कहा जाता है की राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार का काम परदे के पीछे रहकर हर जगह से सूचनाएं एकत्रित्र कर सरकार को सलाह देना हुआ करता है लेकिन नरेंद्र मोदी ने अजीत डोभाल की प्रतिभा का इस्तेमाल जरा हटकर ही किया है।
नरेंद्र मोदी और अजीत डोभाल के बीच घनिष्टता बढ़ने के कई किस्से मशहूर हैं. मसलन डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद जब नरेंद्र मोदी पहली बार अमरीका गए तो जब मोदी व्हाइट हाउस के लॉन में संवादादाताओं के सामने अपना वक्तव्य पढ़ने ही वाले थे कि तेज़ हवा ने डायस पर रखे मोदी के भाषण के कुछ काग़ज़ उड़ा दिए। भारतीय राजदूत के साथ बैठे 72 वर्षीय डोभाल ने दौड़कर उड़ गए काग़ज़ों को जमा किया, उन्हें करीने से लगाया और अपने बॉस के हवाले किया। मोदी ने वो भाषण बिना किसी व्यवधान के दिया. प्रधानमंत्री के साथ गए अधिक्तर पत्रकारों का ध्यान उस तरफ़ नहीं गया लेकिन एक अख़बार ने ज़रूर सुर्ख़ी लगाई- (‘हाऊ डोभाल रेस्क्यूड पीएम मोदी इन व्हाइट हाउस इवेंट.)
तब बात चाहे हाल ही में हुए दिल्ली दंगे हों, या कश्मीर में धारा 370 हटाने के दौरान या फिर चीन-भारत मसले पर एलएसी को लेकर पिछले दिनों जब डोभाल की चीन के रक्षा मंत्री वाँग यी से दो घंटे वीडियो कॉन्फ्रेंस के बाद चीनी सेनाओं ने उस इलाके से हटना शुरू किया जिस जगह पर वो अपना दावा जता रहे थे। डोभाल हमेशा से ही मोदी के लिए संजीवनी और भारत के लिए तुरुप का इक्का साबित हुए हैं।
1998 में अमेरिका की तर्ज पर बनाये गए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाकार का पद अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में बना इस पर पहली नियुक्ति पूर्व राजनयिक बृजेश मिश्रा की हुई थी। भारत के इतिहास में अजीत डोभाल पांचवे राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार हैं।
मोदी से उनकी नजदीकियां उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले तब ही शुरू हो गयी थी जब डोभाल विवेकानंद फ़ाउंडेशनके प्रमुख हुआ करते थे।
2014 में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार के पद के लिए पूर्व विदेश सचिव कँवल सिब्बल, वर्तमान विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर, पूर्व राजनयिक हरदीप पूरी और अजीत डोभाल के नाम पर विचार हुआ तो नरेंद्र मोदी की पहली पसंद बने अजीत डोभाल और आखिरकार डोभाल के नाम पर मोहर लगी। वे भारत के एकमात्र नागरिक हैं जिन्हे शांतिकाल में दिया जाने वाले दूसरे सबसे बड़े पुरुष्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गे है। अजीत डोभाल ने हमेशा से ही भारत के लिए एक सुपर हीरो की भूमिका निभाई है खतरनाक कारनामों को नजाम दे चुके हैं जिन्हे सुनकर जेम्स बांड किरदारों के किस्से भी बेमानी लगते हैं उन्हें हमेशा से एक ऑपरेशन मैन मन जाता है।इससे पहले भी डोभाल ने अपने इंटेलिजेंस ब्यूरो के कार्यकाल में कई सफल ऑपरेशनों को अंजाम दिया है
आइए जानते हैं अजीत डोभाल के कुछ रोमांचक किस्सों के बारे में :
1. भारतीय सेना के एक महत्वपूर्ण ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के दौरान उन्होंने एक गुप्तचर की भूमिका निभाई और भारतीय सुरक्षा बलों के लिए महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी उपलब्ध कराई जिसकी मदद से सैन्य ऑपरेशन सफल हो सका। इस दौरान उनकी भूमिका एक ऐसे पाकिस्तानी जासूस की थी, जिसने खालिस्तानियों का विश्वास जीत लिया था और उनकी तैयारियों की जानकारी मुहैया करवाई थी।
2. जब 1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आईसी-814 को काठमांडू से हाईजैक कर लिया गया था तब उन्हें भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार बनाया गया था। बाद में, इस फ्लाइट को कंधार ले जाया गया था और यात्रियों को बंधक बना लिया गया था।
3. कश्मीर में भी उन्होंने उल्लेखनीय काम किया था और उग्रवादी संगठनों में घुसपैठ कर ली थी। उन्होंने उग्रवादियों को ही शांतिरक्षक बनाकर उग्रवाद की धारा को मोड़ दिया था। उन्होंने एक प्रमुख भारत-विरोधी उग्रवादी कूका पारे को अपना सबसे बड़ा भेदिया बना लिया था।
4. अस्सी के दशक में वे उत्तर पूर्व में भी सक्रिय रहे। उस समय ललडेंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट ने हिंसा और अशांति फैला रखी थी, लेकिन तब डोवाल ने ललडेंगा के सात में छह कमांडरों का विश्वास जीत लिया था और इसका नतीजा यह हुआ था कि ललडेंगा को मजबूरी में भारत सरकार के साथ शांतिविराम का विकल्प अपना पड़ा था।
5.डोभाल ने वर्ष 1991 में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट द्वारा अपहरण किए गए रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाने की सफल योजना बनाई थी।
6. डाभोल ने पूर्वोत्तर भारत में सेना पर हुए हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई और भारतीय सेना ने सीमा पार म्यांमार में कार्रवाई कर उग्रवादियों को मार गिराया। भारतीय सेना ने म्यांमार की सेना और एनएससीएन खाप्लांग गुट के बागियों सहयोग से ऑपरेशन चलाया, जिसमें करीब 30 उग्रवादी मारे गए हैं।
7. डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां भी संभालीं और फिर करीब एक दशक तक खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा का लीड किया।