उत्तराखंड में बाघ का खतरा बढ़ा: 2014 से अब तक 68 मौतें, 2024 में बाघों के हमले तेंदुओं से अधिक घातक

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वन विभाग ने आठ बाघ और 44 तेंदुओं को किया रेस्क्यू, मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर चिंता बढ़ी

देहरादून, 8 जुलाई/ उत्तराखंड में मानव और वन्यजीवों के बीच टकराव लगातार गंभीर होता जा रहा है। बीते एक दशक में बाघ और तेंदुओं के हमलों में सैकड़ों लोग जान गंवा चुके हैं, जबकि सैकड़ों घायल हुए हैं। तेंदुओं की तुलना में अब बाघ अधिक जानलेवा साबित हो रहे हैं, खासकर वर्ष 2024 में बाघ के हमलों में मृत्यु दर अधिक दर्ज की गई है।

2014 से 2024 तक का आंकड़ा चिंताजनक

वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 से 2024 के बीच

  • बाघों के हमलों में 68 लोगों की मौत हुई और 83 घायल हुए।

  • तेंदुओं के हमलों में 214 लोगों की मौत और 1006 घायल हुए।

हालांकि इस साल (जनवरी से जून 2024) की स्थिति अलग है।

  • बाघ के हमले में 10 लोगों की मौत, जबकि केवल 3 घायल हुए।

  • तेंदुए के हमलों में 6 की मौत और 25 घायल हुए।

  • कुल मिलाकर इस वर्ष के पहले छह महीनों में वन्यजीवों के हमलों में 25 मौतें और 136 लोग घायल हुए हैं।

रेस्क्यू में तेजी: आठ बाघ, 44 तेंदुए पकड़े गए

वन विभाग ने मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए एक जनवरी 2024 से 30 जून 2025 के बीच बड़े पैमाने पर रेस्क्यू अभियान चलाया।

  • इस दौरान 8 बाघों को पकड़ा गया, जिनमें से 7 को रेस्क्यू सेंटर भेजा गया और 1 को प्राकृतिक आवास में छोड़ा गया।

  • इसी अवधि में 44 तेंदुओं को रेस्क्यू किया गया, जिनमें 19 को रेस्क्यू सेंटर भेजा गया।

रेस्क्यू अभियान के तहत

  • बाघों के लिए 25 ऑपरेशन की अनुमति दी गई

  • तेंदुओं के लिए 124 बार पिंजरा लगाने व ट्रैंक्यूलाइज करने की अनुमति,

  • 5 मामलों में मारने की अनुमति,

  • 4 मामलों में उपचार की अनुमति प्रदान की गई।

मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने को बहुस्तरीय प्रयास

वन विभाग के अपर प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) विवेक पांडे ने कहा कि वन विभाग संघर्ष कम करने के लिए कई स्तरों पर काम कर रहा है।

  • संवेदनशील इलाकों में QRT (क्विक रेस्पॉन्स टीम) तैनात की गई हैं।

  • जनजागरूकता अभियान,

  • प्राकृतिक आवासों का सुदृढ़ीकरण,

  • ट्रैंक्यूलाइजिंग और रेस्क्यू उपकरणों की व्यवस्था की जा रही है।

विशेषज्ञों की चेतावनी

वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती आबादी और जंगलों में मानवीय दखल से वन्यजीवों के आवास क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं, जिससे संघर्ष बढ़ रहा है। बाघों की बढ़ती संख्या और उनके व्यवहार में बदलाव भी चिंता का विषय है।

जरूरत है सामूहिक प्रयास की

उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और जंगलों से घिरे राज्य में मानव और वन्यजीवों के बीच संतुलन बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। इसमें केवल वन विभाग ही नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन, आम जनता और पर्यावरण विशेषज्ञों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

डिस्क्लेमर: यह समाचार वन विभाग के उपलब्ध आंकड़ों, अधिकृत वक्तव्यों, विभिन्न मीडिया संस्थानों और विश्वसनीय सूत्रों पर आधारित है। खबर में प्रस्तुत जानकारी पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित है और पत्रकारिता के सभी मानकों का पालन करते हुए तैयार की गई है।


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