मसूरी की भद्राज पहाड़ी पर संपन्न हुआ भगवान बलराम का ऐतिहासिक मेला, उमड़े हजारों श्रद्धालु
मसूरी, 18 अगस्त। उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों में से एक भद्राज मेला संपन्न हो गया। मसूरी से करीब 15 किलोमीटर दूर दुधली की भद्राज पहाड़ी पर भगवान बलराम के मंदिर में आयोजित इस दो दिवसीय मेले में जौनसार, पछुवादून, जौनपुर, मसूरी, विकासनगर और देहरादून सहित विभिन्न क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालु पहुंचे। भारी बारिश के बावजूद श्रद्धा और आस्था का सैलाब उमड़ा और भक्तों ने भगवान बलभद्र का दुग्धाभिषेक कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की।

मंदिर प्रांगण में जैसे ही भगवान बलराम की आरती हुई, ढोल-दमाऊं की थाप, शंखनाद और जय-जयकार से पूरी वादी गूंज उठी। मेले में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी आकर्षण का केंद्र रहीं। स्थानीय कलाकारों ने जौनसारी लोकनृत्य और लोकगीत प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया।
भद्राज मेले से जुड़ी मान्यता
मंदिर समिति के अध्यक्ष राजेश नौटियाल ने बताया कि इस मेले की जड़ें प्राचीन मान्यताओं से जुड़ी हैं। लोककथा के अनुसार प्राचीन काल में चौमासे के दौरान जब ग्रामीण अपने पशुओं को लेकर इस पहाड़ी पर आते थे, तो एक राक्षस उनके मवेशियों को मार डालता था। तब ग्रामीण भगवान बलराम की शरण में पहुंचे। बलराम ने राक्षस का वध कर लंबे समय तक चरवाहों के साथ रहकर पशुओं की रक्षा की। तभी से यहां भद्राज देवता के रूप में उनकी पूजा की जाने लगी।
पौराणिक कथा भी जुड़ी है
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान बलराम ऋषि वेश में इस क्षेत्र से गुजरे, तब यहां के पशुओं में एक भयानक बीमारी फैल गई थी। ग्रामीणों ने उनसे मदद की गुहार लगाई। बलराम ने न केवल पशुओं को स्वस्थ किया, बल्कि आशीर्वाद भी दिया कि कलयुग में वे इसी स्थान पर भद्राज देवता के रूप में वास करेंगे।
उत्तराखंड का अद्वितीय मंदिर
विशेष बात यह है कि यह उत्तराखंड का एकमात्र मंदिर है जो भगवान बलराम को समर्पित है। यहां हर साल लगने वाला भद्राज मेला न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि क्षेत्र की लोक संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रतीक बन गया है।