समस्याओं का पहाड़! उत्तराखंड 

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रिपोर्ट-ओम जोशी

बीसवें स्थापना दिवस में प्रवेश के साथ-साथ  उत्तराखंड अब युवा अवस्था में है,मगर बीमार युवा उत्तराखंड। कई वर्षों के उतार चढ़ाव से गुजरकर भी आज तक उत्तराखंड अपने अस्तित्व को खोज रहा है न तो अभिवावकों (नेताओं) का सही प्रतिनिधित्व मिला और न ही सही परवरिस यही कारण है कि आज भी यह स्वस्थ राज्य न होकर कुपोषण का शिकार और एक कमज़ोर राज्य नज़र आता है।
इन उनीस वर्षों में 8  मुख्यमंत्री दे चुके उत्तराखंड को आज भी उचित अभिवावक और उचित दिशा-निर्देशों की दरकार है। कहने को यूं तो शासन प्रशासन में एक से एक बढ़कर काबिल ओहदेदार हैं मगर राजनेताओं और अधिकारियों में बेहतर तालमेल का अभाव या फिर आपसी खींचतान हमेशा उत्तराखंड के विकाश में रोड़ा अटकाती रही। योजनाएं बनती बिगड़ती रही और धरातल पर कभी सही आकर नही ले पायी। जिस कारण यहां के आम जनमानस में वे किसी तरह का विश्वास पैदा न कर पायी, न ऊर्जा भर पायी और न ही उन्हें एक उत्साहित वातावरण दे पायी ।
आज जहां शहरों में जनसंख्या घनत्व लगातार बढ़ रहा है वहीं पहाड़ खाली होने लगे हैं। कुछ गावँ तो व्यक्ति विहीन होकर घोस्ट विलेज बन गए और जो बचे हैं वे भी तेजी से खाली होते जा रहे हैं। हैरत की बात है की उत्तराखंड आज भी एक अदद राजधानी को तरस रहा है और विधानसभा चयन की आड़ में सभी छोटी बड़ी पार्टियां इसे राजनीती का अखाडा बना रही हैं। आज भी जल जंगल ज़मीन के मुद्दे जस के तस हैं बल्कि हालात अब और ज्यादा भयावह हैं। पहाड़ों का सीना छलनी हुआ है और जंगलों का अनुचित दोहन।
सरकारें बदलती रही हों मगर ठोस निर्णय लेने में दोनों अक्षम नजर आयी हैं। जिन मुद्दों पर राज्य की लड़ाई लड़ी गयी वो मुद्दे खो गए। अपना राज, अपने निर्णय,राज्य की भौगोलिक स्थिति अनुसार लिए जाने थे मगर सरकारें  नाकाम रही, आम आदमी आज खुद को ठगा सा महसूस करता है।विकाश की राह तलाश रहा उत्तराखंड आज भी बैठकों,टीए,डीए के खेल में और नित नए प्रस्तावों को पास करने तक ही सिमित और हर दिन नयी योजनाओं की घोषणाएं करने में व्यस्त नज़र आता है और धरातल पर ठोस उपलब्धि नहीं दे पाता।भौगोलिक विषमताओं के कारण मैदानों का तो कुछ विकास हुआ मगर पहाड़ आज भी विकास की बाट जोहते नजर आते हैं ये भाग पर्यावरण के लिहाज से आज भी नाजुक है और भूकंप। भूस्खलन ,बाढ़ ,बादल जैसी  प्राकृतिकआपदाओं का शिकार होता रहा है।

बहरहाल नियोजनकारों,नियति निर्धारकों व प्रशाशकों की  महत्वपूर्ण भूमिका ही राज्य के विकास को गति दे सकती है और  जिन आकांक्षाओं और अपेक्च्छाओं के साथ इस राज्य की परिकल्पना की गई थी उन पर खरा उतरने के लिए सरकार को अभी ईमानदारी से बहुत कुछ करना शेष है।


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6 thoughts on “समस्याओं का पहाड़! उत्तराखंड 

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