“नॉनवेज दूध” पर भारत-अमेरिका में टकराव: संस्कृति, अर्थव्यवस्था और आस्था के बीच उलझा ट्रेड डील!

Our News, Your Views

“नॉनवेज दूध” पर भारत-अमेरिका में टकराव: संस्कृति, अर्थव्यवस्था और आस्था के बीच उलझा ट्रेड डील!

“नॉनवेज दूध” बनाम भारतीय आस्था: अमेरिका से टकराव या आत्म-संरक्षण?”

रिपोर्ट | The Mountain Stories

लेखक – ओम जोशी

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता (Trade Deal) एक बार फिर विवादों में है। इस बार वजह है – ‘दूध’। लेकिन यह सिर्फ दूध नहीं है – यह उस पवित्रता का प्रतीक है जिसे करोड़ों भारतीय पूजा करते हैं, जिसे बच्चे का पहला आहार माना जाता है, और जिसके बिना भारत में धार्मिक अनुष्ठान अधूरे हैं।

(SOURCE COURTESY – DIGITAL MEDIA)

अमेरिका चाहता है कि भारत उसके डेयरी उत्पादों के लिए बाज़ार खोले। लेकिन भारत की आपत्ति है — उस दूध को लेकर जिसे अमेरिका “सादा पोषण” मानता है, और भारत “नॉनवेज दूध” कहकर खारिज कर रहा है।

नॉनवेज दूध क्या है?

अमेरिका में गायों को बड़े पैमाने पर मांस आधारित चारा (जैसे ब्लड मील, बोन मील, मांस के टुकड़े) खिलाया जाता है, जिससे वे ज्यादा दूध दें। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भले इसमें कुछ हानि न हो, लेकिन भारत के लिए यह स्वीकार्य नहीं। भारत की नजर में, जिस गाय ने मांसाहारी आहार लिया, उसका दूध भी ‘अशुद्ध’ है।

ये सिर्फ गाय नहीं, आस्था है…

भारत में गाय सिर्फ एक जानवर नहीं है — यह मां है। उसका दूध बच्चों को बल देता है, मंदिरों में अभिषेक करता है, और घर-घर में पूजा जाता है। शुद्धता का प्रतीक। ऐसे में उस दूध को स्वीकार करना, जो मांस से उत्पन्न हुआ है — केवल व्यापार नहीं, भारतीय चेतना से समझौता होगा।

कृषि और देहात की रीढ़ भी यही दूध है

भारत आज विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। इसका डेयरी सेक्टर करीब 9 लाख करोड़ का है, और करोड़ों ग्रामीण परिवारों की आजीविका इससे जुड़ी है।

SBI की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी डेयरी उत्पाद भारत में आते हैं तो 15% तक कीमत गिर सकती है — इससे किसानों को हर साल ₹1.03 लाख करोड़ का नुकसान होगा।

यानी मुद्दा सिर्फ संस्कृति नहीं है — यह अर्थव्यवस्था, गांव, किसान और रोज़गार से भी जुड़ा है।

अमेरिका का दबाव बनाम भारत की ‘रेड लाइन’

अमेरिका इसे “गैर-ज़रूरी व्यापार बाधा” बता रहा है और 1 अगस्त 2025 तक ट्रेड डील पर सहमति चाहता है, नहीं तो टैरिफ बढ़ाने की धमकी है। लेकिन भारत ने साफ कहा है — यह एक रेड लाइन है, और इसमें कोई समझौता नहीं हो सकता।

भारत ने एक हल भी सुझाया है — यदि अमेरिका यह प्रमाण दे कि जो दूध भारत भेजा जा रहा है, वो शुद्ध शाकाहारी आहार से तैयार हुआ है, तब बात आगे बढ़ सकती है।

तो क्या भारत झुकेगा?

फिलहाल तो नहीं। भारत ने व्यापार से ऊपर संस्कृति को रखा है। क्योंकि यह सवाल केवल आयात-निर्यात का नहीं, बल्कि हमारे विश्वास, हमारी मिट्टी, हमारे खेत और हमारी पहचान का है।

यह टकराव सिर्फ व्यापार नीति या अंतरराष्ट्रीय रिश्तों का मामला नहीं है। यह उस भारत की आवाज़ है जो ‘गाय को मां मानता है’, जो दूध को अमृत समझता है, और जो अपनी जड़ों से समझौता नहीं करता — चाहे सामने कितना भी बड़ा देश क्यों न हो।

[The Mountain Stories – Our News, Your Views]


Our News, Your Views