एक अनोखी होली ! दयारा बुग्याल

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जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 38 किलोमीटर दूर स्थित है रैथल गावं, यहाँ से करीब 10 किलोमीटर की खड़ी चढाई पर है दयारा बुग्याल, जहाँ धूमधाम से मनाया जाता है बटर फेस्टिवल।
जैसे जैसे आप आगे बढ़ते हैं रास्ते मे मनमोहक दृश्य दिखाई देते है, आपकी निगाहें लगातार इन दृश्योँ से दो चार होती रहती हैं।
खड़ी चढाई और पथरीले रास्ते भी सैलानियों को हतोत्साहित नहीं होने देते, रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर दृश्य आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहते हैं।
धूप और बादलों की अठखेलियां आपका ध्यान लगातार अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
रैथल से करीब चार किलोमीटर की चढ़ाई के बाद पड़ता है पहला पड़ाव छनियाँ यहां कुछ देर रुककर सैलानी तरोताज़ा होकर आगे के सफर पर निकलते हैं
ज्यूँ ज्यूँ आप ऊपर की तरफ बढ़ते हैं अनेकों पर्वत श्रृंखलाएं आपको अपनी ऒर खींचती प्रतीत हैं आप जल्द से जल्द वहां पहुँचने को उद्देलित होने लगते हो।
अंतिम पड़ाव !
दयारा बुग्याल से करीब एक किलोमीटर पहले यहाँ आप कैंप और स्थानीय निवासियों की छानियोँ में रुक कर जलपान आदि कर सकते हैं यहाँ बटर फेस्टिवल की अंतिम तैयारियों को अंजाम दिया जाता है।
समुद्र तल से 13000 फ़ीट की ऊंचाई पर आखिरकार आप पहुँचते है दयारा बुग्याल जहाँ स्थानीय लोग पंडाल लगाकर बटर फेस्टिवल का त्यौहार मानते हैं।
फेस्टिवल में राधा और कृष्ण के प्रतीक के तौर पर एक युवती और युवक को राधा कृष्ण बनाया जाता है जो मुख्य गेट पर लगे मखन की मटकी को तोड़ कर इस त्यौहार की शुरुआत करते हैं।
मटकी टूटते ही सभी लोग एक दूसरे पर अपनी अपनी पिचकारियों से जो दूध और छाज से भरी होती हैं डालते हैं और एक दूसरे के गालों पर मक्खन लगते हैं
रवाई जोन सार क्षेत्र में रासु नृत्य प्रसिद्ध नृत्य है। रासु नृत्य में झूमते गाते लोगों को देखकर हर कोई उनके साथ नृत्य में डूब जाता है ,देशी विदेशी , पुरुष ,महिलाएं और बच्चे सभी रासु नृत्य करते नज़र आते हैं
महिलाएं अपनी पारंपरिक वेशभूषा धारण करती हैं इनका कहना है कि साल भर उनके दुधारू पशु इन बुग्यालों में चुगान करते हैं और देवता ही उनके जानवरों की रक्षा करते हैं इसलिए वे देवता का आह्वान करके देवता को सभी दुग्ध पदार्थ समर्पित करते हैं।

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