‘The Mountain Stories’ विशेष रिपोर्ट
देहरादून | ब्यूरो रिपोर्ट/ उत्तराखंड सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायतों की प्रशासनिक निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए एक अहम कदम उठाते हुए प्रदेश के सभी जनपदों (हरिद्वार को छोड़कर) में नई प्रशासकीय नियुक्तियों की घोषणा की है। यह निर्णय पंचायतीराज अधिनियम-2016 की धारा 130(6) के अंतर्गत लिया गया है, जिसके तहत पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद वैकल्पिक प्रशासनिक व्यवस्था का प्रावधान है।
पंचायतों का कार्यकाल समाप्त, प्रशासकों को मिली जिम्मेदारी
वर्ष 2019 में गठित ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों का कार्यकाल क्रमशः 27 मई, 29 मई और 1 जून 2025 को पूरा हो गया है। शासन द्वारा पूर्व में जिलाधिकारियों को प्रशासक नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की गई थी। लेकिन आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की प्रक्रिया में संभावित विलंब के मद्देनज़र अब शासन ने विस्तृत प्रशासकीय ढांचा जारी किया है।
प्रशासकों की नियुक्ति इस प्रकार:
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जिला पंचायतों में: संबंधित जिलाधिकारी / जिला मजिस्ट्रेट को प्रशासक नियुक्त किया गया है।
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क्षेत्र पंचायतों में: संबंधित उपजिलाधिकारी (SDM) को कार्यभार सौंपा गया है।
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ग्राम पंचायतों में: संबंधित विकासखंडों में सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) प्रशासक की भूमिका निभाएंगे।
यह व्यवस्था आगामी पंचायत चुनावों के सम्पन्न होने तक या 31 जुलाई 2025 तक — जो भी पहले हो — लागू मानी जाएगी। शासन ने स्पष्ट किया है कि पूर्व में जारी अन्य शर्तें यथावत लागू रहेंगी।
हरिद्वार जनपद क्यों है अपवाद?
हरिद्वार जनपद को इस आदेश से बाहर रखा गया है, क्योंकि वहां की पंचायतों का कार्यकाल प्रदेश के अन्य जिलों से अलग समय पर समाप्त हो रहा है। इसीलिए हरिद्वार के लिए प्रशासन अलग निर्णय लेगा।
पंचायत चुनावों का महत्व क्यों है?
भारत में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली – ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत (ब्लॉक स्तर), और जिला पंचायत – लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने वाली सबसे अहम कड़ी है। ये पंचायतें न केवल ग्रामीण विकास योजनाओं को लागू करती हैं, बल्कि स्थानीय स्तर पर जन भागीदारी सुनिश्चित करती हैं।
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स्थानीय समस्याओं का त्वरित समाधान – जल, सड़क, स्वच्छता, आवास जैसी बुनियादी ज़रूरतें इन्हीं संस्थाओं के माध्यम से पूरी होती हैं।
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ग्राम स्तर पर लोकतंत्र की जीवंतता – आम जनता को नीति-निर्माण में भागीदारी का अवसर देती हैं।
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महिलाओं और कमजोर वर्गों को प्रतिनिधित्व – आरक्षण व्यवस्था के ज़रिये इन वर्गों की आवाज़ को मुख्यधारा में लाया जाता है।
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योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन – केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाएं पंचायतों के माध्यम से लागू की जाती हैं।
इसलिए पंचायत चुनाव केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक सशक्तिकरण का पर्व होते हैं।
क्या कहते हैं जानकार?
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासकों की नियुक्ति एक “कार्यात्मक आवश्यकता” है, लेकिन जल्द चुनाव कराना जन-प्रतिनिधित्व बहाली के लिए आवश्यक होगा। चुनावों में देरी जनता और सत्ता के बीच संवाद में व्यवधान उत्पन्न कर सकती है।
उत्तराखंड सरकार ने संवैधानिक दायित्वों के अनुरूप पंचायतों में प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रखने हेतु एक समयबद्ध और व्यावहारिक निर्णय लिया है। यह कदम ग्रामीण प्रशासन को स्थिरता प्रदान करेगा और योजनाओं की गति में बाधा नहीं आने देगा। अब प्रदेश की निगाहें पंचायत चुनावों की तारीखों और उसकी पारदर्शिता पर टिकी हैं।