रिपोर्ट- ओम जोशी
उत्तराखंड राज्य में दून घाटी के बीच स्थित देहरादून भारत के दर्शनीय स्थलों में से एक हैं। उतराखण्ड राज्य की राजधानी देहरादून पर्यटकों के मध्य बहुत ही लोकप्रिय हिल स्टेशन है, जोकि अकेले यात्री, परिवारों जनों और जोड़ों से जाने वाले व्यक्तियों के लिए एक अनूठा स्थान हैं, आईये रूबरू करवाते हैं आपको एक बेहद ही खूबसूरत स्थल सहस्त्रधारा जो आज भी कोरोना काल में प्रयटकों के लिए आँखे बिछाये बैठा है।
सहस्त्रधारा देहरादून में स्थित एक खूबसूरत पर्यटक स्थल हैं जो देहरादून शहर से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। सहस्त्रधारा का शाब्दिक अर्थ ” द थाउजेंड फोल्ड स्प्रिंग” हैं। इस स्थान पर झरने, गुफाएं, सीढियां और खेती की जमीन भी शामिल हैं। यह स्थान उन झरनों और गुफाओं के लिए भी जाना जाता हैं जिनमे पानी चूना पत्थर के स्टैलेक्टाइट्स से टपकता है। यह स्थान आकर्षित फोटोग्राफी, धार्मिक स्थल और पर्यटकों की पसंदीदा जगहों के लिए जाना जाता हैं। सहस्त्रधारा में कोई प्रवेश शुल्क नही लगता हैं और सूर्योदय से सूर्यास्त तक सभी दिन यह खुला रहता हैं।
वैश्विक कोरोना महामारी के चलते पर्यटकों की आवाजाही पर लगी ब्रेक से सहस्त्रधाराके पर्यटन स्थल वीरान होकर रह गए है । यहाँ की नदियाँ और रमणीक स्थल जो बरबस ही आँखों को मनमोहित कर देता था आज प्रयटकों को देखने के लिए तरस गए हैं। स्थानीय दुकानदार आज भी पर्यटकों के इंतज़ार में आँखे लगाएं बैठे हैं पर्यटकों की आवाजाही पूरी तरह ठप होने से होटल व रेस्टोरेंट पर ताले लटकने के साथ बाजारों में सन्नाटा पसरा हुआ है।
वैश्विक कोरोना महामारी के चलते पर्यटकों की आवाजाही पर लगी ब्रेक से सहस्त्रधाराके पर्यटन स्थल वीरान होकर रह गए है । यहाँ की नदियाँ और रमणीक स्थल जो बरबस ही आँखों को मनमोहित कर देता था आज प्रयटकों को देखने के लिए तरस गए हैं। स्थानीय दुकानदार आज भी पर्यटकों के इंतज़ार में आँखे लगाएं बैठे हैं पर्यटकों की आवाजाही पूरी तरह ठप होने से होटल व रेस्टोरेंट पर ताले लटकने के साथ बाजारों में सन्नाटा पसरा हुआ है।यहाँ के लोकल व्यवसायी होटलों व रेस्टोरेंट में काम करने वाले सैकड़ों लोगों का रोजगार छिन गया है। होटल व रेस्टोरेंट खोलने के आदेश जारी होने के बाद भी संचालक पर्यटकों की आवाजाही न होने से काम धंधा दोबारा से आरंभ करने का रिस्क नहीं उठा रहे हैं। ऐसे में में इस बार पर्यटन सीजन को कोरोना महामारी के ग्रहण ने निगल लिया है।
यूँ तो यहाँ बरसातों के आलावा पुरे वर्ष ही प्रयटकों का ताँता लगा रहता है मगर विशेषकर यहाँ अप्रैल से लेकर जुलाई तक यहाँ पुरे भारत से आने वाले प्रयटकों की विशेष दिलचस्पी नज़र आती है। वहीँ वैश्विक महामारी ने इस वर्ष पर्यटन के कारोबारियों का {अप्रैल से जून} पर्यटन सीजन पूरी तरह तबाह हो गया है।
यहाँ के लोकल व्यवसायी के होटल व रेस्टोरेंट संचालक भी इस तीन माह के दौरान होने वाली कमाई से पूरे वर्ष के खर्च निकालते थे। मगर अब हालात यह है कि स्टाफ को छुट्टी पर भेजने के बावजूद इन्हें अन्य खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है। व्यापारियों का कहना है की अब तो सरकार से ही कुछ उम्मीद है की वह हमारी तकलीफों को समझे और इस भयंकर स्थिति में उन्हें इस परेशानी से निपटने में सहयोग प्रदान करे।
पूर्व के कुछ दृश्य जब यहाँ प्रयटकों का मेला लगा रहता था और वह दिन भर पानी में अठखेलियां किया करते थे।…………
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