कत्यूर घाटी के संत बम बाबा ब्रह्मलीन: कुमाऊं ने खोया एक महान तपस्वी, समाज ने एक सच्चा मार्गदर्शक

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                                                                                             समर्पण, तपस्या और सेवा से भरा रहा 89 वर्षीय संत का जीवन; उनकी शिक्षाएं सदैव रहेंगी प्रेरणास्रोत

गरुड़/पिथौरागढ़ कुमाऊं की पावन भूमि ने एक और अध्यात्मिक नक्षत्र को खो दिया। कत्यूर घाटी के प्रतिष्ठित संत बम बाबा अब हमारे बीच नहीं रहे। 89 वर्ष की आयु में उनके ब्रह्मलीन होने की खबर से पूरे कुमाऊं क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है। बम बाबा का जाना न केवल एक आध्यात्मिक युग का अंत है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक अपूरणीय क्षति है।

17 वर्ष की उम्र में लिया संन्यास, समर्पित कर दिया जीवन

पिथौरागढ़ जनपद के मूल निवासी बम बाबा ने मात्र 17 वर्ष की आयु में सांसारिक मोह को त्यागकर संन्यास ग्रहण किया। इसके बाद उन्होंने स्वयं को पूरी तरह से अध्यात्म, सेवा और जनकल्याण को समर्पित कर दिया। उनका जीवन एक जीवंत उदाहरण था कि तपस्या और आत्मनिष्ठा से व्यक्ति ईश्वर के निकट जा सकता है।

पैदल पूरी की चारधाम यात्रा, रामेश्वरम तक की पदयात्रा

बम बाबा की आध्यात्मिक साधना और संकल्पशक्ति का उदाहरण उनकी वो यात्रा है, जिसमें उन्होंने सिर्फ 90 दिनों में पैदल चारधाम यात्रा पूरी की। यह उनके अद्वितीय आत्मबल और ईश्वरभक्ति का प्रतीक है। इतना ही नहीं, उन्होंने उत्तराखंड के कत्यूर से लेकर तमिलनाडु के रामेश्वरम तक की भी पदयात्रा की, जो उनकी निष्ठा और तपस्या की पराकाष्ठा को दर्शाता है।

गरुड़ में दो मंदिरों की स्थापना, अध्यात्म का विस्तार

बम बाबा ने गरुड़ क्षेत्र में दो मंदिरों की स्थापना कर स्थानीय समुदाय को धर्म, संस्कृति और अध्यात्म से जोड़ा। ये मंदिर आज भी न केवल श्रद्धा के केंद्र हैं, बल्कि सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक ज्ञान का भी प्रतीक हैं। उनके प्रयासों से कत्यूर घाटी में आध्यात्मिक चेतना का विस्तार हुआ।

जनसामान्य के बीच श्रद्धा का प्रतीक

बम बाबा का जीवन सरलता, सेवा और आत्मसंयम की मिसाल था। आम जनमानस में उनके प्रति गहरी श्रद्धा थी। वे कभी किसी प्रचार या दिखावे में नहीं उलझे, बल्कि चुपचाप समाज के लिए कार्य करते रहे। उनकी निर्मल वाणी और सहज आचरण ने उन्हें जन-जन का प्रिय संत बना दिया।

आने वाली पीढ़ियों के लिए बनी प्रेरणा

बम बाबा का संपूर्ण जीवन एक प्रेरणादायक गाथा है। वे यह सिखाते हैं कि सच्चा अध्यात्म केवल साधना में नहीं, बल्कि समाज सेवा में भी निहित होता है। उनकी शिक्षाएं, तपस्या और कर्म समाज के लिए अमूल्य धरोहर बन चुकी हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देती रहेंगी।


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