कोरोना इफेक्ट-  इस वर्ष नहीं होगा बटर फेस्टिवल 

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विश्व प्रसिद्ध दयारा बुग्याल (उत्तरकाशी) में हर वर्ष आयोजित होने वाला दूध मक्खन मट्ठा की होली के पारंपरिक अढूड़ी त्यौहार “बटर फेस्टिवल” इस कोरोना महामारी को देखते हुए रद्द करने का फैसला लिया है। आयोजक संस्था दयारा पर्यटन उत्सव समिति व ग्राम पंचायत रैथल ने बैठक कर कोविड 19 महामारी के प्रकोप को देखते हुए इस वर्ष 15-16 अगस्त को आयोजित होने वाले बटर फेस्टिवल का आयोजन रद करने का फैसला लिया है। दयारा पर्यटन उत्सव समिति का कहना है की  भीड़ जुटाने वाले किसी भी तरह का कार्यक्रम नहीं किया जा सकता और बटर फेस्टिवल जैसे विश्व प्रसिद्ध कार्यक्रम में चाहे  अनचाहे भीड़ का जुटना लाज़मी है। ऐसे में जब देश दुनिया के कई बड़े और महत्वपूर्ण कार्यक्रम टाले गए हैं तो ऐसे में बटर फेस्टिवल का आयोजन नहीं किया जा रहा है।
आइये देखते हैं पिछले वर्ष हुए हुए बटर फेस्टिवल की कुछ झलकियां और जानते हैं किस तरह मनाया जाता है यह पारंपरिक उत्सव,,,,,

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 38 किलोमीटर दूर स्थित है रैथल गावं, यहाँ से करीब 10 किलोमीटर की खड़ी चढाई पर है दयारा बुग्याल, जहाँ धूमधाम से मनाया जाता है बटर फेस्टिवल।

ज्यूँ ज्यूँ आप ऊपर की तरफ बढ़ते हैं अनेकों पर्वत श्रृंखलाएं आपको अपनी ऒर खींचती प्रतीत हैं आप जल्द से जल्द वहां पहुँचने को उद्देलित होने लगते हो।

खड़ी चढाई और पथरीले रास्ते भी सैलानियों को हतोत्साहित नहीं होने देते, पुरे रास्ते आपको रमणीक स्थल आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहते हैं।

धूप और बादलों की अठखेलियां आपका ध्यान लगातार इनकी ओर आकर्षित करती हैं।

रैथल से करीब चार किलोमीटर की चढ़ाई के बाद पड़ता है पहला पड़ाव छनियाँ यहां कुछ देर रुककर सैलानी तरोताज़ा होकर आगे के सफर पर निकलते हैं

अंतिम पड़ाव !
दयारा बुग्याल से करीब एक किलोमीटर पहले यहाँ आप कैंप और स्थानीय निवासियों की छानियोँ में रुक कर जलपान आदि कर सकते हैं यहाँ बटर फेस्टिवल की अंतिम तैयारियों को अंजाम दिया जाता है।

समुद्र तल से 13000 फ़ीट की ऊंचाई पर आखिरकार आप पहुँचते है दयारा बुग्याल जहाँ स्थानीय लोग पंडाल लगाकर बटर फेस्टिवल का त्यौहार मानते हैं।

फेस्टिवल में राधा और कृष्ण के प्रतीक के तौर पर एक युवती और युवक को राधा कृष्ण बनाया जाता है जो मुख्य गेट पर लगे मखन की मटकी को तोड़ कर इस त्यौहार की शुरुआत करते हैं।

मटकी टूटते ही सभी लोग एक दूसरे पर अपनी अपनी पिचकारियों से जो दूध और छाज से भरी होती हैं डालते हैं और एक दूसरे के गालों पर मक्खन लगते हैं

रवाई जोन सार क्षेत्र में रासु नृत्य प्रसिद्ध नृत्य है। रासु नृत्य में झूमते गाते लोगों को देखकर हर कोई उनके साथ नृत्य में डूब जाता है ,देशी विदेशी , पुरुष ,महिलाएं और बच्चे सभी रासु नृत्य करते नज़र आते हैं

महिलाएं अपनी पारंपरिक वेशभूषा धारण करती हैं इनका कहना है कि साल भर उनके दुधारू पशु इन बुग्यालों में चुगान करते हैं और देवता ही उनके जानवरों की रक्षा करते हैं इसलिए वे देवता का आह्वान करके देवता को सभी दुग्ध पदार्थ समर्पित करते हैं।


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