कोरोना इफ़ेक्ट -उत्तराखंड में रिवर्स पलायन   

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घोस्ट विलेज बनते उत्तराखंड राज्य के पर्वतीय जिलों के लिए राहत भरी खबर है कि कोरोना काल मे अप्रवासियों ने कोरोना के समय राज्य में वापसी के बाद अपने राज्य में ही गुजर बसर का फैसला किया है। वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण प्रदेश वापस लौटे प्रवासियों का बहुत बड़ी तादात में उत्तराखंड में ही रुक जाना कहीं न कहीं राज्य के लिए सुखद भरी खबर है। राज्य पलायन आयोग की माने तो राज्य में वापस लौटे प्रवासियों में से करीब 71 प्रतिशत प्रवासी अभी राज्य में ही रुके हुए हैं। जबकि 29 फीसदी प्रवासियों ने अनलाॅक के बाद प्रदेश से पुनः पलायन कर दिया है। वैश्विक महामारी कोरोना के चलते राज्य में लौटे प्रवासियों में से 71 फीसदी लोग दोबारा अपनी जन्मभूमि में ही रमने लगे हैं और उन्होंने खेती-बाड़ी का काम भी प्रारंभ कर दिया है।

गौरतलब है कि कोरोना महामारी के चलते देश के विभिन्न हिस्सों से लौटे प्रवासी लाॅकडाउन के समय  उत्तराखण्ड लौट आए थे। माना जा रहा था कि हालात सामान्य होने पर इनमें से अधिकतर की वापसी हो जाएगी, अनलॉक में काम धंधों की रफ्तार तेज होने पर यह लोग वापस लौट जाएंगे, लेकिन पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इनमें से मात्र 29 फीसदी लोग ही वापस लौटे हैं। आयोग की यह रिपोर्ट ब्लाक स्तर पर किए गए सर्वे के आधार पर तैयार हुयी है।

विकासखंड में लौटे प्रवासी- 357536 

सितम्बर अंत तक पुनः पलायन कर गए लोग-104849 (29 प्रतिशत )

राज्य में रुके प्रवासियों की संख्या- 252687 (71  प्रतिशत )

उल्लेखनीय है की विकट भौगोलिक संरचना वाले उत्तराखंड में पलायन बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है. जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है, तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही गया। पूर्व में आयी पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं. वहीं 400 से अधिक गांव ऐसे थे, जहां 10 से भी कम नागरिक थे। पूर्व में पलायन आयोग की ओर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार अकेले अल्मोड़ा जिले में ही 70 हजार लोगों ने पलायन किया था। वहीँ सूबे की 646 पंचायतों के 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके थे। आयोग ने मूलभूत सुविधाओं के अभाव को पलायन की मुख्य वजह बताया था।

गौरतलब है की राज्य में पलायन की रफ़्तार पर ब्रेक लगाने के उद्देश्य से 17 सितंबर 2017 में पलायन आयोग का गठन किया था और आयोग ने साल 2018 में सरकार को अपनी पहली रिपोर्ट सौंपी थी.आयोग की पहली रिपोर्ट के अनुसार 2011 में उत्तराखंड के 1034 गांव खाली थे. साल 2018 तक 1734 गांव खाली हो चुके थे. राज्य में 405 गांव ऐसे थे, जहां 10 से भी कम लोग रहते हैं. प्रदेश के 3.5 लाख से अधिक घर वीरान पड़े हैं, जहां रहने वाला कोई नहीं था।

पलायन आयोग की यह रिपोर्ट निश्चित ही सरकार के लिए सकून देने वाली है अब जरुरत है तो इस बात की कि प्रभावी योजनाएं बनायीं जाएँ जिससे की राज्य के पानी और जवानी का प्रदेश को लाभ मिले।


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