उत्तराखंड में जंगल की आग बेकाबू, मुख्यमंत्री धामी की सख्ती के बाद वन विभाग ने मोर्चे पर उतारे अधिकारी

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गर्मी, सर्दी या हो बरसात मौसम के लिहाज से उत्तराखंड राज्य हमेशा से ही आपदा का शिकार रहा है, इन दिनों भी उत्तराखंड राज्य एक ऐसी ही आपदा से गुजर रहा है जिस पर यदि समय से काबू न पाया जा सका तो यह धीरे- धीरे  विकराल रूप लेने लगेंगी। आगजनी के बढ़ते मामलों को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री घटना पर खासी नज़र बनाए हुए हैं और उन्होंने इससे निपटने के लिए धामी ने सख्त रुख अपनाया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वनाग्नि के बढते मामलों पर शख्त रूप अपनाया है, जिसके बाद उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में वनाग्नि को लेकर सचिवालय में एक बड़ी बैठक की गयी।

जिसमे तमाम विभागों के साथ समीक्षा बैठक आयोजित की गई है। बैठक में जहां वन विभाग के मुखिया डिजिटल मध्यम से जुड़े तो वहीं डीजीपी समेत तमाम वरिष्ठ अधिकारी सचिवालय में मौजूद रहे है। बैठक में मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा वनाग्नि के लिए एक्शन प्लान बनाने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही वनाग्नि को लेकर अभी तक क्या कार्रवाई की गई है इस पर भी चर्चा हुई है। अब एक्शन प्लान बनाकर वनाग्नि के निराकरण के लिए काम किया जाएगा।

गौरतलब है कि जंगल की आग अब, आबादी तक  भी पहुँचने लगी है, वहीँ जंगलों की आग की राज्य में अब तक 930 घटनाएं हो चुकी हैं, जिससे 1,196 हेक्टेयर से अधिक जंगल जल चुका है। सबसे अधिक 491 घटनाएं कुमाऊं और 365 घटनाएं गढ़वाल में हुईं, जबकि 74 मामले वन्यजीव क्षेत्र के हैं। बेकाबू हो चुकी आग से अब तक पांच लोगों की मौत और चार लोग झुलस चुके हैं। सरकार का दावा है कि वनाग्नि से अभी तक किसी वन्य जीव के मारे जाने की सूचना नहीं है। इस बीच सरकार जानबूझकर और लापरवाही से आग लगाने के मामले में बेहद सख्त हो गई है। बार-बार आग लगाने वालों पर गैंगस्टर के तहत कार्रवाई होगी। उत्तराखंड लोक व निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम के तहत वन संपदा के नुकसान की भरपाई आग लगाने वालों से होगी।

 

देखा गया है कि हर साल मार्च से जून के बीच जंगलों में आग भयानक रूप लेती है, ज्ञात हो कि गर्म हवाओं में सूखी पत्तियां तेजी से आग पकडती हैं, आग लगने की घटनाओं में कई बार पर्यटकों की लापरवाही, स्थानीय लोगों द्वारा नयी घास उगाने, पेड़ों की अवैध कटान को छुपाने तो अवैध शिकार आदि के लिए शिकारी भी जंगलों में आग लगा देते हैं। राज्य में चीड के पेड़ों की अधिकता और इसकी पत्तियों पिरूल के तेजी से आग पकड़ने के कारण अधिक विकराल रूप लेती है। वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में बड़ते तापमान, जलवायु परिवर्तन को भी अहम् कारण माना जाता है।

इससे जुड़ी अच्छी खबर यह है की मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह ने राज्य में 7- 8 मई तक बारिश की संभावना जताई है जो की 11 मई से और तेज होने लगेगी। इससे जंगल की आग बुझाने में मदद मिलेगी।

 


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