नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में खड़िया खनन से हो रहे विनाश पर कड़ा रुख अपनाते हुए पूरे जिले में खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले में जनहित याचिका दर्ज की थी। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए 160 खनन पट्टेधारकों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
दरारें, धंसती जमीन, और सूखते जल स्रोत—
कोर्ट ने यह कार्रवाई मीडिया रिपोर्ट्स और कोर्ट कमिश्नरों की विस्तृत रिपोर्ट के आधार पर की है। नवंबर 2024 में कोर्ट ने एक मीडिया रिपोर्ट का संज्ञान लिया था, जिसमें कहा गया था कि बागेश्वर जिले की कांडा तहसील के कई गांवों में खड़िया खनन के कारण जमीन धंस रही है, खेत और मकानों में दरारें आ गई हैं, और प्राकृतिक जल स्रोत सूख गए हैं।
गांववालों की शिकायतें और फर्जी NOC—
ग्रामीणों ने कोर्ट में दावा किया कि खनन के लिए उन्होंने एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) नहीं दी थी। फर्जी तरीके से उनकी एनओसी बनाई गई। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि खनन में इस्तेमाल होने वाली भारी मशीनें चौबीसों घंटे चलती हैं, जिससे मकान हिलते हैं और बच्चों की नींद तक प्रभावित होती है।
हाईकोर्ट के सख्त निर्देश—
हाईकोर्ट ने खनन गतिविधियों को तुरंत रोकने का आदेश दिया है। साथ ही, कोर्ट ने कहा है कि अवैध खनन से हुए नुकसान की भरपाई सरकार नहीं, बल्कि खननकर्ता करेंगे। कोर्ट ने बागेश्वर जिला प्रशासन और खनन विभाग के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई और 14 फरवरी को अगली सुनवाई के दौरान प्रगति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
ग्रामीणों के लिए राहत, प्रशासन के लिए चेतावनी—
हाईकोर्ट के इस फैसले से कांडा के ग्रामीणों को राहत मिली है, जो लंबे समय से खनन के कारण परेशान थे। यह फैसला न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने की सख्त चेतावनी है।