देहरादून/ भारतीय वन सेवा (IFS) और भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक हालिया फैसला उत्तराखंड समेत पूरे देश में सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी मध्य प्रदेश सरकार के उस फैसले को रद्द करने के संदर्भ में आई है, जिसमें IAS अधिकारियों को IFS अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) दर्ज करने का अधिकार दिया गया था। इस आदेश ने उत्तराखंड में भी आईएएस और आईएफएस कैडर के अधिकारियों के बीच हलचल मचा दी है।
बीते बुधवार (21 मई) को भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने स्पष्ट कर दिया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी, अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (APCCF) स्तर तक के IFS अधिकारियों की गोपनीय रिपोर्ट नहीं लिख सकते। अदालत ने यह भी दोहराया कि वन सेवा अधिकारियों की ACR दर्ज करने की प्रक्रिया केवल संबंधित सेवा (IFS) के वरिष्ठ अधिकारियों के माध्यम से ही की जानी चाहिए, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के 2000 के आदेश में भी निर्देशित किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का अहम बिंदु बना चर्चा का केंद्र
फैसले के बिंदु संख्या 37 पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जिसमें कहा गया है कि यदि आवश्यक हो, तो राज्य सरकार यह प्रावधान कर सकती है कि जिला कलेक्टर या आयुक्त विकास कार्यों की निगरानी के आधार पर IFS अधिकारियों के प्रदर्शन पर एक अलग शीट में टिप्पणी दर्ज करें। इस बिंदु को लेकर अधिकारियों में मतभेद देखने को मिल रहा है। कुछ का मानना है कि इससे IAS अधिकारियों को ACR प्रक्रिया में भूमिका मिल सकती है, जबकि अन्य इसे केवल सलाहात्मक या पर्यवेक्षकीय टिप्पणी तक सीमित मानते हैं।
उत्तराखंड में ACR प्रक्रिया की वर्तमान स्थिति
उत्तराखंड में IFS अधिकारियों की गोपनीय रिपोर्ट दर्ज करने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा निर्णयों के अनुसार ही चल रही है। उदाहरण के लिए:
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DFO का रिपोर्टिंग अधिकारी कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट (CF) होता है, समीक्षा अधिकारी CCF, और एक्सेप्टिंग अथॉरिटी प्रमुख वन संरक्षक (HoFF) होते हैं।
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CF, CCF, और APCCF स्तर के अधिकारियों की ACR की अंतिम स्वीकृति प्रमुख सचिव या मुख्य सचिव द्वारा दी जाती है।
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PCCF के लिए रिपोर्टिंग अधिकारी HoFF, समीक्षा अधिकारी प्रमुख सचिव और अंतिम स्वीकृति विभागीय मंत्री द्वारा दी जाती है।
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IFS के सर्वोच्च पद यानी HoFF के लिए रिपोर्टिंग अधिकारी मुख्य सचिव, समीक्षा अधिकारी वन मंत्री और स्वीकृति अधिकारी मुख्यमंत्री होते हैं।
उत्तराखंड पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं, लेकिन चर्चाएं तेज़
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मध्य प्रदेश के संदर्भ में आया है और उत्तराखंड में ऐसी कोई स्थिति नहीं है जिसमें IAS अधिकारियों को IFS अधिकारियों की रिपोर्टिंग अथॉरिटी बनाया गया हो। इसके बावजूद, यह निर्णय नौकरशाही की शक्तियों और सीमाओं को लेकर राज्य में चर्चा का विषय बन गया है। अधिकारियों के बीच इस पर गंभीर मंथन चल रहा है कि यह फैसला भविष्य में नीतिगत फैसलों पर किस प्रकार प्रभाव डाल सकता है।
इस फैसले ने न केवल प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता पर बहस छेड़ दी है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सेवा-संबंधी अधिकार केवल संबंधित संवर्ग के भीतर ही सीमित रहने चाहिए।