सूबे में पिछले कई दिनों से लगातार बढ़ रही मौसम की तपिश के बाद आज हुयी बरसात भी सूबे के तापमान में कोई कमी न कर पायी बल्कि राज्य में बढ़ते राजनितिक घटनाक्रम ने राज्य के सियासी माहौल का पारा एकाएक और बड़ा दिया है।
तीन दिनों से दिल्ली में डेरा जमाए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पिछले 24 घंटों के अंदर दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर चुके हैं। मुलाकातों के इस दौर से राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें लगने लगी हैं। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत किसी भी समय राज्यपाल को इस्तीफा सौंप सकते है। जानकारी के मुताबिक दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं।
तेजी से बदल रहे राजनितिक घटनाक्रम में कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है और कौन बनेगा नया मुख्यमंत्री के लिए नए नए नामो को उछाला जाने लगा है।
खबर है कि कल विधायकों की बैठक होने जा रही है जिसमे नए मुख्यमंत्री के नाम का फैसला किया जा सकता है।
सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत किसी भी समय राज्यपाल को इस्तीफा सौंप सकते है। जानकारी के मुताबिक दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं।
ख़बरों के मुताबिक मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत आज रात 9-30 पर प्रेस को सम्बोधित करेंगे।
तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे की अटकलें इसलिए लग रही हैं क्योंकि उनको अपने पद पर बने रहने के लिए 10 सितंबर तक विधानसभा चुनाव जीतना होगा, यह संवैधानिक बाध्यता है। रावत फिलहाल पौड़ी लोकसभा सीट से सांसद हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाए जाने के बाद उन्हें 10 मार्च को मुख्यमंत्री बनाया गया था।
उत्तराखंड में अटकलें लगाई जा रही थी कि रावत गढ़वाल क्षेत्र में स्थित गंगोत्री सीट से उपचुनाव लड़ सकते हैं। राज्य में विधानसभा की दो सीटें गंगोत्री और हल्द्वानी खाली हैं जहां उपचुनाव होना था। अगले साल फरवरी-मार्च में ही विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में उपचुनाव कराने का फैसला निर्वाचन आयोग पर ही निर्भर करता है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसे में निर्वाचन आयोग के लिए उपचुनाव कराना इतना आसान नहीं है। उपचुनाव न होने की स्थिति में संवैधानिक संकट का हल तभी निकल सकता है जब मुख्यमंत्री रावत की जगह पर किसी ऐसे व्यक्ति को कमान सौंपी जाए जो विधायक हो।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसे में निर्वाचन आयोग के लिए उपचुनाव कराना इतना आसान नहीं है। उपचुनाव न होने की स्थिति में संवैधानिक संकट का हल तभी निकल सकता है जब मुख्यमंत्री रावत की जगह पर किसी ऐसे व्यक्ति को कमान सौंपी जाए जो विधायक हो।