उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हो रहे हिमस्खलन से वैज्ञानिक चिंतित, विशेषज्ञों की टीम करेगी निरीक्षण

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परिवर्तन प्रकृति का नियम है यूँ तो यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जो विभिन्न तत्वों में चाहे वो बड़ा हो या छोटा पदार्थ हो अपदार्थ अनवरत चलती रहती है। यह हमारे प्राकृतिक और सामाजिक- सांस्कर्तिक पर्यावरण को प्रभावित करती है। लेकिन हिमालय क्षेत्र की केदारनाथ की पहाड़ियों पर हो रहे पिछले दो हफ़्तों के दौरान आये तीन भूस्खलन ने आम लोगों के साथ-साथ सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिमस्खलन की घटनाएं सितंबर-अक्तूबर में होने से वैज्ञानिक चिंतित हैं। जिसके विस्तृत अध्ययन को लेकर कर पता लगाया जा सके इसको लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी  संस्थान के वैज्ञानिकों की टीमें भेजी जा रही हैं।

केदारनाथ धाम में मंदिर परिसर से करीब पांच से सात किमी की दूरी पर चौराबाड़ी ग्लेशियर के टूटने की घटनाएं हो रही हैं। बीती 22 सितंबर को हिमस्खलन की पहली घटना हुई। इस दृश्य को लोगों ने कैमरे में कैद किया। इसके बाद 26 सितंबर को केदारनाथ के इसी क्षेत्र में हिमस्खलन हुआ। 27 सितंबर को भी केदारनाथ की पहाड़ियों पर हिमस्खलन हुआ था। हालांकि ये घटना रिकॉर्ड नहीं हो पाई थी। 1 अक्टूबर को भी केदारनाथ की पहाड़ी पर हिमस्खलन हुआ था।

हालांकि, इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते जहां गर्मी और बारिश में बदलाव देखने को मिल रहा, वहीं उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सितंबर-अक्तूबर माह में ही बर्फबारी होने से हिमस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. कालाचॉद सांई का मानना है कि फिलहाल उच्च  हिमालयी क्षेत्रों में सितंबर-अक्तूबर में हो रही बर्फबारी ग्लेशियरों की सेहत के लिए तो ठीक है, लेकिन हिमस्खलन की घटनाएं थोड़ी चिंताजनक हैं। हिमस्खलन को लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट के दो वैज्ञानिकों विनीत कुमार और मनीष मेहता की टीम केदारनाथ अध्ययन के लिए जाएंगी।

हिमस्खलन किसी ढलान वाली सतह पर तेज़ी से हिम के बड़ी मात्रा में होने वाले बहाव को कहते हैं। यह आमतौर पर किसी ऊँचे क्षेत्र में उपस्थित हिमपुंज में अचानक अस्थिरता पैदा होने से आरम्भ होते हैं। शुरु होने के बाद ढलान पर नीचे जाता हुआ हिम गति पकड़ने लगता है और इसमें बर्फ की और भी मात्रा शामिल होने लगती है।


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