उत्तराखंड के कला और संगीत जगत के लिए बड़ी दुखद खबर है, सुप्रसिद्ध अभिनेत्री गीता उनियाल का लंबी बीमार से निधन हो गया है। ये जानकारी पर्वतीय नाट्य मंच के अध्यक्ष अभिनेता बलदेव राणा ने अपने फेसबुक के माध्यम से दी है साथ ही उन्होंने यह जानकारी भी दी की गीता ने अपने आवास पर आख़री सांस ली। उनके निधन की ख़बर से उत्तराखंड के लोक कलाकारों में शोक की लहर छा गयी है।
आपको बता दें गीता उनियाल पिछले कई वर्षों से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। गीता उनियाल का निधन उत्तराखंड की संस्कृति के लिए बड़ी क्षति है जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता है, वीर भड़ माधो सिंह भंडारी नृत्य नाटिका में मुख्य नायिका उधिना की बेहतर भूमिका अदा की है।
उत्तराखंड से जुड़े व्यक्ति को गीता उनियाल का परिचय देने की आवश्कता नहीं है। साल 2004 से गीता ने उत्तराखंड फिल्म जगत में काम शुरू किया जो लगातार जारी रखा। फिल्म भुली-ए-भुली, मेरू गौं, कन्यादान, भगत और घंडियाल, खैरी का दिन, ब्यो, संजोग, फ्योंली जवान ह्वेगे, अभी जग्वाल कैरा आदि फिल्मों में काम किया है। इसके अलावा वो हिंदी फिल्म द हैवोक में भी काम कर चुकी हैं। उन्होंने करीब 15 उत्तराखंडी फिल्मों में काम किया है। हाल ही में वो फिल्म जय मां धारी देवी में नज़र आई थीं। 300 से ज्यादा गढ़वाली म्यूजिक एल्बम में गीता काम कर चुकी हैं।
उत्तराखण्डी लोकगायको के बाद अब लोकनृत्य और अभिनय के लिए भी देश से बहार प्रवासी लोगों की चाहत बनी है, अभिनेत्री गीता उनियाल को दुबई में आमंत्रित्र करना उन कलाकारों के लिए नई आशा की तरह है जो उत्तराखण्ड की नृत्य अभिनय में रमें हुए हैं। गीता ने यह मुकाम एसे ही नहीं पाया इसके पिछे उसकी वर्षों की शाधना है 300 एलबमों और 15 फिचर फिल्मों में काम करना कोई सामान्य बात नही है। उनकी कला को परदे पर देखा मोबाईल पर देखा अब मंच पर भी देखेंगे।
जब उनसे उनके कला जगत और टूर को लेकर बात की गयी आईये जानते है क्या कहा था उन्होंने—-
आपका अभिनय के क्षेत्र में कैसे पदापर्ण हुआ?
मेरा बचपन से ही नृत्य के क्षेत्र में लगाव था । में जब कोई गीत सुनती फिल्म देखती तो उसी तरह के अभिनय करने का मन करता था और वह अभिनय मेरी रग-रग में बस जाता था में बचपन में ही स्कूल के हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रतिभाग करती थी और हमेशा स्कूल कालेज में नृत्य में प्रथम आती थी मेरा सपना था की में हिरोईन बनु। स्कूल काँलेज के बाद में छोटे मोटे कार्यक्रमों में प्रतिभाग किया बाद जब लोगों ने मेरा नृत्य देखा तो मुझे एलबमों व फिल्मों में अभिनय करने का प्रस्ताव मिला धीरे-धीरे मेरा और रुझान नृत्य के क्षेत्र में बढा और मुझे लटूली एलबम्म में अभिनय करने का अवसर मिला।
आप को इस क्षेत्र में कार्य करने में कितनी कठिनाई आई?
आपको पता है की महिलाओं को सावर्जिन क्षेत्र खासकर नृत्य जैसे क्षेत्र में पदापर्ण करने में बहुत दिक्तों का सामना करना पडता है। जब में कभी घर–पडोस रिशतेदारों में डांस करते थी तो दादा जी मेरे से गुस्सा हो जाता थे तो में दादा जी से छुपकर डांस करती थी। बाद में जब मेरा नाम होने लगा तो दादा जी भी समझ गये उनका मुझे भरपूर सर्पोट किया। जब में इस क्षेत्र में आई तो बहुत खट्टे मिठे अनुभव मिले कई बार कार्यक्रम किये पर मेंमेंट नही मिली । कई बार सूटिंग करते समय भूखा भी रहना पडता था तो कभी जहाँ शूटिंग करते थो रहने की व्यवसस्था नही होती थी कई किलोमीटर तक पैदल चलना पडता था, घर से निकलने के बाद कई दिनों तक सम्पर्क नही हो पाता था क्योंकी दूरभाषा की कोई सुविधा नही थी। वही कठिनाई आज हमको बरदान साबित होरही है।
आपके प्ररेणा स्रोत्र कौन है ?
जब संजीता कुकरेती जी का अभिनय देखती तो मेरे मन में उसी तरह के डांस सिखने का मन करता था। और में उनकी तरह नृत्य सिखने की पूरी कोशिश करती थी। उनकी एक प्रसिद्ध सीडी थी बारामास उस गीत में उनका अभिनय बहुत मनमोहक था में उस सीड़ी को कई बार देखती। अम्मा जिन्दगी कु सुख जब में इस एलम्ब को देखती तो में सोचती थी की काश कभी जिन्दगी में में एसा काम कर सकू और उत्तराखण्ड की स्चार बन सकू । धीरे- धीरे मेंने कोशिश की और आज उत्तराखण्ड में अभिनय के क्षेत्र में सफलता अर्जित हुई। आजकल मं संजीता कुकरेती से कथक सीख रही हूँ
अभी तक लगभग 300 से जादा एलबम्बों व 15 गढवाली फीचर फिल्मों में काम कर चूकी हूँ और 2002 से इस क्षेत्र में लगातार काम कर रही हूँ जिसमें मेरी प्रमुख एलबम नोनी भावना बिन्दूली बावन गढ की बन्दोला गढरत्तन वरेन्द्र सिंह नेगी जी की खुद अनिल बिष्ट की नाँन स्टाप आदि सैकडों एलबम सीडी हैं इसके अलावा 15 फिल्मों में कार्य कर चूकी हूँ।
उत्तराखण्ड में कलाकारों की क्या स्थिति है ?
सच कहूं तो उत्तराखण्ड में कलाकारों की दयनीय स्थिति है में अपनी बात करती हूं इतना काम में भोजपूरी व पंजाबी फिल्मों व एलबमों में काम करती तो में आज कहाँ की कहाँ होती 300 एलबम व 15 फिल्में कम नही होती पर आज आप ही देखलो में कहाँ हूँ कितना फायदा मिला। सरकार को संस्कृति विभाग को कलाकारों के वास्ते एक अलग सा फंड बनाना चाहिए जो सुख दुख में कलाकारों के काम आ सके कलाकारों की यह स्थिति है । जब कलाकार बीमार होता तो कोई उसे देखने तक नही जाता देखने जाते पर मदद नही कर पाते मरने के बाद कोई श्रदांजलि देता तो उस श्रद्धांजलि का कोई महत्व नही होता जब जीते जी मान सम्मान नहीं मिला सरकार को संस्कृति विभाग को इस दिशा में सोचने की सख्त जरुरत है।
आप नये कलाकारों के लिये आपका क्या संदेश हैं ?
हमें सिखने की ललक होनी चाहिये हम जितना सिखेंगे उतना निखरेंगे। एक बात कहना चहाती हूं की हम अपने संगीत को नये बदलाव करके पेश कर रहें पर हमें उनके मूल पर छेडखानी नहीं करनी चाहिये। दूसरा संदेश हैं की संस्कृति के अनरुप ही पहनावा पहने। और संस्कृति को संस्कृति ही रहने दिजीये। अपना प्यार हमेशा एसे ही बनाये रखें।