आज है उत्तराखंड का लोकपर्व घी संक्रांति, जानिए क्या है इस पर्व की महत्ता और कैसे मनाते हैं इसे

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आज घी संक्रांति है।
उत्तराखंड अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता है। घी संक्रांति, घी त्यार,ओलगिया या घ्यू त्यार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की सिंह संक्रांति के दिन मनाया जाता है। सदियों से उत्तराखंड में पौराणिक रूप से और पारम्परिक रूप से प्रत्येक संक्रांति को लोक पर्व मनाया जाता है। 2023 की घी संक्रांति 17 अगस्त 2023 को यानी आज मनाई जा रही है।

हिंदू धर्म में सूर्य को सबसे महत्वपूर्ण ग्रह माना गया है। सभी नौ ग्रहों के राजा सूर्य हैं और जब भी सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, संक्रांति मनाई जाती है। बताया जा रहा है कि इस बार पंचांग के मुताबिक, 17 अगस्त 2022 को सूर्य का गोचर सिंह राशि में हो गया है। इसलिए आज सिंह संक्रांति यानी घी संक्रांति मनाई जा रही है। मान्यता है कि “अगले जन्म अगर आपने घोंगे की योनी प्राप्त नहीं करनी तो आप इस दिन घी ज़रूर खाएंगे” इसे घ्यू सक्रान्त और ओलिगिया और घी संग्यान भी अलग अलग नामों से भी पुकारा जाता है। वैसे इसकी एक विशेषता यह भी है की घी संक्रांति अच्छी फसलें और स्वास्थ्य की कामना से जुड़ा पर्व है।

शास्त्रों के अनुसार, सूर्य देव जब राशि बदलते हैं तो संक्रांति का पर्व आता है। जब सूर्य मकर राशि में जाए तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। पौराणिक ग्रंथों में सूर्य के बारे में विशेष रूप से वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि सूर्य ऋतुओं का कारक है। सूर्य देव की शक्तियां सात देवियां हैं, जिनके नाम मंदा, मंदाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, मंदोदरी, राक्षस और मिष्चाता हैं ।

आईये जानते हैं इस कैसे मनातें हैं इस सुन्दर और मनमोहक त्यौहार को—

पुरानी मान्यताओं और आयुर्वेद के अनुसार घी संक्रांति के दिन घी के सेवन करने के बहुत लाभ हैं। जहाँ घी संक्रांति के दिन घी का सेवन करने से ग्रहों और अशुभ प्रभावों से रक्षा होती है वहीँ भारत के उत्तराखंड राज्य में इस समय मॉनसून आता है, इसलिए इस लोकपर्व के दिन घी को शरीर में लगाने से बरसात के समय होने वाली बीमारियों से त्वचा सुरक्षित रहती है| बड़े-बुजुर्ग लोग बच्चों को आशीर्वाद देते हुए उनके सिर पर घी लगाते हैं और नवजात बच्चों के तलवो में घी लगाते हुए आशीष वचन जी राये जागी राये बोल कर अपना आशीर्वाद देते हैं। राज्य के कुछ इलाकों में घी, घुटनों और कोहनी में भी लगाया जाता है| ऐसी पुरानी कहावत है कि जो इस दिन घी नहीं खाता उसे अगले जन्म में घोंघा यानी गनेल बनना पड़ता है| इसके पीछे का कारण घी न खाने से ढीला (कमजोर) होने से होता है।

घी संक्रांति के दिन उत्तराखंड के पारम्परिक पकवान जैसे पूरी,अरबी के पत्तों की सब्जी, खीर, पुए, उड़द की दाल से बने बेडू आदि बनाये जाते हैं| घी संक्रांति का लोकपर्व प्रकृति और अच्छे स्वास्थ्य को समर्पित है| इस दिन पूजा पाठ करके अच्छी फसल की कामना करते हैं और साथ में स्वस्थ शरीर के लिए घी एवं पारम्परिक पकवान बनाए जाते हैं।

घी त्यौहार उत्तराखंड के प्रमुख लोक पर्वो में प्रसिद्ध त्यौहार है। प्राचीन काल मे संचार के साधन कम होने के कारण,अपनी संस्कृति अपने लोक त्यौहारों के प्रति इतनी जनजागृति नही थी। हमारे पर्व हमें अपनी संस्कृति एवं प्रकृति से जुड़ने की भी प्रेरणा देते हैं। अपने इन पर्वों की परंपरा से भावी पीढ़ी को जागरूक करना भी हम सबकी जिम्मेदारी है। तो आइए हम सभी पूरे हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मनाते हुए विश्व में हमारी पहचान को स्थापित करें।


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