केदारनाथ उपचुनाव: भाजपा और कांग्रेस की साख दांव पर, चुनावी मैदान में कड़ी टक्कर

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केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दल पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर चुके हैं। दोनों पार्टियों के लिए यह चुनाव सिर्फ एक सीट की लड़ाई नहीं है, बल्कि राज्य में अपनी साख को बरकरार रखने और भविष्य की राजनीति को मजबूत बनाने का मौका भी है।

चित्र – ओम जोशी

भाजपा की रणनीति: गोपनीय सर्वे और मजबूत प्रत्याशी की तलाश—

भाजपा ने केदारनाथ उपचुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए तैयारी का मोर्चा पहले ही संभाल लिया है। पार्टी ने केदारनाथ क्षेत्र में स्थानीय जनसमर्थन का आकलन करने के लिए गोपनीय सर्वे करवाया है। भाजपा के सूत्रों के अनुसार, पार्टी हाईकमान ने एक विशेष टीम को क्षेत्र में भेजा है, जो राजनीतिक समीकरणों का अध्ययन कर रही है। चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद ही उम्मीदवार का नाम तय होगा, लेकिन पार्टी ने संभावित दावेदारों की सूची में कुछ नामों पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया है। इनमें पूर्व विधायक आशा नौटियाल, दिवंगत विधायक शैलारानी रावत की बेटी ऐश्वर्या रावत, कुलदीप रावत, और चंडी प्रसाद भट्ट के नाम शामिल हैं।

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कांग्रेस की चुनौती: स्थानीय मुद्दों पर जोर और जनता का समर्थन—

कांग्रेस ने इस उपचुनाव में स्थानीय मुद्दों और भाजपा सरकार के फैसलों को प्रमुखता से उठाने का निर्णय लिया है। पार्टी का मानना है कि क्षेत्र के स्थानीय मुद्दों और राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता का असंतोष उसे जीत दिला सकता है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने दावा किया है कि भाजपा के बड़े नेताओं और मंत्रियों की चुनावी सक्रियता के बावजूद कांग्रेस का संगठन मजबूत है और उसे जनता का समर्थन मिल रहा है। माहरा का कहना है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केदारनाथ क्षेत्र में 38 घोषणाएं की हैं, लेकिन ये केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं और इससे भाजपा को ज्यादा लाभ नहीं होगा।

चित्र साभार- सोशल मीडिया

उम्मीदवार चयन में भाजपा की उलझन, कांग्रेस ने पहले ही बाजी मारी—

जहां कांग्रेस ने मनोज रावत को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है, वहीं भाजपा उम्मीदवार चयन को लेकर अब भी उलझन में है। पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है एक ऐसे उम्मीदवार का चयन करना, जो न केवल क्षेत्र में लोकप्रिय हो, बल्कि स्थानीय मुद्दों को भी प्रभावी ढंग से उठाने में सक्षम हो। भाजपा के लिए ऐश्वर्या रावत को उम्मीदवार बनाना एक भावनात्मक कार्ड हो सकता है, क्योंकि वे दिवंगत विधायक शैला रानी रावत की बेटी हैं। वहीं, कुलदीप रावत और आशा नौटियाल भी मैदान में मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं।

चुनावी मुद्दे: स्थानीय समस्याओं से लेकर धर्म और विकास का खेल—

केदारनाथ उपचुनाव में मुख्य मुद्दों में क्षेत्र के विकास कार्यों की स्थिति, केदारनाथ पुनर्निर्माण, चारधाम यात्रा की अनियमितताएं, और स्थानीय रोजगार की समस्याएं शामिल हैं। कांग्रेस ने खासतौर पर इन मुद्दों को उछालते हुए भाजपा सरकार को घेरने की तैयारी की है। दूसरी ओर, भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा केदारनाथ में किए गए विकास कार्यों और ऑलवेदर रोड परियोजना को अपनी उपलब्धियों के तौर पर पेश कर रही है। इसके अलावा, पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे को भी भुनाने की कोशिश कर रही है, ताकि केदारनाथ के धार्मिक महत्व को राजनीतिक समर्थन में बदला जा सके।

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देशभर की नजरें क्यों हैं केदारनाथ उपचुनाव पर?—

केदारनाथ उपचुनाव केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि देशभर में इसकी चर्चा हो रही है। इसका एक बड़ा कारण केदारनाथ का धार्मिक महत्व है। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और पंच केदारों में भी शामिल है। इस सीट पर होने वाला चुनाव हिंदुत्व की राजनीति और विकास की जरूरत के बीच संतुलन की परीक्षा है। भाजपा, जो आमतौर पर धर्म से जुड़े मुद्दों पर मजबूत मानी जाती है, इस बार चुनौती का सामना कर रही है, क्योंकि पिछले कुछ चुनावों में उसे आध्यात्मिक सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में, केदारनाथ की जनता का फैसला भाजपा के लिए बड़ा संकेत हो सकता है।

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90,540 मतदाता करेंगे फैसला—

केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र में 20 नवंबर को मतदान होना है और 23 नवंबर को मतगणना होगी। इस सीट पर कुल 90,540 मतदाता हैं, जिनमें 44,765 पुरुष और 45,775 महिला मतदाता शामिल हैं। इसके साथ ही 2,949 सर्विस वोटर भी हैं। चुनावी माहौल के मद्देनजर क्षेत्र में दो जोनल मजिस्ट्रेट और 27 सेक्टर मजिस्ट्रेट की तैनाती की गई है, जो चुनाव को सुचारू रूप से संपन्न कराने के लिए जिम्मेदार होंगे।

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भाजपा के लिए नाक की लड़ाई, कांग्रेस के लिए मौका—

अयोध्या और बदरीनाथ जैसी आध्यात्मिक सीटों पर हार के बाद भाजपा के लिए केदारनाथ उपचुनाव जीतना नाक का सवाल बन गया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट और मुख्यमंत्री धामी की सक्रियता इस चुनाव की गंभीरता को दर्शाती है। वहीं, कांग्रेस अपनी हालिया जीतों के आत्मविश्वास के साथ मैदान में है और उसने पहले ही उम्मीदवार की घोषणा कर भाजपा पर बढ़त बना ली है।

चुनावी नतीजों से तय होगी राजनीतिक दिशा—

केदारनाथ उपचुनाव केवल एक सीट की जीत-हार से कहीं ज्यादा है। इसके नतीजे राज्य की राजनीति की दिशा और दोनों प्रमुख दलों की भविष्य की रणनीतियों को प्रभावित करेंगे। यह चुनाव न केवल जनता की मौजूदा सरकार पर विश्वास को परखने का मौका है, बल्कि विपक्ष की मजबूती का भी आकलन करेगा। भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दल पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं, और अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि केदारनाथ की जनता किस पर अपना भरोसा जताती है।

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जनता के फैसले का इंतजार—

केदारनाथ उपचुनाव का परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन यह निश्चित है कि इस उपचुनाव ने उत्तराखंड की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, और अब अंतिम फैसला जनता के हाथों में है। 20 नवंबर को मतदान के साथ ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि किसकी रणनीति सफल रही और किसे जनता ने अपना विश्वास सौंपा।

 

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