मालेगांव ब्लास्ट केस में बड़ा फैसला: सबूतों के अभाव में सभी आरोपी बरी
मुंबई।
2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद विशेष एनआईए अदालत ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ ठोस प्रमाण पेश नहीं कर सका।
विशेष अदालत ने स्पष्ट किया कि विस्फोट की घटना तो साबित हुई, लेकिन यह साबित नहीं हो पाया कि मोटरसाइकिल में रखा गया विस्फोटक आरोपियों से जुड़ा था। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि घायलों की उम्र और कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट में हेराफेरी के संकेत मिले हैं, जिससे अभियोजन की कहानी कमजोर पड़ी।
इस फैसले के समय सभी आरोपी अदालत में मौजूद रहे, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय शामिल हैं। सभी आरोपी यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमे का सामना कर रहे थे। वर्तमान में सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं।
17 साल, 323 गवाह और एक लंबा इंतजार
29 सितंबर 2008 को रमज़ान के दौरान मालेगांव में हुए इस बम धमाके में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक घायल हुए थे। यह मामला महाराष्ट्र के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण जांच विषय बन गया था। पहले जांच की ज़िम्मेदारी एटीएस के पास थी, लेकिन 2011 में यह एनआईए को सौंप दी गई।
मामले में अभियोजन ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 गवाह अपने बयान से पलट गए। साथ ही, 40 गवाहों की मृत्यु हो चुकी है और कई गवाहों के बयान असंगत पाए गए। 2016 में एनआईए ने अपनी चार्जशीट में कहा था कि प्रज्ञा ठाकुर सहित कुछ आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
अदालत का तर्क और निर्णय
अदालत ने 19 अप्रैल 2024 को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। रिकॉर्ड और दस्तावेजों की विशाल संख्या (एक लाख से अधिक पृष्ठ) के कारण निर्णय में अतिरिक्त समय लगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि फैसले के दिन सभी आरोपियों की उपस्थिति अनिवार्य थी और अनुपस्थित रहने पर कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी।
आरोपियों की प्रतिक्रिया
फैसले के बाद सभी आरोपियों ने राहत की सांस ली। कोर्ट से बाहर निकलते हुए उन्होंने कहा कि “सत्य की जीत हुई है।” सुधाकर धर द्विवेदी के वकील रंजीत सांगले ने कहा, “17 वर्षों की लंबी प्रक्रिया, 323 गवाहों की गवाही और 40 गवाहों की मौत के बाद अब जाकर न्याय मिला है। हमारे खिलाफ कोई सबूत नहीं था, और आज अदालत ने वही कहा।”
मालेगांव ब्लास्ट मामले में आया यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी गहरे हो सकते हैं। फैसले से यह भी सवाल उठता है कि क्या भारत की न्यायिक व्यवस्था में इस प्रकार की जटिल मामलों की जांच और निष्पक्ष सुनवाई के लिए और सुधार की आवश्यकता है।