2026 की नंदा राजजात यात्रा से पहले चौसिंग्या खाडू की चर्चा ने बढ़ाई उत्सुकता, समिति ने कहा— देवी ही करेंगी चयन
रिपोर्ट:
चमोली/देहरादून, 13 जुलाई।
उत्तराखंड की महान आस्था और परंपरा से जुड़ी श्री नंदा देवी राजजात यात्रा की अगुवाई करने वाले चौसिंग्या खाडू (चार सींग वाला मेंढ़ा) को लेकर अभी से चर्चा तेज हो गई है। विकासखंड कोटी के कोटी गांव में हाल ही में एक चार सींग वाले मेंढ़े के जन्म ने लोगों में उत्साह भर दिया है। सोशल मीडिया पर इस मेंढ़े को आगामी 2026 की राजजात यात्रा का अगुवा बताया जा रहा है। हालांकि नंदा देवी राजजात यात्रा समिति ने स्पष्ट किया है कि अभी तक यात्रा का पंचांग भी जारी नहीं हुआ है, और जिसे देवी चयन करेंगी, वही खाडू अगुवा होगा।

कोटी गांव में मिला चार सींग वाला मेंढ़ा
सामाजिक कार्यकर्ता गौतम मिंगवाल के अनुसार, कोटी गांव निवासी हरीश लाल के पशुपालन स्थल पर जन्मे इस चार सींग वाले मेंढ़े को लोग आस्था के साथ नंदा देवी की यात्रा से जोड़ रहे हैं। मेंढ़े का जन्म लगभग पांच महीने पहले हुआ, लेकिन उसके चार सींगों की जानकारी बकरीपालक को हाल ही में मिली। इस तरह के मेंढ़े को हिमालयी परंपरा में “खाडू” कहा जाता है, और यह देवी यात्रा में देव रथ का रूप माना जाता है।
समिति की प्रतिक्रिया
राजजात समिति के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुंवर ने स्पष्ट किया कि यात्रा से पहले “मौडवी पूजा” और पंचांग जारी होना आवश्यक है। इसके बाद ही परंपरा अनुसार चौसिंग्या खाडू का चयन होता है। उन्होंने बताया कि धार्मिक और शास्त्रीय प्रक्रिया का पालन करते हुए देवी ही खाडू का चयन करती हैं, न कि सोशल मीडिया। उन्होंने वायरल पोस्ट से आयोजकों की नाराजगी जाहिर की और सभी से धैर्य और धार्मिक मर्यादा बनाए रखने की अपील की।

नंदा देवी राजजात यात्रा: उत्तराखंड की संस्कृति का अद्भुत महाकुंभ
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हर 12 वर्ष में आयोजित होने वाली यह यात्रा हिमालय की सबसे कठिन और आस्था से भरपूर पैदल यात्राओं में मानी जाती है।
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यात्रा लगभग 280 किमी की कठिन पहाड़ी पगडंडियों से होकर गुजरती है।
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इसमें ग्राम देवी नंदा को उनके ससुराल—कैलाश तक विदा करने की पौराणिक परंपरा निभाई जाती है।
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यात्रा के दौरान चौसिंग्या खाडू (चार सींग वाला मेंढ़ा) को मां नंदा का देव रथ माना जाता है।
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खाडू की पीठ पर देवी का कलेऊ, साज-सज्जा और प्रसाद रखकर पूजन के बाद उसे अकेले कैलाश की ओर रवाना किया जाता है, जिसे तीर्थयात्रा का सबसे भावुक क्षण माना जाता है।
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यात्रा राजवंशियों के नेतृत्व में होती है, और प्रत्येक पड़ाव पर देवी के भक्तों द्वारा अनुष्ठान, लोकगान और हवन आयोजित किए जाते हैं।
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यात्रा प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है, और इसे हिमालय का कुंभ भी कहा जाता है।

इंटरनेट की तेजी और परंपरा की सच्चाई
आज सोशल मीडिया के युग में श्रद्धा के विषय जल्दी वायरल हो जाते हैं। लेकिन नंदा देवी राजजात यात्रा केवल आस्था नहीं, शास्त्र और परंपरा का भी अनुशासन है। ऐसे में आयोजकों ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि किसी भी सूचना को प्रमाणित करने से पहले समिति या राजवंशीय पदाधिकारियों से पुष्टि करें।
आगामी यात्रा का पंचांग आगामी बसंत पंचमी (23 जनवरी 2026 संभावित) को जारी किया जाएगा। उसके बाद ही यात्रा के सभी चरणों का आधिकारिक निर्धारण होगा।