इगास पर्व: उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर और वीरता का प्रतीक, जाने कैसे मनाया गया इस वर्ष इगास

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उत्तराखंड का लोकपर्व इगास बग्वाल हर साल दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाता है। यह पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है और इसे पूरे राज्य में हर्षोल्लास और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। भैलो जैसे पारंपरिक खेल और ढोल-दमाऊं की गूंज के साथ यह पर्व एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले लेता है। इस वर्ष भी इगास पर्व का आयोजन बड़े पैमाने पर किया गया, जिसमें लोक संस्कृति की झलक और वीरता के इतिहास का स्मरण देखने को मिला।

पर्व का ऐतिहासिक महत्व---इगास
( पर्व का ऐतिहासिक महत्व ) चित्र साभार – सोशल मीडिया

इगास का पर्व वीरता की अद्वितीय गाथा को संजोए हुए है। यह पर्व 400 साल पुराने एक ऐतिहासिक पराक्रम की याद दिलाता है। वीर माधो सिंह भंडारी और उनकी सेना ने तिब्बत पर आक्रमण कर वहां विजय प्राप्त की थी। उनके साहस और पराक्रम ने उत्तराखंड की सीमाओं को सुरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई। उनकी देरी से घर वापसी के कारण दीपावली का पर्व नहीं मनाया जा सका। उनके लौटने के 11 दिन बाद दीप जलाए गए और इसे इगास पर्व के रूप में मनाया गया।

इस वीरता को याद करते हुए गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र के लोग इस दिन दीप जलाते हैं और भैलो खेल जैसे आयोजनों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखते हैं।

पर्व के प्रमुख आयोजनों की झलक—

( मुख्यमंत्री आवास पर इगास पर पूजा अर्चना ) चित्र साभार – सोशल मीडिया

1. मुख्यमंत्री आवास पर इगास का आयोजन: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इगास पर्व पर पूजा-अर्चना की और सुंदरकांड पाठ किया। उन्होंने ढोल-दमाऊं बजाकर पर्व की परंपराओं में भाग लिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पर्व देवभूमि की पहचान है और इसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए सार्वजनिक अवकाश की शुरुआत की गई है।

( मसूरी और पौड़ी में इगास पर्व पर अनेक सांकृतिक कार्यक्रम मनाते लो ) चित्र साभार – सोशल मीडिया

2. मसूरी और पौड़ी में सांस्कृतिक उत्सव: मसूरी के शहीद स्थल और पौड़ी के रामलीला मैदान में इगास पर्व भव्यता से मनाया गया। गढ़वाल सभा द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ढोल-दमाऊं, रणसिंघा, मसकबीन जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन गूंजी। भैलो खेल, पारंपरिक व्यंजन, रस्साकसी और आतिशबाजी जैसे आयोजन लोगों के आकर्षण का केंद्र रहे।

( डांडी कंठी क्लब ने रिंग रोड पर एक सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया ) चित्र साभार – सोशल मीडिया

3. देहरादून में लोकपर्व का जश्न: देहरादून जैसे महानगर में भी इगास पर्व धूमधाम से मनाया गया। डांडी कंठी क्लब ने रिंग रोड पर एक सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। यह आयोजन न केवल पर्वतीय लोगों को जोड़े रखता है, बल्कि मैदान के निवासियों को भी उत्तराखंड की संस्कृति से रूबरू कराता है।

( प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार इगास पर्व बीजेपी सांसद अनिल बलूनी के आवास पर मनाया ) चित्र साभार – सोशल मीडिया

4. प्रधानमंत्री का इगास मनाना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार इगास पर्व बीजेपी सांसद अनिल बलूनी के आवास पर मनाया। इस अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, और योग गुरु बाबा रामदेव समेत कई प्रमुख हस्तियां उपस्थित रहीं। इस मौके पर गायिका प्रियंका मेहर और उनकी टीम ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं। पारंपरिक वेशभूषा और नृत्य ने उत्सव को देवभूमि के रंग में रंग दिया।

पर्व की परंपराएं: भैलो और लोकगीतों का महत्व—

( सूखी लकड़ियों से बनी मशाल को घुमाते हुए समूह में खेला जाने वाला यह खेल उत्साह और परंपरा का प्रतीक ) चित्र साभार – सोशल मीडिया

भैलो खेल: सूखी लकड़ियों से बनी मशाल को घुमाते हुए समूह में खेला जाने वाला यह खेल उत्साह और परंपरा का प्रतीक है। यह आयोजन खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होता है।

लोकगीत और वाद्य यंत्र: ढोल-दमाऊं, रणसिंघा, और मसकबीन जैसे वाद्य यंत्रों की धुन पर झोड़ा-चांचरी के गीत गाए जाते हैं। ये गीत वीरों के बलिदान और सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए रखते हैं।

शहरों में पर्व का विस्तार—

पलायन के कारण कई पारंपरिक पर्व अब शहरों तक पहुंच गए हैं। देहरादून और अन्य महानगरों में पर्व मनाने की परंपरा ने युवाओं को अपनी संस्कृति से जोड़ा है। हालांकि, पर्व का स्वरूप गांव जैसा नहीं होता, लेकिन यह प्रवासी उत्तराखंडियों को अपनी जड़ों से जोड़ने में सहायक है।

( इगास का संदेश: संस्कृति, साहस और सामूहिकता ) चित्र साभार – सोशल मीडिया

इगास पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों की वीरता और निष्ठा का प्रतीक है। यह हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का संदेश देता है। यह पर्व सामूहिकता, साहस और परंपराओं को जीवंत बनाए रखने का प्रतीक है।

इगास बग्वाल के जरिए उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत को न केवल राज्य, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है। यह पर्व हर पीढ़ी को अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण कराता है और उसे सहेजने का आह्वान करता है।

 

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