पंचायत चुनाव में 40 हजार कर्मी नहीं डाल पाएंगे वोट, डाक मतपत्र व्यवस्था का अब तक इंतजार

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पंचायत चुनाव में 40 हजार कर्मी नहीं डाल पाएंगे वोट, डाक मतपत्र व्यवस्था का अब तक इंतजार

देहरादून/उत्तरकाशी
उत्तराखंड में एक बार फिर लाखों मतदाताओं के बीच लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव — त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव शुरू हो गया है, लेकिन खुद लोकतंत्र की जिम्मेदारी उठाने वाले हजारों सरकारी कर्मचारी अपने मताधिकार से वंचित रह जाएंगे।

(SOURCE COURTESY – DIGITAL MEDIA)

राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से इस बार भी पंचायत चुनाव में ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों के लिए डाक मतपत्र (पोस्टल बैलेट) की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। नतीजतन, करीब 40 हजार अधिकारी-कर्मचारी अपने गांव के प्रधान, क्षेत्र पंचायत या जिला पंचायत सदस्य को चुनने के अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाएंगे।

❝राजस्थान में 2009 से व्यवस्था, उत्तराखंड आज भी वंचित❞

राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग साल 2009 से ही पंचायत चुनाव में लगे कार्मिकों को डाक मतपत्र की सुविधा दे रहा है। लेकिन उत्तराखंड में वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद से आज तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। विधानसभा, लोकसभा और निकाय चुनावों में ड्यूटी करने वाले सरकारी अधिकारियों, अर्धसैनिक बलों, पुलिस कर्मियों को जहां पोस्टल बैलेट का अधिकार मिलता है, वहीं पंचायत चुनाव में यह मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार भी गायब हो जाता है।

उत्तरकाशी में 3395 कर्मचारी वंचित

उत्तरकाशी जिले में इस बार 3395 कर्मचारी विभिन्न बूथों पर ड्यूटी निभा रहे हैं। इसके अलावा 20 जोनल मजिस्ट्रेट, 76 सेक्टर मजिस्ट्रेट और 50 प्रभारी अधिकारी तैनात किए गए हैं। लेकिन ये सभी कर्मी अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकेंगे।

❝एक लाख से अधिक लोग चुनाव ड्यूटी में, 40,000 कर्मियों के वोट अटके❞

राज्य भर में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए इस बार करीब 95,909 अधिकारी-कर्मचारी, जिसमें पीठासीन अधिकारी, मतदान अधिकारी, सेक्टर/जोनल मजिस्ट्रेट, सुरक्षा कर्मी आदि शामिल हैं, ड्यूटी पर हैं।
जानकारों के अनुसार इनमें से लगभग 40,000 कर्मचारी ऐसे हैं जिनके नाम ग्राम पंचायतों की मतदाता सूची में हैं। परंतु डाक मतपत्र की सुविधा न होने से वे वोट नहीं डाल सकेंगे।

कर्मचारी संगठन नाराज़

राजकीय शिक्षक संघ उत्तरकाशी के जिलाध्यक्ष अतोल महर ने इसे कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकार का हनन बताया। उन्होंने कहा,

“विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मतदान ड्यूटी वालों को पोस्टल बैलेट की सुविधा दी जाती है, फिर पंचायत चुनाव में क्यों नहीं?”

उन्होंने आगे कहा कि अधिकांश कर्मचारी ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं और गांवों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने में इनका बड़ा योगदान हो सकता है। लेकिन मतदान से वंचित रखने की नीति न केवल अलोकतांत्रिक है, बल्कि ग्रामीण भागीदारी को भी कमजोर करती है।

CDO का जवाब:

मुख्य विकास अधिकारी (CDO) एस.एल. सेमवाल का कहना है कि निर्वाचन आयोग की ओर से पंचायत चुनाव में पोस्टल बैलेट को लेकर कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई है।

मुख्य तथ्य एक नजर में:

  • राज्यभर में ड्यूटी पर तैनात अधिकारी/कर्मचारी: 95,909

  • जिनका नाम ग्राम पंचायत वोटर लिस्ट में: लगभग 40,000

  • डाक मतपत्र की सुविधा: नहीं उपलब्ध

  • राजस्थान: 2009 से सुविधा लागू

  • उत्तराखंड: 24 साल बाद भी इंतजार

  • वाहन तैनाती: 5620 वाहन (भारी और हल्के)

  • उत्तरकाशी में तैनात कर्मचारी: 3395

विशेष टिप्पणी

एक ओर सरकार डिजिटल वोटिंग और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर पंचायत चुनाव जैसे सबसे जमीनी लोकतंत्र की कड़ी में आज भी कर्मचारियों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। अब समय आ गया है कि निर्वाचन आयोग इस पर गंभीरता से विचार करे और लोकसभा, विधानसभा जैसी सुविधा पंचायत चुनावों में भी दी जाए।

“लोकतंत्र की ड्यूटी निभाने वालों को भी लोकतंत्र में भागीदारी का हक मिलना चाहिए।”


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