गढ़वाल और कुमाऊं के बीच बनेगा नया अध्यात्म सेतु: अब ‘नंदा-सुनंदा परिपथ’ के नाम से जाना जाएगा ऐतिहासिक मार्ग
देहरादून/नैनीताल:
उत्तराखंड सरकार ने राज्य की सांस्कृतिक और धार्मिक एकता को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। सदियों से गढ़वाल और कुमाऊं मंडल को जोड़ने वाले पारंपरिक और ऐतिहासिक मार्ग को अब आधिकारिक तौर पर ‘नंदा-सुनंदा परिपथ’ के नाम से विकसित किया जाएगा। यह परिपथ न केवल पर्यटन को बढ़ावा देगा, बल्कि हिमालय की आराध्य देवी मां नंदा के दोनों रूपों (नंदा और सुनंदा) के प्रति जन-आस्था को एक सूत्र में पिरोएगा।
क्यों खास है यह परिपथ?
उत्तराखंड में मां नंदा को पर्वत पुत्री और लोक चेतना की देवी माना जाता है। नंदा देवी का मायका गढ़वाल माना जाता है, जबकि कुमाऊं में उन्हें विवाहिता (ससुराल पक्ष) के रूप में पूजा जाता है। ‘नंदा-सुनंदा परिपथ’ उन सभी प्राचीन मार्गों को पुनर्जीवित करेगा, जिनका उपयोग श्रद्धालु और स्थानीय निवासी पीढ़ियों से धार्मिक यात्राओं के लिए करते आए हैं।
परिपथ की मुख्य विशेषताएं:
- सांस्कृतिक जुड़ाव: यह मार्ग चमोली (गढ़वाल) से लेकर अल्मोड़ा और नैनीताल (कुमाऊं) तक फैला होगा। यह नंदा राजजात और नंदा देवी महोत्सव के प्रमुख केंद्रों को आपस में जोड़ेगा।
- धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा: सरकार इस परिपथ के किनारे प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार (Restoration) करेगी और वहां ठहरने के लिए ‘होमस्टे’ की सुविधा विकसित करेगी।
- रोजगार के अवसर: इस परिपथ के सक्रिय होने से पहाड़ों के सुदूर गांवों में पर्यटन के जरिए रोजगार बढ़ेगा, जिससे पलायन रोकने में मदद मिलेगी।
ऐतिहासिक संदर्भ और सरकार की योजना
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में घोषणा की है कि इस परिपथ को बुनियादी ढांचा (Infrastructure) के साथ आधुनिक बनाया जाएगा, लेकिन इसकी ऐतिहासिक मौलिकता को बरकरार रखा जाएगा। इस मार्ग पर सूचना पट्ट (Information Boards) लगाए जाएंगे, जो मां नंदा और सुनंदा की लोकगाथाओं और उत्तराखंड की वीरता के इतिहास को दर्शाएंगे।
आध्यात्मिक महत्व:
कुमाऊं में हर साल ‘नंदा-सुनंदा’ महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं गढ़वाल की ‘नंदा राजजात’ को हिमालय का महाकुंभ कहा जाता है। इन दोनों सांस्कृतिक विरासतों को एक ही ‘परिपथ’ के जरिए जोड़ना राज्य की ‘एक उत्तराखंड-श्रेष्ठ उत्तराखंड’ की अवधारणा को साकार करने वाला कदम माना जा रहा है।
