उत्तराखंड के इतिहास में एक काला अध्याय है “2 अक्टूबर”, पुलिस ने की थी अमानवीयता की सारी हदें पार

उत्तराखंड के इतिहास में एक काला अध्याय है "2 अक्टूबर", पुलिस ने की थी अमानवीयता की सारी हदें पार
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आज 02 अक्टूबर को देश भर में गांधी जयंती की धूम रही। इस दिन पुरे देश में महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन को मनाया गया। मगर ये तारीख उत्तराखंड के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हैं जब पुलिस ने अमानवीयता की सारी हदें पार की थी।

आज से ठीक 29 साल पहले 1 अक्टूबर की रात में उत्तराखंड के लोगों के साथ दमन और अमानवीयता की ऐसी हदें पार की गई कि इस दिन को याद कर आज भी लोगों के मन में सिहरन सी भर जाती हैं।

उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर 2 अक्टूबर 1994 के दिन पृथक राज्य की मांग के लिए प्रदर्शनकारी शांतिपूर्ण दिल्ली जा रहे थे। प्रदर्शनकारीयो की गाड़िया मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे में पहुंची ही थी की उत्तरप्रदेश पुलिस ने तलाशी के बहाने प्रदर्शनकारीयो की गाड़ियों को रोक दिया।

इसी दौरान आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच तीखी नोकझोंक शुरू हुई और थोड़ी देर बाद ही भीड़ पर अचानक से पत्थर फेंके जाने लगे। देखते ही देखते पुलिस निहत्थे लोगों पर लाठियां भांजने लगी और उन्होंने महिलाओं को भी नहीं छोड़ा और क्रूरता की सारी हदें पार कर दी।

पुलिस वालो ने कई प्रदर्शनकारीयो महिलाओ का बलात्कार किया। जब प्रदर्शनकारीयो द्वारा विरोध किया गया तो पुलिस ने बड़ी बेरहमी से प्रदर्शनकारीयो पर गोलियां बरसा दी। कई राउंड की फायरिंग हुई जिसमें मौके पर सात आंदोलनकारियों की जाने चली  गई और डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए। इस घटना और बर्बरता में कई लोग लापता भी हो गए थे। दो अक्टूबर को हुई इस घटना को पुलिस द्वारा की गई सबसे क्रूर घटना माना जाता है।

दो अक्टूबर को ये मामला बहुत बढ़ गया और इलाहाबाद हाइकोर्ट के आदेश के बाद इस घटना पर सीबीआई जांच करवाई गयी। 1995 को इस घटना की रिपोर्ट को हाइकोर्ट के सामने पेश की गयी जिसमे प्रशासन को मुजरिम करार दिया गया।

रामपुर तिराहा कांड के बाद ही उत्तराखंड अलग राज्य की मांग ने जोर पकड़ा था और 6 सालों तक चले इस लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार 9 नवंबर सन 2000 को यूपी से अलग होकर उत्तराखंड राज्य बना। आज भी जब 2 अक्टूबर की बात होती है तो उत्तराखंड के जनमानस में सहसा ही उस दिन का खौफनाक मंजर कौंध जाता है जब उत्तरप्रदेश के पुलिस प्रशासन ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर इतिहास का काला अध्याय लिखा।


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