उत्तराखंड में तीन दिनों से हो रही लगातार बारिश और मौसम विभाग के द्वारा भारी से बहुत भारी बारिश की चेतावनी अब फिर उत्तराखंड में भय पैदा करने लगी हैं। मानसून का आना और मौसम विभाग के अलर्ट के बाद शासन-प्रशासन की चुनौतियां बढ़ने लगी हैं।उत्तराखंड में मानसून भले ही अभी शुरुआती दौर में ही है मगर लगातार बढ़ रहे कुदरत के कहर और उनकी भयानक तश्वीरें धीरे-धीरे राज्यवासियों के लिए चिंताओं का सबब बनने लगी हैं। आमजन की परेशानियों में इज़ाफ़ा होने लगा है, राज्य में सड़कों के बंद होने का सिलसिला शुरू हो गया है ख़बरों के अनुसार सोमवार शाम तक प्रदेश में तीन नेशनल हाईवे समेत कुल 250 सड़कें अवरुद्ध थीं वहीँ खबर है कि लोनिवि ने एहतियातन प्रदेश में निर्माणाधीन करीब 80 पुलों का काम रोक दिए हैं। उधर मौसम विभाग की चेतावनियां भी डराने लगी हैं। मानसून हमेशा ही प्रदेश के लिए बड़ी आपदाएं लेकर आया है।
दुःख यह है कि पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया जाता और तमाम कोशिसों के बाद भी हम मौसम रुपी आपदा से निपटने में असफल रह जाते हैं। जब पानी सर के ऊपर से गुजरने लगता है और एक जैसी समानांतर आपदा घटनाएं लगातार घटने लगती हैं, तब सरकार एक्टिव मोड में नज़र आती है। हालाँकि मौसम विभाग समय समय पर ऑरेंज, रेड-अलर्ट जैसी चेतावनियां जारी करता रहता है मगर मौसम विभाग के “अलर्ट” पर भी विशवास नहीं किया जाता क्यूंकि या तो ये इतने विस्वश्नीय नहीं होते या फिर केंद्र इतने संवेदनशील क्षेत्र को ध्यान में रखकर उचित जगह, उचित उपकरण नहीं लगा पा रही है। ध्यान रहे उत्तराखंड भारत का ऊपरी भू-भाग है जहाँ से कई प्रसिद्ध नदियाँ निकलती हैं।
मनुष्य भले ही प्रकृति के आगे बेबस नज़र आया है मगर नदियों के किनारे अवैध निर्माण, आल वैदर रोड के नाम पर पेड़ों का कटान, बड़े विस्फोट जो पहाड़ों की कमजोरी का मुख्य कारण बनते है और पहाड़ों को खोखला कर छोड़ देना जैसे कार्य भी मानसून में हुए नुक्सान में जबरदस्त इज़ाफ़ा करते हैं वहीँ तेज बारिश और बादल फटने जैसी घटनाएं, जगह-जगह भूस्खलन की घटनाओं में भी खासी बढ़ोतरी हो जाती है। इसके अलावा नदियों के भीतर तक हुए अतिक्रमण के कारण बरसात शुरू होते ही नदियों किनारे बसे गावं दहशत में आ जाते हैं,आवागमन ठप हो जाता है।
कोरोना आपदा के बीच आपदा प्रबंधन विभाग को मानसून से निपटने की चुनौती का भी सामना करना पड़ेगा। एस०डी०आर०एफ अपनी तैयारियों का गुणगान तो बड़ा चढ़ाकर करता तो है, मगर धरातल पर वो उस तत्परता से कार्य नहीं हो पाटा और इसकी एक प्रमुख वजह प्रदेश की हिमालयी पृष्ट्भूमि भी नज़र आती है जो अनेकों भौगोलिक विषमताओं से भरी पड़ी दिखाई देती है। बरसात के शुरवाती हालात देखते हए प्रतीत होता है की अगर आने वाले इस मानसूनी संकट पर सरकार तत्परता से कार्य नही कर पाती तो हमे इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे और हमे भविष्य में इससे बड़ी त्रासदियों से भी गुजरना पड़ सकता हैं।