मूवी रिव्यू- “फिर आयी हसीन दिलरुबा”, इश्क और इंतकाम की एक जुनूनी दास्तां

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“इश्क जुनू जब हद से बढ़ जाए

हँसते-हँसते आशिक सूली चढ़ जाए”

आशिक़ के लिए सूली चढ़ने वाले दीवाने बहुत ही कम मिलते हैं आजकल क्योंकि अब जमाना आ गया है बेंचिंग का और बेचिंग को समझने के लिए आप आजकल के अल्ट्रा मॉडर्न युवाओं से बात कर सकते हैं
बेचिंग को समझने के लिए आप आजकल के अल्ट्रा मॉडर्न युवाओं से बात कर सकते हैं।
चित्र साभार – सोशल मीडिया (तस्वीर: इंस्टाग्राम)
ख़ैर अब फ़िल्म पर वापिस आते हैं। पिछली फ़िल्म में हसीन दिलरुबा जैसे गई थी वैसे वापस नहीं आयी बल्कि उसके चाहने वाले उसके साथ साथ आ-गये। दर्शक नेटफ़्लिक्स पर और कंपाउंडर और चचा फ़िल्म में। मैं दर्शकों में शामिल था तो उसी रूप में वापस आया। पर जो देखा उसको देख कर बहुत ज़्यादा खुश नहीं हो पाया। वही हाल कंपाउंडर और चचा का भी हुआ। कहीं कहीं बोर भी हुआ, ख़ैर जाने दो। कनिका ढिल्लन की पैनी लिखाई इस फ़िल्म में उतनी नज़र नहीं आई जितनी पहले वाली में थी। कहानी को दरांती की धार पर रखने वाली राइटिंग शायद उनकी अगली फ़िल्म “दो पत्ती में” देखने को मिले।
चित्र साभार – सोशल मीडिया (तस्वीर: इंस्टाग्राम)
फ़िल्म में एक नॉवलिस्ट हैं “दिनेश पंडित” जिनके नॉवल्स के नाम पर खूब रायता बिखेरा गया है, जिसको संभालना भी मुश्क़िल पड़ रहा था। “सुरेंद्र मोहन पाठक” के क्राइम अतिरंजित उपन्यास पढ़ने वालों को नॉस्टलज़िया ज़रूर मिल जाएगा इस फ़िल्म में। उनके उपन्यासों में टाइटल भी वैसे ही होते हैं, जैसा इस फ़िल्म का हैं। मैं हमेशा से कहता हूँ कि फ़िल्म के ख़त्म होने तक उसके किरदारों को ज़ेहन में उतरना बड़ा ही ज़रूरी है, तभी फ़िल्म के साथ जस्टिस हो पाता हैं, जो हो नहीं पाया। अब फ़िल्म चालू कर ली थी तो देखनी ही पड़ गई।
चित्र साभार – सोशल मीडिया(तस्वीर: इंस्टाग्राम)
आईये अब बात करते हैं फिल्म के कुछ अहम किरदारों की, यहां तापसी पन्नू पहले भी फ़िल्म अपने कंधों उठाई घूम रही थी इस बार भी ये ज़िम्मेदारी उन्होंने ही निभाई। तापसी अब किसी भी तरह के किरदार करने के काबिल हो चुकी हैं। इसको तो मान ही लेना चाहिए। रही बात विक्रांत मसी की उनको फ़िल्म में और निखारना चाहिये था, जिससे फ़िल्म का मज़ा निसन्देह कुछ और बढ़ जाता। ज़िम्मी शेरगिल वही तनु वेड्स मनु के राजा अवस्थी के गुंडई वाले ब्रीफ़ पर ही काम कर रहे थे। बस यहाँ वो इंस्पेक्टर की भूमिका में थे मगर तेवर वही थे राजा अवस्थी वाले। इनके करियर के बेस्ट रोल का अभी इंतज़ार हैं। आदित्य श्रीवास्तव ने अपना काम किया, पैसे लिए और घर चले गये, पर इम्प्रेस नहीं कर पाये। सन्नी कौशल कुछ नया करने के चक्कर में ओवर एक्टिंग कर गये, इनको और भी इंटेंस होना पड़ेगा एक्टिंग के जॉब में। ये जोकर के जॉब में जोकर ही लगे। ऐसा लगा कैरेक्टर्स लिमिटेड रह गये।
चित्र साभार – सोशल मीडिया
फ़िल्म का लेवल-अप होना ज़रूरी था पर हुआ नहीं। डायरेक्शन के बारे में इसलिए नहीं कह रहा हूँ, क्योंकि उस डिपार्टमेंट में कुछ ख़ास नहीं था करने को। कनिका के स्क्रीनप्ले में सब कुछ लिखा मिलता है, डाइरेक्टर की ज़िम्मेदारी होती है फ़िल्म को लिखाई से आगे ले जाना, जो हुआ नहीं। लव ट्रायंगल के बीच “मेक्सिकन स्डेंडऑफ़” बनाने की कोशिश की गई पर वो कामयाब नहीं हो सकी। “जजमेंटल है क्या” में भी कनिका ढिल्लन ने कुछ ऐसा ही किया था। मर्डर – पुलिस वाले – कातिल सब एक दूसरे को कोस रहें हैं। पूरी फ़िल्म कोसमकोसी में ही नक़ल गई। हम भी “धत तेरा भला हो” कह कर साइड से कट लिये।
चित्र साभार – सोशल मीडिया
1946 में अल्फ्रिड हिचकॉक की एक फ़िल्म आयी थी “ नेटोरियस” (IMDB रेटिंग 7.9) संयोगवश ये फ़िल्म भी अगस्त में ही आयी थी। “द नेटोरियस” ये एक लड़की के प्यार में दो पुरुषों की कहानी है जिसमे ऑडियंस कैर्री ग्रांट, इनग्रिड बर्ग़मैन और क्लाउड रेन्स को कभी भूल नहीं पाते। यक़ीन ना आए तो फ़िल्म देखना। यू विल थैंक् मी लेटर। फ़िल्म वार, रोमांस, नेल बाइटिंग मोमेंट्स और सिनेमाजगत में वन ऑफ़ द बेस्ट डार्केस्ट रोमांटिक फिल्म्स ऑफ़ अल्फ्रिड हिचकॉक के लिए जानी जाती है। या यूँ कहें कि मास्टरपीस है।
“फिर आयी हसीन दिलरुबा” से भी ऐसे जादू की उम्मीद थी। जादूगरी के नाम पर आपको छुटपुट हाथ की सफ़ाई तो देखने को मिल जाएगी। “फिर आयी हसीन दिलरुबा” अढ़ाई सितारों से ही सज कर रह गई मेरे लिये।
बाक़ी
मेलोडी खाइए – ख़ुद जान जाइए… 
जय हिन्द
चित्र साभार – सोशल मीडिया
(लव ट्रायएंगल पर 1940 की अमेरिकी रोमांटिक कॉमेडी फ़िल्म “द फिलाडेल्फिया स्टोरी” भी देखी जा सकती है जिसमें कैरी ग्रांट, कैथरीन हेपबर्न, जेम्स स्टीवर्ट और रूथ हसी ने अभिनय किया है। IMDB रेटिंग 7.9)
Note- (लेखक पंद्रह साल से फ़िल्म विधा से जुड़े हुए हैं और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्मों का लगातार बारीकी से अध्यन कर रहें हैं। फ़िल्म निर्माण संबंधित सभी विषयों पर लेखक अपने अभी तक  के फ़िल्म निर्माण के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए सिनेमाजगत पर लिखते रहते है। लेखक की सिनेमा संबंधित विषयों और सिनेमाई इतिहास पर भी प्रासंगिक पकड़ है) किसी भी प्रकार की सिनेमा संबंधित जानकारी के लिए आप tarunkash@gmail.com पर लेखक से संपर्क कर सकते हैं)

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