देश-दुनिया में हम यदा-कदा भूकंप की ख़बरों से दोचार होते ही रहते हैं। देवभूमि उत्तराखंड ने भी कई बार भूकंप की त्रासदियों को झेला है। पिछले 43 साल में उत्तराखंड तीन बहुत बड़े भूकंप झेल चुका है। पिछले 6 महीने में 7 भूकंप के झटके झेल चुके उत्तरकाशी को लेकर भूगर्भ वैज्ञानिक फिर चिंतित हैं और ऐसे में एक बार फिर उत्तराखंड में बड़े भूकंप आने की आशंका से कोई इंकार नहीं कर रहा है।
उत्तराखंड में भूकंप आने का सिलसिला नहीं थम रहा है थोड़े थोड़े अंतराल में लगातार आते भूकंप हमें चेतावनी देते रहे हैं।राज्य को भूकंप के लिहाज से सिस्मिक जोन 4 और 5 में रखा गया है। और इसकी एक ख़ास वजह यह भी है कि प्रदेश में आये दिन भूकंप के झटको को महसूस किया जाता रहा है।
ज्ञात हो कि पिछले 43 साल में उत्तराखंड तीन बहुत बड़े भूकंप झेल चुका है। 1991 में उत्तरकाशी जिले में 6.6 मैग्नीट्यूड के विनाशकारी भूकंप को भला कौन भुला सकता है जिसमे बड़े स्तर पर जान और माल का नुक्सान हुआ था वहीँ 1980 में पिथौरागढ़ जिले के धारचूला में 6.1 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था और 1999 में 6.8 मैग्नीट्यूड के भूकंप ने चमोली जिले को तहस नहस कर दिया था।
राज्य के अति संवेदनशील जोन पांच की बात करें तो इसमें रुद्रप्रयाग (अधिकांश भाग ) बागेश्वर पिथौरागढ़ चमोली उत्तरकाशी जिले आते हैं। जबकि ऊधमसिंहनगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी व अल्मोड़ा जोन चार में हैं और देहरादून व टिहरी दोनों जोन में आते हैं। पिछले रिकॉर्ड भी देखें तो अति संवेदनशील जिलों में ही सबसे अधिक भूकंप रिकॉर्ड किए गए हैं। पिछले रिकॉर्ड के अनुसार करीब नौ झटके साल भर में महसूस किए जा सकते हैं। हालांकि, ये भूकंप काफी मैग्नीट्यूड के होने की वजह से कुछ ख़ास असर नहीं पड़ा है।
थोड़े थोड़े अंतराल के बाद आ रहे छोटे- छोटे भूकंप ने आम जनमानस के साथ-साथ भूगर्भ वैज्ञानिक भी चिंतित नजर आते हैं। यही वजह है वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जिओलॉजी के वैज्ञानिक उत्तरकाशी क्षेत्र में लगातार रिसर्च कर रहे हैं।बड़े भूकंप की आशंका को दखते हुए वैज्ञानिकों ने न सिर्फ उत्तरकाशी क्षेत्र में भूकपंमापी लगाकर अर्थक्वेक को मॉनिटर कर रहे हैं बल्कि जिओ फिजिकल ऑब्जर्विति के तहत भविष्य में बड़े भूकंप की आशंका को लेकर अध्ययन कर रहे हैं।
मीडिया में दी गयी जानकारी में वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जिओलॉजी के डॉ कालाचंद साई बताते हैं कि उत्तरकाशी क्षेत्र में साल 1991 में 6.8 मैग्नीट्यूड का भूकंप आ चुका है। लिहाजा 2007 से लगातार इस क्षेत्र में भूकम्पीय तरंगों की तीव्रता की निगरानी की जा रही है। हालांकि इस क्षेत्र में भूकंप आना एक नेचुरल प्रक्रिया है। क्यूंकि इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट में अभी भी घर्षण जारी है। जिसके चलते सब्सर्फेस में ऊर्जा एकत्र हो रही है। ये ऊर्जा समय समय पर भूकंप के रूप में निकलती रहती है। ऐसे में उत्तरकाशी क्षेत्र में एक बड़े अर्थक्वेक की आशंका है। हालाँकि ये कोई नहीं बता सकता की इस क्षेत्र में भूकंप कब आएगा।
वे बताते हैं कि उत्तरकाशी क्षेत्र में जो सिस्मोमीटर लगाए गए हैं। उसमे भूकंप के झटके महसूस हो रहे हैं। इसके साथ ही अर्थक्वेक जिओलॉजी के तहत सालों पहले आये बड़े भूकंप की भी जानकारियां मिल रही हैं। इसके तहत 1533 में भी इस क्षेत्र में बड़ा भूकंप आया था। लिहाज़ा भविष्य में बड़े भूकंप की आशंका को देखते हुए लगातार रिसर्च की जा रही है।
वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जिओलॉजी द्वारा इसके लिए टिहरी जिले के घुत्तू इलाके में जिओफिजिकल ऑब्जर्वेटरी भी बनायी गयी है। जिसमे भूकंप के आने की आहट से पहले फिनॉमिना और फिजिकल- केमिकल प्रॉपर्टी में होने वाले बदलाव का अध्ययन किया जाता है।
वहीं नेपाल में आए भूकंप का असर उत्तराखंड के कई शहरों में महसूस किया गया। वैज्ञानिक बताते हैं कि धरती के नीचे इंडियन और यूरेशियन प्लेट के आपस में टकराने से काफी ऊर्जा संग्रहित है। छोटे भूकंप आने से जमा ऊर्जा का ह्रास हो जाता है। इससे बड़े भूकंप का खतरा टल जाता है। ऐसे में छह मैग्नीट्यूड तीव्रता का भूकंप किसी बड़ी तबाही को आने से बचा गया है। इस एनर्जी का धीरे-धीरे निकलना बेहतर है, अन्यथा बड़े भूकंप का खतरा पैदा हो जाता है।
भूकंप के आने के कारणों को हम अगर आम भाषा में जाने तो पृथ्वी की सतह पर एक लंबी दरार है। भूकंप भी आमतौर पर इसी फॉल्ट लाइन के बीच में किसी हलचल से आता है। जब प्लेटें आपस में टकराती हैं तो घर्षण की वजह से ऊर्जा बाहर निकलने की कोशिश करती है। इससे होने वाली हलचल से भूकंप आता है।
प्रकृति की इस मार से पूरी तरह से निपटना यूँ तो नामुमकिन सा लगता है परन्तु ऐसा तो किया ही जा सकता है की इस इससे होने वाले जानमाल के नुकसान पर कुछ हद तक काबू पाया जा सके। इस से निपटने के लिए वर्तमान में शहरों और महानगरों में अधिकतर भवन भूकंप तकनीक आधारित कॉलम और बीम की संरचना के आधार पर बनाए जा रहे हैं।
भूकंप आने की स्थिति में आप क्या करें और क्या न करें—
अगर आप घर के अंदर हैं तो जमीन पर लेट जाएं। एक मजबूत टेबल या फर्नीचर के अन्य टुकड़े के नीचे खुद को कवर कर अपना बचाव करें। अगर आपके आस-पास कोई टेबल या डेस्क नहीं है तो अपने चेहरे और सिर को अपनी बाहों से ढक लें और किसी कोने में झुककर बैठ जाएं। भूकंप आने पर आप अपने सिर और चेहरे का बचाव करें। कांच, खिड़कियां, दरवाजे, दीवारें और जो कुछ भी गिर सकता है, उससे दूर रहें। अगर भूकंप के समय आप बिस्तर पर हैं तो बिस्तर पर ही रहें। अपने सिर को तकिये से सुरक्षित कर लें। बिस्तर पर अगर आप किसी गिरने वाली चीज के नीचे लेटे हैं तो वहां से हट जाएं। भूकंप के दौरान दरवाजे से बाहर भागने की कोशिश तभी करें जब वह आपके पास हो। ज्यादातर लोगों को चोटें तब ही लगती हैं जब वह इमारतों के अंदर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे होते हैं।
भूकंप आने पर आपके घर की बिजली जा सकती है या स्प्रिंकलर सिस्टम या फायर अलार्म चालू हो सकते हैं। अगर भूकंप के दौरान आप घर से बाहर हैं तो आप जहां पर हैं, वहां से मूव न करें। मुमकिन हो तो इमारतों, पेड़ों, स्ट्रीट लाइट्स और यूटिलिटी तारों से दूर किसी खुली जगह पर चले जाएं। भूकंप के दौरान सबसे बड़ा खतरा इमारतों से हैं, अधिकांश मौकों पर दीवारों के गिरने, कांच के उड़ने और वस्तुओं के गिरने से चोट लग जाती है। अगर आप चलती गाड़ी में हैं तो सुरक्षा अनुमति मिलते ही रुकें और अपनी गाड़ी में ही बैठे रहें। इमारतों, पेड़ों, ओवरपास और तारों के पास या नीचे रुकने से अपना बचाव करें। भूकंप के झटके रुकने के बाद सावधानी से आगे बढ़ें. सड़कों, पुलों या रैंप से बचाव करें जो भूकंप से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। अगर आप मलबे के नीचे फंस गए हों तो एक रूमाल या कपड़े के साथ अपना मुँह ढक लें। किसी पाइप या दीवार पर टैप करें, जिससे बचाव दल आपको ढूंढ सकें। अगर मौका लगे तो सीटी का इस्तेमाल करें, केवल अंतिम उपाय के रूप में चिल्लाएं, क्योंकि चिल्लाने से आप धूल इन्हेल कर सकते हैं।
भूकंप के बाद पीने के पानी, खाने के सामान और प्राथमिक चिकित्सा उपकरणों का स्टॉक आसानी से मिल सकने वाली जगह पर रखें। अफवाह न फैलाएं और न उन पर भरोसा करें। भूकंप के झटके के बाद हालात की ताजा जानकारी हासिल करने के लिए अपने ट्रांजिस्टर या टेलीविजन को चालू करें। दूसरों की मदद करें और आत्मविश्वास बढ़ाएं। घायल व्यक्तियों की देखभाल करें और जो भी संभव हो उन्हें सहायता प्रदान करें और अस्पताल को सूचना दें। इसके साथ ही और झटकों के लिए तैयार रहें। क्योंकि बाद में और भी झटके आ सकते हैं।