7 फरवरी 1968 को भारतीय वायुसेना का एएन-12 विमान चंडीगढ़ से लेह के लिए उड़ान भरते समय हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे में बर्फीले तूफान की चपेट में आकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस विमान में सेना के 92 जवानों समेत कुल 102 लोग सवार थे। मौसम की विषम परिस्थितियों और बर्फीले पहाड़ों के चलते उस समय कोई भी रेस्क्यू अभियान सफल नहीं हो सका, और विमान तथा उसमें सवार जवान लापता हो गए।
रेस्क्यू की शुरुआत: 2003 में मिली सुराग—
साल 2003 तक इस विमान के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी। लेकिन 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान की एक टीम ने लाहौल-घाटी की सीबी रेंज में विमान का मलबा खोजा। इस खोज ने एक नई उम्मीद जगाई और भारतीय सेना ने फिर से रेस्क्यू अभियान शुरू किया। इसके बाद डोगरा स्काउट्स की सहायता से कई विशेष अभियान चलाए गए। 2005, 2006, 2013, और 2019 में सेना ने व्यापक प्रयास किए और अब तक कुल 9 जवानों के शव बरामद हो चुके हैं।
56 साल बाद मिले चार और वीरों के अवशेष—
हाल ही में सेना की संयुक्त डोगरा स्काउट और तिरंगा माउंटेन रेस्क्यू टीम ने रोहतांग दर्रे के पास विमान हादसे में मारे गए चार और जवानों के अवशेष खोज निकाले। इन जवानों की पहचान उत्तराखंड के नारायण सिंह, उत्तर प्रदेश के मलखान सिंह, हरियाणा के मुंशी राम, और केरल के थॉमस चरण के रूप में की गई। पहचान उनके वर्दी में मिले नेमप्लेट, बैज, और व्यक्तिगत सामान से की गई।
कैसे हुआ रेस्क्यू ऑपरेशन?—
यह रेस्क्यू ऑपरेशन बेहद चुनौतीपूर्ण था। लाहौल-स्पीति की चंद्रभागा पहाड़ियों पर 12 महीने बर्फ जमी रहती है और इन ऊंची पहाड़ियों में कई ग्लेशियर भी हैं। 1968 में इन इलाकों में रेस्क्यू अभियान चलाना लगभग असंभव था। लेकिन 2003 में विमान के मलबे का पता लगने के बाद, सेना ने आधुनिक तकनीक और सेटेलाइट संचार का उपयोग कर अभियान को गति दी।
नारायण सिंह की 56 साल लंबी प्रतीक्षा का अंत—
चमोली जिले के कोलपुड़ी गांव के नारायण सिंह भी इस हादसे में शहीद हुए थे। उनकी पार्थिव देह 56 साल बाद अब घर लौट रही है। उनके परिवार ने वर्षों तक उनके लौटने का इंतजार किया, खासतौर पर उनकी पत्नी बसंती देवी, जो 42 साल तक अपने पति की वापसी की प्रतीक्षा करती रहीं, लेकिन 2011 में उनका निधन हो गया।
वीर जवान मलखान सिंह का सम्मान—
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के फतेहपुर गांव के मलखान सिंह का पार्थिव शरीर भी 56 साल बाद बर्फ में दबा मिला। जब एयरफोर्स के जवान उनके परिवार को यह खबर देने पहुंचे, तो पूरे गांव में शोक और गर्व का माहौल था। उनका शव 3 अक्टूबर को गांव पहुंचेगा, जहां पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा।
भारत का सबसे लंबा रेस्क्यू अभियान—
यह अभियान भारत का सबसे लंबा और कठिन रेस्क्यू अभियान माना जा रहा है। 56 साल के बाद भी सेना ने हार नहीं मानी और पहाड़ों की बर्फ के नीचे दबे अपने वीर सपूतों को खोज निकाला। इन जवानों की वापसी उनके परिवारों और देश के लिए एक गौरव का क्षण है, भले ही यह 56 साल बाद संभव हो सका।
सेना के अथक प्रयास—
भारतीय सेना और अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान के पर्वतारोहियों ने इस पूरे ऑपरेशन में अहम भूमिका निभाई। साल 2003 से लेकर 2019 तक विभिन्न अभियानों में जो भी अवशेष मिले, उन्हें पहाड़ों से निकालकर सम्मानपूर्वक उनके परिवारों को सौंपा गया। यह मिशन सेना के अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है, जो अपने हर सैनिक को घर वापस लाने की कोशिश में कभी हार नहीं मानती।
56 साल बाद तिरंगे में लिपटे इन शहीदों का गांव लौटना, उनके परिवारों और देश के लिए एक भावुक और गर्व का क्षण है।