उत्तराखंड विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाला: हाईकोर्ट सख्त, हटाए गए कर्मचारियों से हो रही वसूली, अगली सुनवाई 21 जुलाई को

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नैनीताल/देहरादून/उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में हुई कथित ‘बैकडोर भर्ती’ घोटाले पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए मामले की अगली तारीख 21 जुलाई तय की है। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से यह दलील दी गई कि सरकार द्वारा हटाए गए कर्मचारियों से वसूली की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है, इसलिए मामले की शीघ्र सुनवाई आवश्यक है।

PHOTO – OM JOSHI

क्या है मामला?

देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर और बैजनाथ की ओर से दाखिल जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में वर्ष 2000 से लेकर 2022 तक नियमों को ताक पर रखकर सैकड़ों नियुक्तियां की गईं। इन नियुक्तियों में किसी प्रकार की लिखित परीक्षा, विज्ञापन या आरक्षण नीति का पालन नहीं किया गया।

याचिका में यह भी बताया गया कि विधानसभा की ओर से गठित एक जांच समिति ने 2016 के बाद की गई 228 नियुक्तियों को रद्द कर दिया है, लेकिन उससे पहले की अवैध भर्तियों को नजरअंदाज कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि 2000 से 2016 तक की भर्तियों की भी निष्पक्ष जांच की जाए, क्योंकि यह सिलसिला राज्य गठन के बाद से ही चलता आ रहा है।

हटाए गए कर्मचारियों से हो रही वसूली

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि राज्य सरकार अब उन कर्मचारियों से सरकारी धन की वसूली कर रही है, जिन्हें जांच के बाद अवैध रूप से नियुक्त पाया गया और पद से हटाया गया। यह वसूली उन वेतन और भत्तों की है, जो इन कर्मचारियों को सेवा काल में मिले। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि यह वसूली केवल कर्मचारियों तक सीमित न रहकर उन राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंचे, जिन्होंने इस प्रक्रिया में मिलीभगत कर सरकारी धन का दुरुपयोग किया।

कानूनी उल्लंघन का आरोप

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 6 फरवरी 2003 के शासनादेश के बावजूद यह नियुक्तियां की गईं, जिसमें स्पष्ट रूप से तदर्थ नियुक्तियों पर रोक लगाई गई थी। इसके अतिरिक्त, यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 16 (सरकारी नौकरी में समान अवसर) और 187 (विधानसभा की कार्यप्रणाली से संबंधित प्रावधान) का भी उल्लंघन है।

साथ ही याचिका में उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 की सेवा नियमावली और उत्तराखंड विधानसभा की 2011 की सेवा नियमावली के भी उल्लंघन का हवाला दिया गया है। दोनों नियमावलियों में स्पष्ट प्रक्रिया और चयन मानदंड निर्धारित हैं, जिनका पालन नहीं किया गया।

याचिकाकर्ता की मांग

  • हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में स्वतंत्र जांच कराई जाए।

  • दोषी अधिकारियों, कर्मचारियों और सिफारिश करने वाले राजनेताओं से वेतन, भत्तों व अन्य लाभों की वसूली हो।

  • इस मामले में आपराधिक मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाए।

  • 2016 से पहले की नियुक्तियों की फिर से समीक्षा कर अवैध नियुक्तियों को रद्द किया जाए।

अगली सुनवाई 21 जुलाई को

हाईकोर्ट ने सभी तर्कों को संज्ञान में लेते हुए मामले की अगली सुनवाई 21 जुलाई 2025 को निर्धारित की है। अब यह देखना अहम होगा कि क्या अदालत सरकार को 2016 से पहले की भर्तियों की जांच के लिए भी बाध्य करेगी और क्या दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।

(डिस्क्लेमर: यह खबर सार्वजनिक स्रोतों और न्यायिक अभिलेखों पर आधारित है। सभी तथ्यों का सत्यापन उपलब्ध जानकारी के आधार पर किया गया है। हम पत्रकारिता की नैतिकता और कानूनी दायित्वों का पूर्ण पालन करते हैं)


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