“आखिर तुम्हें आना है” ये जानते हुए भी बरसात का मौसम हमारे लिए प्रतिवर्ष चुनौती बन कर आता है। हर साल बरसात आती है और लाती है अपने साथ बहुत सी दुश्वारियाँ जिसमें मनुष्य, जानवर, पेड़-पौधे सहित न जाने कितना कुछ बर्बाद हो जाता है। इन दिनों एक बार फिर बरसात अपना कहर दिखाने लगी है…….
पेश है एक संछिप्त रिपोर्ट—-
उत्तराखंड में गर्मी हो, सर्दी हो, या हो बरसात। यह पहाड़ी राज्य हमेशा से ही मौसम की दुश्वारियां झेलता रहा है, पहाड़ों में बरसात आफत बनकर बरस रही है, ज्यादातर जिलों में पिछले चार दिनों से इस कदर बारिश हो रही है कि पहाड़ दरकने लगे हैं। उनका मलबा सड़कों पर आ रहा है, जो कई बार जानलेवा भी साबित हो रहा है।
दुःख इस बात का ज्यादा है की पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया गया और एक जैसी समानांतर घटनाएं लगातार हो रही हैं। मौसम के “ऑरेंज अलर्ट” पर भी विश्वास नहीं किया जा रहा क्यूंकि या तो ये इतने विश्वसनीय नहीं होते या फिर केंद्र इतने संवेदनशील क्षेत्र को ध्यान में रखकर उचित उपकरण नहीं लगा पा रही। ध्यान रहे की ये भारत का ऊपरी भू-भाग है जहाँ से कई प्रसिद्ध नदियाँ निकलती हैं और हमें पता है कि जीवन नदियों किनारे ही बसता है।
उत्तराखण्ड में आपदा राहत एवं सहायता हेतु नंबर👇 pic.twitter.com/wKnzgzjCCE
— Uttarakhand DIPR (@DIPR_UK) July 8, 2024
यूं तो “प्रकृति पर किसी का जोर नहीं चलता और प्रकृति का यही नियम है हम क्या ही कर सकते हैं ” हमारा ये कहना एक हद तक तो ठीक है, मगर मानव जब खुद इन परिस्थितियों को, इस आपदा का न्योता देता नजर आये तो दुखद है।प्रकृति के आगे भले ही मनुष्य का कोई बस न चलता हो मगर नदियोँ किनारे अवैध निर्माण, ऑल वैदर रोड के नाम पर पेड़ों का सफाया ,पहाड़ों को विस्फोटों और उनको खोखला बना कर छोड़ देना भी आपदा से हुए नुक्सान में जबरदस्त इजाफा कर रहे हैं।
प्रतिवर्ष आने वाली इस प्राकृतिक आपदा से लड़ने को हमारी तैयारियों और इस तरह के संकट से निपटने की चुनौतियों से हम, अगर हम शीघ्र ही पार नहीं पा पाए और आधी-अधूरी तैयारियों के साथ अगर हम इस आपदा से लड़ेंगे तो हमें भविष्य में इससे भी बड़ी त्रासदियों से गुजरना होगा। पूर्व में केदारनाथ में आयी आपदा अभी हम भूल भी नहीं पाए हैं और वह रह रह कर हमें परेशान किया ही करती है।