उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केंद्रीय कैबिनेट द्वारा ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी देने का स्वागत करते हुए इसे ऐतिहासिक और बहुप्रतीक्षित कदम बताया। सीएम धामी ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना की और कहा कि यह कदम भारतीय लोकतंत्र को और अधिक सशक्त व प्रभावी बनाएगा। उन्होंने कहा कि इससे चुनाव में खर्च होने वाले सरकारी धन और समय की बचत होगी, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत संरचना के विकास में इसे लगाया जा सकेगा।
बहुप्रतीक्षित एवं ऐतिहासिक कदम !
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के कुशल नेतृत्व में भारतीय लोकतंत्र को और अधिक सशक्त और प्रभावी बनाने की दिशा में 'एक देश – एक चुनाव' के प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत किया जाना स्वागत योग्य निर्णय है।
'एक राष्ट्र एक…
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) September 18, 2024
इसके अलावा, केंद्रीय कैबिनेट द्वारा प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नति ग्राम अभियान को मंजूरी दिए जाने पर भी सीएम धामी ने प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस निर्णय से जनजातीय समाज के जीवन-स्तर में सुधार होगा और वे सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से अधिक सशक्त होंगे। सीएम धामी ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में संचालित जनकल्याणकारी योजनाओं की भी प्रशंसा की, जिनसे हर वर्ग और समुदाय को लाभ मिल रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में पहली बार ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की परिकल्पना की थी, जिसका उद्देश्य बार-बार होने वाले चुनावों से देश के विकास में आने वाली रुकावटों को कम करना और सरकारी खर्च को नियंत्रित करना है।
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है?—
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रमुख उद्देश्य—
- खर्च में कमी- बार-बार चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है। एक साथ चुनाव कराने से इस खर्च में कमी आएगी।
- समय की बचत- अलग-अलग समय पर चुनाव कराने से सरकारी और प्रशासनिक तंत्र का समय चुनाव की तैयारियों और संचालन में जाता है। इसे बचाकर विकास कार्यों में लगाया जा सकता है।
- निरंतर विकास कार्य- बार-बार चुनाव होने से आचार संहिता लागू हो जाती है, जिसके कारण विकास कार्यों में रुकावट आ जाती है। एक साथ चुनाव होने से सरकारों को पूरा समय मिलता है विकास पर ध्यान देने का।
- संसाधनों का बेहतर उपयोग- चुनावों में सुरक्षा बलों, सरकारी कर्मचारियों और अन्य संसाधनों का भारी उपयोग होता है। एक साथ चुनाव कराने से इन संसाधनों का उपयोग और अधिक प्रभावी ढंग से हो सकता है।
प्रमुख चुनौतियाँ—
- संवैधानिक और कानूनी बाधाएं- कई राज्यों और केंद्र का कार्यकाल अलग-अलग समय पर समाप्त होता है। सभी राज्यों और केंद्र का कार्यकाल एक साथ लाने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी।
- राजनीतिक सहमति- विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच इस विषय पर सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि कुछ दलों का मानना है कि इससे राज्यों की स्वायत्तता कम हो सकती है।
- लॉजिस्टिक चुनौतियाँ- इतने बड़े पैमाने पर एक साथ चुनाव कराना एक बहुत बड़ा प्रशासनिक और लॉजिस्टिक कार्य है, जिसमें तकनीकी और प्रबंधकीय समस्याएं आ सकती हैं।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाना और सरकारों को विकास कार्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए समय देना है। लेकिन इसे लागू करने के लिए कई संवैधानिक और व्यावहारिक चुनौतियों का समाधान करना जरूरी होगा।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक देश, एक चुनाव) की अवधारणा को लागू करने की प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकती है, क्योंकि इसमें संवैधानिक संशोधनों, राजनीतिक सहमति और लॉजिस्टिक तैयारियों की आवश्यकता होगी। इस योजना के लागू होने की कोई निश्चित तारीख अभी तय नहीं हुई है, लेकिन इसे लागू करने के लिए सरकार द्वारा कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं।
इसे लागू करने के संभावित चरण—
- कोविंद समिति की रिपोर्ट- केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर अध्ययन और सुझाव देने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। इस समिति की सिफारिशें लागू होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होंगी। केंद्रीय कैबिनेट ने इस समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है, जिसे आगे संसद में पेश किया जाएगा।
- संसदीय बहस और मंजूरी- ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधन करने होंगे, क्योंकि वर्तमान में केंद्र और राज्यों के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। इन संशोधनों के लिए संसद में चर्चा और बहस होगी, और इसके बाद संसद की मंजूरी आवश्यक होगी।
- राज्यों की सहमति- संविधान में संशोधन के बाद इसे लागू करने के लिए राज्यों की सहमति भी आवश्यक होगी। कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों की समय सीमा पहले समाप्त हो सकती है, इसलिए या तो उनके कार्यकाल को बढ़ाया जाएगा या फिर समय से पहले चुनाव कराए जाएंगे, ताकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो सकें।
- लॉजिस्टिक तैयारियाँ- एक साथ इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग और प्रशासन को पर्याप्त संसाधनों और तकनीकी ढांचे की आवश्यकता होगी। ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) और वीवीपीएटी (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) जैसी चुनाव सामग्री की संख्या में बढ़ोतरी भी जरूरी होगी।
संभावित समय-सीमा—
- 2024 का आम चुनाव- कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की योजना को 2024 के आम चुनाव से पहले लागू करने की संभावना कम है, क्योंकि इसके लिए संवैधानिक और प्रशासनिक तैयारियां अभी भी लंबित हैं।
- आने वाले चुनावों में- यदि राजनीतिक सहमति बनती है और संवैधानिक संशोधन तेजी से पारित होते हैं, तो इसे 2024 के बाद किसी आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में लागू किया जा सकता है।
इस योजना को लागू करने के लिए सभी पक्षों में सहमति और कानूनी तैयारियों की आवश्यकता है, इसलिए इसे कब तक लागू किया जाएगा, यह इन कारकों पर निर्भर करेगा।