उत्तराखंड स्थित चारधाम मंदिर—बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री—सनातन धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु इन धामों में दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन आम जनमानस में यह भ्रांति प्रचलित है कि चारधाम मंदिरों के कपाट केवल छह महीने के लिए ही खुले रहते हैं। इस संदर्भ में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने स्पष्ट किया कि यह धारणा गलत है। उन्होंने कहा कि चारधाम मंदिरों के कपाट बंद नहीं होते; केवल ग्रीष्मकालीन स्थान बंद होता है। इस दौरान देवताओं की पूजा शीतकालीन स्थानों पर की जाती है।
चारधाम मंदिरों पर भ्रांति दूर करने का प्रयास—
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, “चारधाम के कपाट बंद होने के बाद देवताओं की पूजा उनके शीतकालीन प्रवास स्थलों पर जारी रहती है। केवल स्थानांतरण होता है, पूजा स्थगित नहीं होती।”
इस भ्रांति को दूर करने और अधिक से अधिक श्रद्धालुओं को शीतकालीन पूजा स्थलों तक जोड़ने के लिए 16 दिसंबर 2024 से विशेष शीतकालीन यात्रा की शुरुआत की जाएगी। इस यात्रा का उद्देश्य श्रद्धालुओं को इस सत्य से अवगत कराना है कि चारधाम यात्रा सालभर जारी रहती है।
गोभक्ति और अनुच्छेद 370 पर विवाद—
धर्मसभा के दौरान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने हिंदू धर्म में गोभक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “हिंदू होने की सबसे पहली शर्त गोभक्त होना है। गोहत्या सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।”
धर्मसभा में उन्होंने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के संदर्भ में चर्चा की। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में रणबीर दंड संहिता लागू थी, जिसके तहत गोहत्या पर कठोर सजा का प्रावधान था। लेकिन 370 के निरस्त होने के बाद यह प्रावधान समाप्त हो गया। शंकराचार्य ने भारत सरकार से मांग की कि भारतीय न्याय संहिता 2023 में गोहत्या को दंडनीय अपराध बनाने के लिए विशेष प्रावधान जोड़े जाएं।
क्या था शंकराचार्य का बयान?—
शंकराचार्य ने कहा, “रणबीर दंड संहिता की धारा 298-क में गोहत्या करने पर 10 साल तक की कैद और जुर्माना था। यह हिंदू धर्म और आस्था की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण था। अनुच्छेद 370 के हटने से यह प्रावधान समाप्त हो गया है, जिससे गोमाता और हिंदू आस्था पर चोट पहुंची है। यह हमारी सांस्कृतिक विरासत पर हमला है।”
बाबा रामदेव की प्रतिक्रिया—
शंकराचार्य के इस बयान पर योग गुरु बाबा रामदेव ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए शंकराचार्य पर गंभीर आरोप लगाए। बाबा रामदेव ने कहा, “धारा 370 की बहाली की बात करना राष्ट्रघात के समान है। यह सोचकर ही रूह कांप उठती है। यह पाप और अधर्म है। शंकराचार्य के बयान पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। उन्हें सनातन धर्म से बहिष्कृत किया जाना चाहिए।”
रामदेव के इस बयान ने विवाद को और गहरा कर दिया। धर्मसभा में शंकराचार्य ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “जो व्यक्ति अपने धर्माचार्य का सम्मान नहीं करता, उसे हिंदू धर्म में रहने का अधिकार है या नहीं, इस पर विचार होना चाहिए।”
शंकराचार्य की पलटवार—
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बाबा रामदेव के बयान को न केवल अपमानजनक बताया, बल्कि इसे सनातन धर्म के सिद्धांतों पर सीधा प्रहार कहा। उन्होंने बाबा रामदेव को कानूनी नोटिस भेजने की बात कही।
उन्होंने कहा, “मैंने केवल यह कहा था कि अनुच्छेद 370 के तहत गोहत्या पर प्रतिबंध था, और यह हमारे धर्म के लिए उचित था। लेकिन बाबा रामदेव ने मेरे बयान को गलत संदर्भ में पेश किया। यह धर्माचार्य की गरिमा और सनातन धर्म के सिद्धांतों पर हमला है।”
गोहत्या कानून की बहाली की मांग—
शंकराचार्य ने भारत सरकार से मांग की कि भारतीय न्याय संहिता में गोहत्या को रोकने के लिए सख्त प्रावधान जोड़े जाएं। उन्होंने कहा, “गोहत्या केवल धर्म का मुद्दा नहीं है, यह राष्ट्रीय अस्मिता और आस्था से जुड़ा विषय है। गोमाता हमारी संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है।”
रणबीर दंड संहिता का महत्व—
रणबीर दंड संहिता 1932 में जम्मू-कश्मीर में लागू की गई थी। इसमें गोहत्या पर सख्त प्रावधान थे। अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद यह संहिता समाप्त हो गई, और इसके स्थान पर भारतीय न्याय संहिता लागू हो गई। लेकिन इसमें गोहत्या को दंडनीय बनाने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है।
सनातन धर्म की रक्षा और विवाद का समाधान—
धर्मसभा में शंकराचार्य ने कहा कि बाबा रामदेव के बयान से सनातन धर्म को विभाजित करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “सनातन धर्म के अनुयायियों को एकजुट होकर धर्म और आस्था की रक्षा करनी चाहिए। यह समय विभाजन का नहीं, बल्कि एकता का है।”
उन्होंने बाबा रामदेव को नोटिस भेजकर उनके इरादों और आरोपों को स्पष्ट करने की मांग की।
विवाद पर विशेषज्ञों की राय—
धर्म और राजनीति के इस टकराव पर विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मुद्दों को संवाद और आपसी समझ से हल करना चाहिए। धर्म विशेषज्ञों के अनुसार, “धार्मिक नेताओं के बीच मतभेद धर्म के अनुयायियों को भ्रमित कर सकते हैं। इन विवादों से बचकर धर्म की मूल भावनाओं पर ध्यान देना चाहिए।” चारधाम यात्रा पर भ्रांतियों को तोड़ने और गोहत्या कानून की बहाली के लिए शंकराचार्य द्वारा उठाए गए कदम एक नई दिशा की ओर संकेत करते हैं। धर्म और राजनीति के बीच खिंचाव को दूर करने के लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।