उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे लैंडस्लाइड जोन, हर साल चिन्हित हो रहे 80 से 100 नए क्षेत्र
देहरादून। हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भूस्खलन का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। स्थिति यह है कि लैंडस्लाइड जोन की संख्या के लिहाज से उत्तराखंड देश में तीसरे स्थान पर आ गया है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में कुल 14,780 लैंडस्लाइड जोन मौजूद हैं। इससे पहले नंबर पर अरुणाचल प्रदेश (26,213) और दूसरे पर हिमाचल प्रदेश (17,102) है।
सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि उत्तराखंड में हर साल 80 से 100 नए भूस्खलन क्षेत्र जुड़ते जा रहे हैं। प्रदेश के रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी और टिहरी जिले सबसे ज्यादा प्रभावित माने जा रहे हैं। राज्य सरकार ने अपने स्तर पर 53 संवेदनशील लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए हैं, जिन पर आपदा प्रबंधन विभाग लगातार काम कर रहा है।
राष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ाने वाला आंकड़ा
GSI के अनुसार, देश के 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का लगभग 4.2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भूस्खलन के खतरे के लिए संवेदनशील है। राष्ट्रीय स्तर पर 179 जिलों में ऐसे जोन मौजूद हैं। रिपोर्ट बताती है कि देशभर में 87,474 सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र दर्ज किए गए हैं। इनमें से उत्तराखंड के 22 प्रतिशत क्षेत्र अतिसंवेदनशील श्रेणी में आते हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत केवल 15 प्रतिशत है।
“हम लगातार नए जोन चिन्हित कर रहे हैं”
उत्तराखंड आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन ने [मीडिया से बातचीत में] कहा:
“राज्य में अब तक 53 लैंडस्लाइड क्षेत्र आधिकारिक रूप से चिन्हित किए जा चुके हैं। सभी का डाटा विभाग के पास मौजूद है और इन पर संवेदनशीलता कम करने के लिए काम चल रहा है। सरकार की प्राथमिकता है कि आपदा से निपटने की क्षमता बढ़ाई जाए।”
विशेषज्ञों की चेतावनी
जियोलॉजिस्ट प्रो. डीके शाही ने [मीडिया से बातचीत में] कहा:
“हिमालय क्षेत्र में जितना ज्यादा छेड़छाड़ और विकास कार्य होगा, उतना ही लैंडस्लाइड का खतरा बढ़ेगा। सड़क, हाइड्रो प्रोजेक्ट और वनों की कटाई ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। बारिश की बढ़ती मात्रा भी भूस्खलन की घटनाओं में तेजी ला रही है। जिन इलाकों में बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं, वहीं सबसे ज्यादा लैंडस्लाइड रिकॉर्ड किए जा रहे हैं।”
बढ़ता खतरा, घटती राहत
उत्तराखंड में भूस्खलन न सिर्फ जनजीवन बल्कि राष्ट्रीय राजमार्गों और विकास योजनाओं को भी प्रभावित कर रहा है। हर साल मानसून में कई दिनों तक सड़कें बंद रहती हैं और कनेक्टिविटी बाधित होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भयावह हो सकती है।