देहरादून, 21 मई 2025 | द माउंटेन स्टोरीज़
राजस्व घाटे से उबर चुके उत्तराखंड राज्य ने 16वें वित्त आयोग के समक्ष अब राज्य की आवश्यकताओं पर आधारित विशेष अनुदान (State Need Grant) की पुरजोर मांग रखी है। प्रदेश सरकार ने आयोग से ₹42,000 करोड़ की स्टेट नीड ग्रांट की मांग करते हुए राज्य की विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों, पर्यावरणीय प्रतिबंधों और सीमित संसाधनों को इसके पक्ष में मजबूत आधार बताया है।
राजस्व घाटा अनुदान नहीं मिलने की स्थिति में नई रणनीति
वित्तीय वर्ष 2023-24 के बाद उत्तराखंड अब राजस्व घाटा मुक्त राज्य बन गया है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि 16वां वित्त आयोग उत्तराखंड को राजस्व घाटा अनुदान देने की सिफारिश नहीं करेगा। गौरतलब है कि 15वें वित्त आयोग के दौरान राज्य को ₹28,147 करोड़ का राजस्व घाटा अनुदान मिला था, जो सीमित संसाधनों वाले राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण वित्तीय मदद थी। इस अंतर की भरपाई के लिए अब सरकार ने स्टेट नीड ग्रांट पर ध्यान केंद्रित किया है।
वन संपदा और पर्यावरणीय सेवाओं को बनाया आधार
उत्तराखंड सरकार ने आयोग के समक्ष जो तर्क रखे हैं, उनमें सबसे अहम है राज्य का घना वनाच्छादित क्षेत्र, जो प्रदेश की भौगोलिक और विकासात्मक सीमाओं का कारण भी बनता है।
सरकार ने बताया कि उत्तराखंड के वन क्षेत्र के कारण देश को प्रतिवर्ष ₹92,000 करोड़ की पर्यावरणीय सेवा मिलती है, जो कार्बन क्रेडिट के रूप में वैश्विक महत्व रखती है। इसके बावजूद राज्य को बिजली परियोजनाओं पर पर्यावरणीय बंदिशों के कारण नुकसान उठाना पड़ता है।
इस सेवा और क्षतिपूर्ति के आधार पर राज्य सरकार ने अनुरोध किया है कि वन आधारित अनुदान को 20 प्रतिशत तक बढ़ाया जाए।
आपदाओं के नए मानकों की वकालत
राज्य सरकार ने यह भी मांग की है कि उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदाओं की विशिष्ट प्रकृति को समझते हुए वनाग्नि, हिमस्खलन और भू-धंसाव को भी आपदा मानकों में शामिल किया जाए। इन घटनाओं से राज्य को हर वर्ष भारी आर्थिक और सामाजिक नुकसान होता है, जिसे देखते हुए विशेष आपदा अनुदान भी मांगा गया है।
15वें वित्त आयोग द्वारा उत्तराखंड को आवंटित राशि (करोड़ में):
मद | राशि |
---|---|
केंद्रीय करों में हिस्सेदारी | ₹47,234 |
राजस्व घाटा अनुदान | ₹28,147 |
त्रिस्तरीय पंचायत/शहरी निकाय | ₹3,384 |
आपदा राहत | ₹5,752 |
स्वास्थ्य क्षेत्र (स्थानीय निकाय) | ₹7,797 |
कुल | ₹85,314 |
आयोग को सौंपा जाएगा अलग से प्रस्तुति पत्र
राज्य के वित्त सचिव दिलीप जावलकर ने कहा कि आयोग के समक्ष पहले ही मेमोरेंडम सौंपा जा चुका है, लेकिन स्टेट नीड ग्रांट के लिए एक अलग प्रस्तुति और दस्तावेज़ भी आयोग को सौंपा जाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि आयोग इस विषय को गंभीरता से लेकर राज्य के वास्तविक ज़मीनी हालात के अनुसार निर्णय लेगा।
“हमने आयोग के सामने राज्य की कठिन परिस्थितियों, पर्यावरणीय प्रतिबंधों और आवश्यकताओं के आधार पर तर्कसंगत तथ्यों के साथ अपनी मांग रखी है। आयोग ने हमारी बातों को गंभीरता से सुना है। हमें उम्मीद है कि राज्य की विशेष स्थितियों को देखते हुए सकारात्मक सिफारिश की जाएगी।”
— दिलीप जावलकर, सचिव वित्त
राजस्व घाटे से बाहर आना जहां एक ओर उत्तराखंड की वित्तीय स्थिरता का संकेत है, वहीं केंद्र से मिलने वाले अनुदानों की संरचना में यह एक बड़ा बदलाव भी लेकर आया है। ऐसे में राज्य की यह पहल कि ‘वन आधारित पर्यावरणीय सेवाओं और विकासात्मक प्रतिबंधों’ की एवज में विशेष अनुदान मिले, न सिर्फ न्यायसंगत है बल्कि अन्य हिमालयी राज्यों के लिए भी एक नीतिगत उदाहरण बन सकती है।