करवाचौथ 2024: सुहागिनों का पर्व 20 अक्टूबर को, जानें व्रत के नियम और पूजा विधि

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इस साल करवाचौथ का पवित्र त्योहार 20 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, करवाचौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिए व्रत रखती हैं। इस अवसर पर देशभर में महिलाएं विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते हुए करवाचौथ मनाती हैं।

सरगी का महत्व और विधि-विधान—

करवाचौथ व्रत का एक प्रमुख भाग है “सरगी”। इसे सूर्योदय से पहले ग्रहण किया जाता है और इसे सास अपनी बहू को देती हैं। सरगी में मेवे, फल, मिठाई और श्रृंगार का सामान शामिल होता है। जिन परिवारों में सरगी की परंपरा नहीं होती, वहां महिलाएं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि लगने के बाद निर्जला व्रत रखती हैं। सूर्योदय से पहले भोजन के बाद दिनभर अन्न-जल का त्याग करना इस व्रत का मुख्य नियम है।

सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व—

करवाचौथ पर सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है। महिलाएं अपने सुहाग की समृद्धि के लिए मेहंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ियां, बिंदी और बिछिया (toe ring) जैसे 6 मुख्य श्रृंगार धारण करती हैं। ये प्रतीक उनकी वैवाहिक स्थिति को दर्शाते हैं और इन्हें धारण करके करवा माता की विधिवत पूजा की जाती है, जिससे सौभाग्य में वृद्धि होती है।

चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा—

करवाचौथ व्रत का समापन रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर किया जाता है। इस अवसर पर मिट्टी के करवे से चंद्रदेव को जल अर्पित करना आवश्यक माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, मिट्टी का करवा शुद्धता और धरती तत्व का प्रतीक है। चंद्रमा की पूजा के साथ-साथ महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और गणेश जी की भी आराधना करती हैं। साथ ही, करवाचौथ की कथा सुनना भी व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिससे दांपत्य जीवन में सौहार्द और प्रेम बना रहता है।

 

दान का महत्व—

करवाचौथ की पूजा के बाद दान देना भी आवश्यक माना गया है। महिलाएं एक थाली में चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, शीशा, कंघी, रिबन और शगुन का सामान रखकर अपनी विवाहित सास, जेठानी या किसी वरिष्ठ महिला को दान करती हैं। इसे सौभाग्यवर्धक माना जाता है और इससे परिवार में समृद्धि और खुशहाली आती है।

पूजा की दिशा और व्यवस्था—

करवाचौथ की पूजा करते समय दिशा का भी ध्यान रखना चाहिए। व्रती महिलाओं को पूर्व दिशा की ओर मुख करके करवा माता की पूजा करनी चाहिए और करवा माता का मंदिर भी पूर्व दिशा में ही स्थापित करना चाहिए। इससे पूजा का सकारात्मक प्रभाव बढ़ता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।

इस वर्ष के करवाचौथ पर, सुहागिनें पूरी श्रद्धा के साथ अपने पति की दीर्घायु और दांपत्य जीवन की खुशियों के लिए व्रत रखेंगी। इस त्योहार की धार्मिकता और प्रेमपूर्ण भावना इसे भारतीय संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा बनाती है।


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