धराली आपदा: हर्षिल में बनी अस्थायी झील का जलस्तर घटा, भूवैज्ञानिकों ने अपनाई वैज्ञानिक निकासी योजना
उत्तरकाशी। धराली आपदा के आठ दिन बाद भी मलबे के नीचे दबे लोगों की तलाश जारी है। आपदा के कारणों का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक और विशेषज्ञ मौके पर अध्ययन कर रहे हैं। सचिव खनन के निर्देश पर औद्योगिक विकास विभाग के भूवैज्ञानिक दल ने धराली और हर्षिल का दौरा कर भूगर्भीय निरीक्षण किया।

भूवैज्ञानिक टीम के अनुसार, 5 अगस्त की अतिवृष्टि से हर्षिल में तेलगाड़ गदेरा सक्रिय हुआ, जिससे भारी मलबा और पानी भागीरथी नदी के संगम पर जमा हो गया और एक बड़ा जलोढ़ पंख (एलुवियल फैन) बन गया। इसने नदी के प्रवाह को बाधित कर दाहिने किनारे पर करीब 1,500 मीटर लंबी और 12-15 फीट गहरी अस्थायी झील बना दी। इससे गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग, हेलीपैड और हर्षिल कस्बे को खतरा पैदा हो गया, साथ ही जीएमवीएन गेस्ट हाउस का एक हिस्सा भी क्षतिग्रस्त हुआ।
जलोढ़ पंख क्या है?
भू-आकृति विज्ञान में जलोढ़ पंख को एलुवियल फैन कहा जाता है। यह तब बनता है जब नदी या नाला पहाड़ी क्षेत्र से समतल में प्रवेश करते समय मिट्टी, बजरी और पत्थर जमा करता है, जिससे त्रिकोणीय आकार की संरचना बनती है।
वैज्ञानिकों की योजना और बचाव कार्य
भूवैज्ञानिकों ने पाया कि झील को रोकने वाला जलोढ़ पंख कमजोर था, जिस पर भारी मशीनरी का इस्तेमाल जोखिम भरा था। सीमित संसाधनों के चलते, टीम ने 9-12 इंच गहरे छोटे विचलन चैनल बनाकर चरणबद्ध तरीके से पानी छोड़ने की योजना बनाई, ताकि अचानक बाढ़ का खतरा न हो।
डीएम प्रशांत आर्य और आईजी अरुण मोहन जोशी की मौजूदगी में, एसडीआरएफ और सिंचाई विभाग ने पहले दिन तीन चैनल बनाकर पानी का स्तर कम किया। अगले दिन इसी प्रक्रिया को दोहराकर मलबा नदी में प्रवाहित कर दिया गया। नतीजतन, झील का जलस्तर नियंत्रित हुआ और निचले हिस्सों में जमा मलबा बह गया।
अधिकारियों का कहना है कि जलनिकासी की यह वैज्ञानिक पद्धति सफल रही है और अब झील का पानी लगातार घट रहा है। हालांकि, खतरे को देखते हुए इलाके की सतत निगरानी जारी है।