युवा उत्तराखंड का 24वें वर्ष में प्रवेश, 23 सालों में उत्तराखंड की खट्टी-मिट्ठी उपलब्धियां, पलायन समस्या आज भी जस की तस

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उत्तराखंड ने 09 नवंबर को अपना स्थापना के 23 साल पूरे कर लिए हैं। पूरे प्रदेश में राज्य स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है। राज्य स्थापना दिवस के मौके पर अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। जिसमें कई नेताओं और मंत्रियों ने हिस्सा लिया। इस दौरान राज्य के अलग-अलग जिलों में राज्य आंदोलनकारियों को भी सम्मानित किया गया। राज्य अब अपने 24 वें साल में प्रवेश कर गया है।23 सालों में उत्तराखंड की कई उपलब्धियां हैं, लेकिन बहुत कुछ और भी ऐसा है जो अभी पाना बाकी है। राज्य गठन से लेकर अब तक उत्तराखंड ने कई उतार चढाव का सामना किया है, जहाँ 23 वर्षों से लगातार चलने वाली इस यात्रा में उत्तराखंड ने उपलब्धियों के कई मुकाम हासिल किए गए हैं तो वहीं दर्जनों प्राकृतिक आपदाओं ने विकास की गति को प्रभावित भी किया।2013 में केदारनाथ में आयी आपदा ने तो राज्य की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी थी जिस कारण तत्कालीन केंद्र सरकार ने 7 हजार करोड़ रुपये से अधिक का विशेष आर्थिक पैकेज दिया। इन 23 सालों में राज्य ने काफी कुछ पाया है तो कई त्रासदियों का सामना भी किया। राज्य के सामने आज भी कई तरह की चुनौतियां मुँह बाएं खड़ी हैं जिनसे पार पाने के लिए राज्य सरकार जी तोड़ कोशिशों में जुटी हैं।80 प्रतिशत से अधिक पर्वतीय भूभाग वाला यह क्षेत्र अवस्थापना विकास और मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी अनेकों चुनौतियों से जूझ रहा है। पर्वतीय जिले मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहे हैं। दुरस्त क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में ग्रामीणों को आज भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।वहीं सरकार द्वारा पलायन की रोकथाम के लिए चलाई गई योजनाएं अभी भी पलायन पर पूरी तरह अंकुश नहीं लगा पाई है। राज्य बने हुए 23 वर्ष बीतने पर भी पलायन की समस्या आज भी मौजूद हैं। रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के लिए पृथक राज्य की मांग की गई थी पर स्थिति यह है कि राज्य का युवा रोजगार की मांग को लेकर सड़कों पर उतरा हुआ है।विकास के मामले में पहाड़ और मैदान के बीच की खाई अभी समाप्त भले ही न न हुई हो पर राज्य की अर्थव्यवस्था ने तेजी से विस्तार किया है। नियोजन विभाग के आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2022-23 मे राज्य की अर्थव्यवस्था यानि जीसडीपी का आकार बढ़कर 3.03 लाख करोड़ हुआ है जो कि पिछले वर्ष के मुकाबले बढ़ा है। पिछले वर्ष 2.65 लाख करोड़ था।प्रदेश में एक सख्त भू कानून लागू करने की आवश्यकता है। एनडी तिवारी सरकार के दौरान उत्तराखंड में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए सिडकुल की स्थापना की गई थी। औद्योगिक विकास की वजह से उत्तराखंड देश के औद्योगिक मानचित्र पर स्थापित हो पाया। हालांकि, तिवारी सरकार के बाद औद्योगिक विकास की रफ्तार अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ पाई। धामी सरकार आने के बाद औद्योगिक विकास की रफ्तार में आमूलचूल परिवर्तन की उम्मीद जताई जा रही है। सरकार ग्लोबल इन्वेस्टर समिट के जरिये एक बड़ी योजना पर काम कर रही है।उत्तराखंड बनने के बाद केंद्र और राज्य के सहयोग से बनी सड़कों की वजह से यातायात सुगम हुआ है। सड़कों के विकास में तेजी आई है तो दूरदराज के गांवों तक भी सड़क पहुंची है। वर्तमान में तीस हजार किमी से अधिक सड़कें बन चुकी हैं। केंद्र सरकार के ऑलवेदर रोड प्रोजेक्ट की वजह से चारधाम रूट की सड़कों का कायाकल्प हुआ है। इससे चारधाम यात्रा में श्रदालुओं के साथ स्थानीय लोगों के आवागमन में सफर भी आसान हुआ और इस वर्ष तो यात्रा के पिछले सारे रिकॉर्ड टूटे हैं।उत्तराखंड का हर गांव और हर घर बिजली से रोशन है। बिजली कनेक्शनों की संख्या 27 लाख के पार पहुंच गई है। दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत पावर सप्लाई सिस्टम मजबूत हुआ है। ऊर्जा निगम के दावों के मुताबिक, अब हर घर में बिजली कनेक्शन है।इसे राज्य का दुर्भाग्य कहें या क्या, कि जैसे ही राज्य प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है, मानो इसे किसी की नज़र लग जाती है। कभी प्राकृतिक आपदा और कभी कोविड-19 महामारी के दौरान कोरोना से राज्य की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ है। राज्य की जीडीपी शून्य से नीचे चली गई। राज्य अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर्यटन कारोबार की कमर टूट गई। हालांकि महामारी से उत्तराखंड अब उबर चुका है।उत्तर प्रदेश से पृथक कर बनाए गए उत्तराखंड राज्य ने 23 वर्ष की अवधि में कई मोर्चों पर सफलता की कहानी लिखी है। विशेषकर आर्थिकी में राज्य ने लंबी छलांग लगाई। राज्य स्थापना के पहले वर्ष में मात्र साढ़े चौदह हजार करोड़ की कुल अर्थव्यवस्था अब तीन लाख करोड़ के बड़े आकार को लांघ चुकी है। राज्य सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में उत्तराखंड राष्ट्रीय औसत से कहीं आगे तो है ही, कई बड़े राज्यों को भी चुनौती दे रहा है।राज्य की प्रति व्यक्ति आय में भी इजाफा हुआ है। उत्तराखंड जब बना तो प्रति व्यक्ति आय 13,762 रुपये थी, जो अब 2.32 लाख रुपये के पार पहुंच गई है। विशेष दर्जे और केंद्र से मिलने वाली अधिक सहायता प्रदेश को ज्वलंत समस्याओं से जूझने और नई राह तैयार करने में सहायक सिद्ध हो रही है। इन 23 वर्षों में प्रदेश ने आर्थिक मोर्चे पर काफी तरक्की की है। नीति आयोग की ओर से जारी बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में बहुआयामी गरीबी वर्ष 2016 में 17. 67 प्रतिशत थी जो वर्ष 2021 में घटकर 9.67 प्रतिशत हो गई है।


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