द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर के कपाट बुधवार, 20 नवंबर को विधि-विधान के साथ प्रातः 8 बजे शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और पारंपरिक अनुष्ठानों के बीच भगवान के स्वयंभू लिंग को पुष्प, अक्षत, और भस्म से समाधि रूप दिया गया।
कपाट बंद होने के बाद भगवान मद्महेश्वर की चल उत्सव विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ के लिए प्रस्थान कर गई। डोली रात्रि प्रवास के लिए पहले पड़ाव गौंडार गांव पहुंची। यह डोली 21 नवंबर को रांसी, 22 नवंबर को गिरिया, और 23 नवंबर को ऊखीमठ पहुंचेगी। शीतकालीन पूजा-अर्चना के लिए डोली 23 नवंबर को ओंकारेश्वर मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होगी।
यात्रा में श्रद्धालुओं की भारी भागीदारी—
इस वर्ष 20 मई से शुरू हुई मद्महेश्वर यात्रा में 18,000 से अधिक श्रद्धालुओं ने भगवान के दर्शन किए। हालांकि, जुलाई में अतिवृष्टि के कारण मुरकुंडा नदी पर पुल टूटने से यात्रा कुछ दिनों के लिए बाधित हुई थी। ग्रामीणों के सहयोग से अस्थायी पुलिया बनने के बाद यात्रा फिर से शुरू हो सकी।
मद्महेश्वर मेला होगा आकर्षण का केंद्र—
23 नवंबर को ऊखीमठ में आयोजित तीन दिवसीय मद्महेश्वर मेला श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण रहेगा। ओंकारेश्वर मंदिर को फूल-मालाओं से सजाया गया है और मेले में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
मंदिर समिति ने दी शुभकामनाएं—-
बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष अजेंद्र अजय और मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल ने इस अवसर पर श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं दीं। मद्महेश्वर के कपाट बंद होने की इस विशेष प्रक्रिया में लगभग 250 श्रद्धालु उपस्थित रहे। डोली के प्रस्थान के दौरान स्थानीय वाद्य यंत्रों ढोल-दमाऊ की गूंज और श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया।