चाहे आप मांसाहारी हो अथवा न हों मगर आपने कभी न कभी हलाल और झटका शब्दों को जरूर सुना होगा, और अगर आप जानते हैं तो आपके लिए खबर है कि अब नॉनवेज परोसने वाले होटलों, मटन शॉप या चिकन शॉप हो उन्हें अपने रेस्टोरेंट और होटल के आगे साफ़ साफ़ लिखना होगा की वह किस तरह का नॉनवेज परोस रहा है? हलाल या फिर झटका।
बता दें कि उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग की रिकमेन्डेशन पर कई जिलों के जिलाधिकारियों ने झटका और हलाल मांस की जानकारी को सार्वजनिक करने को लेकर आदेश दिए हैं जिसमे मांस बिक्री और नॉनवेज व्यंजन परोसने वाले व्यापारी को बोर्ड पर स्पष्ट लिखना होगा की वह किस तरह का नॉनवेज परोस रहा है। जो मीट वे परोस रहे हैं वो झटके का है या फिर हलाल का है।
उत्तराखंड के दो जिलों नैनीताल और रुद्रप्रयाग में यह नियम सख्ती से लागू किया जायेगा। इस संबंध में लोकल प्रशासन ने आदेश जारी कर दिए हैं। अल्पसंख्यक आयोग में शिकायतकर्ता सिख समन्वय समिति के अध्यक्ष गुरुदेव सिंह सोहता, महासचिव हरीश नारंग और संयोजक डॉ० कुलदीप दत्ता ने देहरादून में प्रार्थना पत्र दिया था। पत्र का संज्ञान लेते हुए आयोग ने राज्य के समस्त होटलों, रेस्टोरेंट एवं मीट शॉप को एडवाइजरी जारी कर दी है।
आपके मन में भी यह ख़याल जरुर आता होगा कि एक ही जानवर का मीट झटका भी हो सकता है और हलाल भी, आखिर ये कैसी पहेली है? झटका और हलाल मीट में क्या अंतर है?
आईये जानते हैं हलाल या झटके के बारे में—
हलाल- हलाल अरबी शब्द है और इसे इस्लामिक कानून के हिसाब से परिभाषित किया गया है। इस्लाम में हलाल मीट की प्रक्रिया का पालन करने की ही अनुमति है। इसमें जानवरों को धाबीहा यानी गले की नस और श्वासनली को काटकर मारना जरूरी माना गया है। मारते समय जानवरों का जिंदा और स्वस्थ होना भी जरूरी है। इसमें जानवरों के शव से सारा खून बहाया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान विशेष आयतें पढ़ी जाती हैं जिसे तस्मिया या शाहदा कहा जाता है। हलाल करने से पहले कलमा पढ़ने और गर्दन पर तीन बार छुरी फेरने की मान्यता है।
झटका- झटका या ‘चटका’ तुरंत मारे गए जानवर का मांस है। माना जाता है कि झटका शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘झटति’ से हुई है, जिसका अर्थ है ‘तुरंत, तुरंत, तुरंत’। ‘झटका करना’ किसी जानवर के सिर को किसी भी हथियार के एक ही वार से तुरंत अलग करने को संदर्भित करता है, जिसमें उसे न्यूनतम पीड़ा के साथ मारने का अंतर्निहित इरादा होता है। वध करने की इस पद्धति में, किसी जानवर को वध से पहले डरना या हिलाना नहीं चाहिए और तलवार या कुल्हाड़ी के एक ही वार से सिर को अलग कर देना चाहिए।