प्रकृति का आभार मनाती एक अनूठी होली, बटर फेस्टिवल

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रंगों और फूलों से होली के बारे में आपने जरूर सुना होगा। मगर क्या आपने कभी  दूध-मक्खन-मट्ठे से खेली जाने वाली होली के बारे में सुना है? जी हाँ उत्तराखंड में एक ऐसी जगह भी है, जहां पर सदियों से दूध-मक्खन की अनूठी
होली खेली जाती है। आईये आपको बताते हैं कैसे मनाई जाती है यह होली और क्या है खासियत इस होली की।

उत्तराखंड के समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर 30 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में भाद्रप्रद महीने की संक्रांति को सदियों से रैथल,बार्सू और समीपवर्ती ग्रामीणों द्वारा बटर फेस्टिवल यानि अंढूडी उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस अनोखे उत्सव का आयोजन रैथल गांव की दयारा पर्यटन उत्सव समिति व ग्राम पंचायत बीते कई वर्षों से करते आ रही है।

ऊंचे बुग्यालों में उगने वाली औषधीय गुणों से भरपूर घास और अनुकूल वातावरण का फर्क दुधारु पशुओं पर पड़ता है, जिससे उनकी दूध देने की क्षमता भी बढ़ती है। सर्दियों में जब ग्रामीण अपने पशुओं के साथ बुग्याल से गांव की ओर लौटते हैं तो स्वयं और पशुओं की रक्षा के लिए दूध और मक्खन चढ़ाकर प्रकृति का आभार जताते हैं। इसी खुशी में यहां दूध-मक्खन की होली के साथ-साथ लोक संस्कृति के कार्यकर्मो का आयोजन भी किया जाता है।

दयारा बुग्याल जाने के लिए उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर रैथल या फिर बार्सू गांव पहुंचा जाता है। एक रास्ता बार्सू गांव से होकर जाता है जबकि दूसरा रास्ता रैथल गांव से होकर जाता है। दोनों ट्रैकिंग रूट बेहद ही रोमांचकारी हैं। बार्सू गांव से दयारा बुग्याल जाने के लिए सात किलोमीटर की पैदल चढ़ाई है। जबकि रैथल से आठ किलोमीटर दूरी पर हैं। देश विदेश से पर्यटक इस अनूठे उत्सव को देखने आते हैं।


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