Terrorists ने पूछा धर्म, पढ़ा कलमा और बच गई जान – Pahalgam Attack Survivor की सच्ची कहानी

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पहलगाम, जम्मू-कश्मीर/ देश के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक, पहलगाम, एक बार फिर आतंक की आग में झुलस गया। शनिवार को हुए एक भयानक आतंकी हमले में कम से कम 26 लोगों की जान चली गई और 17 से अधिक घायल हो गए। अधिकारियों और चश्मदीदों के अनुसार, यह हमला विशेष रूप से धार्मिक पहचान के आधार पर किया गया था, जिससे देशभर में आक्रोश फैल गया है।

आतंकियों ने पूछा धर्म, फिर शुरू की गोलीबारी

हमले में बचे Assam University के Associate Professor डॉ. देबाशीष भट्टाचार्य ने घटना की भयावहता को साझा करते हुए बताया कि किस तरह धर्म के नाम पर निर्दोषों की जान ली गई।

“मैं अपने परिवार के साथ Baisaran Valley में एक पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। तभी अचानक फायरिंग की आवाज़ें आने लगीं। लोग आसपास Kalma पढ़ने लगे। मैंने भी शुरू किया। तभी एक आतंकी मेरे पास आया और मेरे बगल में लेटे एक व्यक्ति को सिर में गोली मार दी। जब उसने मुझसे पूछा – ‘क्या कर रहे हो?’ तो मैंने तेज़ी से कलमा पढ़ना जारी रखा। शायद इसी वजह से उसने मुझे छोड़ दिया।”

देबाशीष ने बताया कि हमले के बाद उन्होंने अपने पत्नी और बेटे के साथ दो घंटे तक जंगल में छिपते हुए किसी तरह अपने होटल वापस पहुंचने में सफलता पाई।

पुणे की HR प्रोफेशनल ने खोया पिता और चाचा

हमले में मारे गए लोगों में पुणे से आए पर्यटक संतोष जगदाले और कौस्तुभ गनबोटे भी शामिल हैं। संतोष की बेटी और HR प्रोफेशनल असावरी ने बताया:

“आतंकियों ने मेरे पिताजी से कलमा पढ़ने को कहा। जब वे नहीं पढ़ पाए, तो उन्हें तीन गोलियां मारी गईं – सिर, कान के पीछे और पीठ में। उनके साथ मेरे चाचा भी मारे गए।”

अधिकारियों ने पुष्टि की है कि यह हमला “targeted killing based on religious identity” था।

केंद्र सरकार और सुरक्षा एजेंसियां सतर्क

गृह मंत्रालय ने इस हमले को “सोची-समझी साजिश” करार देते हुए NIA को जांच सौंपने के संकेत दिए हैं। पूरे क्षेत्र में सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ा दी गई है और आतंकियों की तलाश में व्यापक तलाशी अभियान जारी है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

हमले को लेकर देशभर से तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय ने शोक जताते हुए कहा कि “यह इंसानियत के खिलाफ किया गया कायरतापूर्ण कृत्य है।” वहीं, विपक्षी नेताओं ने इसे सुरक्षा चूक बताते हुए सवाल उठाए हैं।

धार्मिक पहचान के नाम पर निर्दोषों की हत्या न केवल संवैधानिक मूल्यों पर प्रहार है, बल्कि पर्यटन को शांति और सौहार्द का प्रतीक मानने वाले जम्मू-कश्मीर के भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। यह ज़रूरी है कि दोषियों को जल्द से जल्द पकड़ कर कड़ी सज़ा दी जाए और पीड़ित परिवारों को न्याय मिले।


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