उत्तराखंड में नगर निकाय चुनाव से पहले एक बार फिर मलिन बस्तियों का मुद्दा गरमाया, अध्यादेश की अवधि बढ़ाने की तैयारी में सरकार

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देहरादून। उत्तराखंड में नगर निकाय चुनाव नजदीक आते ही मलिन बस्तियों के नियमितीकरण का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। कांग्रेस पार्टी जहां मलिन बस्तियों को नियमित करने की पुरजोर मांग कर रही है, वहीं भाजपा सरकार इन बस्तियों के अस्तित्व को बचाने के लिए एक नया अध्यादेश लाने की तैयारी में है। सरकार की योजना है कि 23 अक्टूबर को मंत्रिमंडल की बैठक में इस अध्यादेश का प्रस्ताव पेश किया जाएगा, जिससे इन बस्तियों को अगले तीन साल तक और संरक्षण मिल सके।

चित्र – ओम जोशी

अध्यादेश की समयसीमा और चुनावी दांव— 

मौजूदा अध्यादेश, जो मलिन बस्तियों को संरक्षण प्रदान करता है, उसकी अवधि 23 अक्टूबर 2023 को समाप्त हो रही है। इस अध्यादेश का कार्यकाल पहली बार 2018 में तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा लाया गया था, ताकि 2012 में उत्तराखंड हाईकोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश के बाद बस्तियों के ध्वस्तीकरण को रोका जा सके। इसका समय तीन साल के लिए निर्धारित किया गया था, जो 2021 में समाप्त हो गया था। इसके बाद सरकार ने इसे तीन साल के लिए फिर से बढ़ा दिया था, जिसकी अवधि अब 23 अक्टूबर को खत्म हो रही है।

चित्र साभार – सोशल मीडिया

शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने इस बात की पुष्टि की है कि सरकार 23 अक्टूबर को मंत्रिमंडल की बैठक में अध्यादेश का प्रस्ताव लाकर इसे एक बार फिर तीन साल के लिए बढ़ाएगी। मंत्री का कहना है कि सरकार बस्तियों में रहने वाले लोगों के भविष्य को लेकर गंभीर है और उनकी सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाएगी।

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मलिन बस्तियों पर सियासी नजरें, बड़े वोट बैंक की होड़—

दिसंबर 2023 में प्रस्तावित नगर निकाय चुनावों को देखते हुए, मलिन बस्तियों का यह मुद्दा राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही पार्टियां इन बस्तियों में रहने वाले लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही हैं, क्योंकि ये बस्तियां एक बड़े वोट बैंक का प्रतिनिधित्व करती हैं। कांग्रेस जहां इन बस्तियों को नियमित करने की मांग कर रही है, वहीं भाजपा ने इन्हें संरक्षित रखने के लिए अध्यादेश लाने का रास्ता चुना है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में इस मामले पर बयान देते हुए कहा, “मलिन बस्तियां यथावत रहेंगी। सरकार इन बस्तियों और उनमें रहने वाले लोगों के लिए पूरी तरह से संवेदनशील है। हमारा प्रयास है कि जहां-जहां बस्तियां हैं, वहीं पर उन्हें सुरक्षित रखा जाए।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार इस दिशा में ठोस कार्य योजना के साथ आगे बढ़ेगी।

चित्र -ओम जोशी

मलिन बस्तियों का इतिहास और संघर्ष—

देहरादून की 129 मलिन बस्तियों समेत पूरे उत्तराखंड में कुल 582 मलिन बस्तियां हैं, जिनमें लगभग 40 हजार परिवार बसे हुए हैं। इन बस्तियों का इतिहास वर्ष 2012 में उस समय चर्चा में आया, जब एनजीटी और उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे। इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इन बस्तियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू की और कुछ निवासियों को मालिकाना हक भी दिया। लेकिन 2017 में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा सरकार ने इन बस्तियों के ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए 2018 में अध्यादेश लाया था।

चित्र साभार – सोशल मीडिया

साल 2018 में नगर निकाय चुनाव से पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने देहरादून समेत अन्य शहरों में स्थित मलिन बस्तियों को खाली कर उनके पुनर्वास के आदेश दिए थे। इसके जवाब में तत्कालीन भाजपा सरकार ने प्रदेश की 582 मलिन बस्तियों को अस्थाई सुरक्षा प्रदान करने के लिए अध्यादेश लाया था। सरकार ने उस समय कहा था कि तीन साल की अवधि में इन बस्तियों का स्थायी समाधान निकाल लिया जाएगा। लेकिन इस अवधि के खत्म होते ही 2021 में अध्यादेश को फिर तीन साल के लिए बढ़ा दिया गया।

चित्र – ओम जोशी

निकाय चुनाव से पहले अध्यादेश की अहमियत—

अध्यादेश की मौजूदा अवधि समाप्त होने के बाद, यदि इसे नहीं बढ़ाया गया, तो देहरादून समेत प्रदेश भर की 582 मलिन बस्तियां अवैध घोषित हो जाएंगी और हाईकोर्ट के ध्वस्तीकरण आदेश का पालन करना होगा। ऐसे में नगर निकाय चुनाव से पहले इस अध्यादेश को लेकर सरकार का रुख महत्वपूर्ण हो जाता है। भाजपा सरकार चाहती है कि इन बस्तियों को अस्थाई सुरक्षा प्रदान करते हुए आगामी चुनावों में उनकी नाराजगी से बचा जा सके।

चित्र साभार – सोशल मीडिया

मलिन बस्तियों के लोगों के लिए यह अध्यादेश उम्मीद की किरण की तरह है, लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या सरकार इस बार भी सिर्फ अस्थाई समाधान पर ही जोर देगी, या फिर इन बस्तियों के लिए कोई स्थायी नीति बनाएगी। चुनावी माहौल में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और विपक्ष के बीच इस मुद्दे पर क्या नई रणनीतियां बनती हैं, और इसका परिणाम जनता के पक्ष में कितना सकारात्मक होता है।


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