उत्तराखंड में फायर सीजन शुरू हो गया है, वनाग्नि उत्तराखंड की एक बड़ी समस्या है प्रदेश के कई इलाकों में जंगलों के धधकने की ख़बरें आने लगी हैं। प्रदेश में गर्मी का मौसम और लगातार बढ़ते तापमान से जंगलों में लगती आग अब भयावह रूप दिखाने लगी है।
फायर सीजन के दौरान धधकते जंगलों के कारण वन संपदा को लाखों-करोड़ों का नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही इसके साथ पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है। जहाँ यह आग जंगली जानवरों के लिए मुसीबत साबित होती है तो वहीं प्राकृतिक जल स्रोत सूख जाते हैं। जंगलों के किनारे बसे गाँव भी दहशत में आ जाते हैं।
दुःख यह है कि पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया जाता। भले ही प्रदेश सरकार वनो को आग से बचाव के तमाम दावे करता रहा हो मगर धरातल पर तमाम कोशिशों के बाद भी हम वनाग्नि की घटनाओं से निपटने में असफल रह जाते हैं।
वनाग्नि की घटनाओं में चिंताजनक पहलू यह है कि आग की सर्वाधिक घटनाएं आरक्षित वन क्षेत्रों में सामने आ रही हैं। ख़बरों के मुताबिक बीते 24 घंटे में गढ़वाल में आरक्षित वन क्षेत्र में 14 स्थानों, जबकि वन पंचायत क्षेत्र में तीन स्थानों पर आग लगी। इसी तरह से कुमाऊं क्षेत्र में आरक्षित वन क्षेत्र में 13 स्थानों पर आग लगी। 24 घंटे में करीब 35 हेक्टेयर वन संपदा को नुकसान पहुंचा है।
एक दैनिक समाचार पत्र के अनुसार मुख्य वन संरक्षक, वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन निशांत वर्मा ने बताया कि इन घटनाओं में कुल 30.95 हेक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र व 4.5 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। साथ ही बताया कि इस फायर सीजन में वनाग्नि की अब तक 214 घटनाएं हो चुकी हैं। जबकि 260.16 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। कुल साढ़े सात लाख रुपये से अधिक की क्षति का आकलन किया गया है।