उत्तरकाशी के धराली में तबाही: न बादल फटा, न भूस्खलन—बल्कि टूटा ग्लेशियर डिपॉजिट!, जानें असली वजह

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उत्तरकाशी के धराली में तबाही: न बादल फटा, न भूस्खलन—बल्कि टूटा ग्लेशियर डिपॉजिट!

धराली (उत्तरकाशी), 7 अगस्त 2025:
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद के धराली गांव में आई भीषण आपदा को लेकर अब वैज्ञानिक विश्लेषणों ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। शुरुआती अटकलों में इस त्रासदी को ‘बादल फटने’ की घटना माना जा रहा था, लेकिन मौसम विभाग और भूवैज्ञानिकों की ताजा पड़ताल के अनुसार इसकी वजह कुछ और, कहीं ज्यादा गंभीर है—ग्लेशियर डिपॉजिट स्लाइड

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कितनी बारिश हुई थी? बादल फटा होता तो…

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के अनुसार, 4 और 5 अगस्त को धराली में केवल 8 से 10 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई। जबकि बादल फटने की स्थिति में सामान्यतः एक घंटे के भीतर 100 मिमी या उससे अधिक वर्षा होती है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि धराली की त्रासदी बादल फटने से नहीं, बल्कि किसी और भौगोलिक और पर्यावरणीय असंतुलन के चलते हुई।

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फ्लैश फ्लड का कारण: अस्थाई झील या ग्लेशियर डिपॉजिट का टूटना

पूर्व वैज्ञानिक डॉ. डी.पी. डोभाल का कहना है कि धराली गांव फ्लड प्लेन में बसा है और इसके पीछे डेढ़-दो किलोमीटर लंबा घना जंगल है। जिस खीरगाड से फ्लैश फ्लड आया, वह इन्हीं जंगलों से होकर गुजरता है और ऊपर बर्फीले पर्वत हैं। जिस रफ्तार से पानी और मलबा नीचे आया, वह बादल फटने जैसी नहीं, बल्कि किसी अस्थाई झील या ग्लेशियर जमाव के अचानक टूटने की ओर संकेत करता है।

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धराली की घाटी की विशेषता

धराली और उसके आसपास की घाटियां बेहद संकरी हैं और चारों ओर ऊंचे पर्वत हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर किसी ग्लेशियर या बर्फ के बड़े हिस्से का टूटकर किसी झील में गिरना हुआ हो, तो उस झील की दीवार टूट जाती है और विशाल मात्रा में मलबा और पानी बेहद तेज गति से नीचे बहने लगता है। इसी वजह से मलबा काले और स्लेटी रंग का था, जैसा 2021 के चमोली ऋषिगंगा हादसे और 2013 के केदारनाथ आपदा में देखा गया था।

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ग्लेशियर डिपॉजिट के टूटने की पुष्टि

भूटान में PHPA-1 परियोजना में कार्यरत वरिष्ठ भारतीय भूविज्ञानी इमरान खान द्वारा साझा की गई सैटेलाइट इमेज और विश्लेषण इस त्रासदी के पीछे का असल कारण उजागर करते हैं। उनके अनुसार, धराली गांव से लगभग 7 किमी ऊपर, समुद्र तल से लगभग 6,700 मीटर की ऊंचाई पर एक विशाल ग्लेशियर डिपॉजिट था, जिसकी मोटाई लगभग 300 मीटर और क्षेत्रीय विस्तार 1.12 वर्ग किलोमीटर था।

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5 अगस्त को हुई तीव्र वर्षा और ऊपरी हिमनद पर जमा मलबे की अस्थिरता के कारण यह डिपॉजिट स्लाइड कर गया। इसके परिणामस्वरूप भारी मात्रा में मलबा, पत्थर, रेत और बर्फ नीचे की ओर बहते हुए धराली गांव तक पहुंच गया। प्रारंभिक अनुमान के अनुसार मलबे की कुल मात्रा लगभग 360 मिलियन घन मीटर रही।

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मलबे का बहाव: कुछ ही पलों में तबाही

इस घटना में मलबे का बहाव इतना तीव्र था कि वह एक मिनट से भी कम समय में धराली गांव तक पहुंच गया। इसका कारण क्षेत्र की भू-आकृति है, जहां नाला अत्यधिक ढाल लिए हुए है और पार्श्व में कोई विस्तार नहीं है, जिससे बहाव सीधे और तेजी से नीचे की ओर हुआ।

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भविष्य के लिए चेतावनी और सबक

वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत के अनुसार, जब तक सेटेलाइट इमेज का पूरा अध्ययन नहीं होता और वैज्ञानिक स्थल का दौरा नहीं करते, तब तक ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। लेकिन अब तक के अध्ययनों और सबूतों से यह स्पष्ट है कि भविष्य में भी ऐसे ग्लेशियर-आधारित जोखिमों का गंभीरता से मूल्यांकन करना होगा।

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यह घटना दर्शाती है कि हिमालयी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान ने ग्लेशियरों को बेहद अस्थिर बना दिया है। यदि ऐसी आपदाओं से बचाव करना है तो ऊपरी क्षेत्रों की निरंतर निगरानी, पर्यावरणीय संतुलन की रक्षा और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा के लिए ठोस योजना आवश्यक है।

धराली आपदा एक बार फिर हमें यह याद दिलाती है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और जलवायु परिवर्तन की अनदेखी किस हद तक विनाश ला सकती है। यह घटना सिर्फ एक प्राकृतिक त्रासदी नहीं, बल्कि आने वाले समय की एक चेतावनी भी है।


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