और राज्य स्तर पर निगरानी प्रणाली
सरकार ने दवा विक्रेताओं, पशु चिकित्सालयों और पशुपालन विभागों को भी निर्देश दिए हैं कि वे इन प्रतिबंधित दवाओं की सूची प्रदर्शित करें और किसी भी हालत में इनका उपयोग या बिक्री न करें।
वहीं, एफडीए की टीमों को औचक निरीक्षण (Surprise Inspections) के आदेश दिए गए हैं ताकि प्रतिबंध का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जा सके।
जनता और पशुपालकों के लिए अपील
एफडीए ने पशुपालकों से अपील की है कि वे पशुओं का उपचार केवल पंजीकृत पशु चिकित्सक की सलाह पर ही कराएं और मानव उपयोग की दवाओं को पशुओं को देने से बचें।
पशुपालकों को यह भी सलाह दी गई है कि यदि किसी दवा के बारे में संदेह हो तो नजदीकी पशु चिकित्सालय या एफडीए कार्यालय से संपर्क करें।
राज्य सरकार का लक्ष्य
राज्य सरकार का कहना है कि यह कदम उत्तराखंड को “एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस-फ्री ज़ोन” की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए उठाया गया है।
स्वास्थ्य, पशुपालन और औषधि विभागों के बीच समन्वय से भविष्य में भी ऐसे दवा नियंत्रण उपाय जारी रहेंगे।