धामी सरकार 2.0 का आज एक साल पूरा हो गया है। यूँ तो एक वर्ष के भीतर किसी भी सरकार और खासतौर पर मुख्यमंत्री के कार्यकाल का अवलोकन नहीं किया जा सकता लेकिन यह बदलते राज्य की एक तस्वीर तो दिखाता ही है। अपने 12 महीने के कार्यकाल में धामी ने बड़े और दूरगामी निर्णय लेकर लंबी लकीर खींचने का सार्थक प्रयास किया है। 2022 में आज ही के दिन धामी ने लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। जहां आज हम मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कार्यशैली जनता की उम्मीदों कितनी खरी उतरी है वहीं हम जानने की कोशिश करेंगे कि उनकी टीम के सदस्य, यानी मंत्रियों का कामकाज धरातल पर कितना दिखाई देता है।
भारतीय जनता पार्टी को पिछले चुनाव में बड़ी जीत मिली थी ऐसे में धामी के सामने जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने और पार्टी के प्रति खोया हुआ विश्वास पैदा करने की भी चुनौती थी। समाज में कई प्रबुद्धजनों का मानना था कि धामी को असल में ‘कांटों का ताज’ मिला है। जिन परिस्थितियों में, जिस माहौल में धामी को राज्य की कमान सौंपी गई है उसमें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच संतुलन साधना एक बड़ी चुनौती थी। युवा धामी के सामने एक बड़ी चुनौती पार्टी के अंदर ही उस वक्त सामने आयी जब वरिष्ठ सहयोगी नेताओं द्वारा ये कहा गया कि कम उम्र के और लगभग अनुभवहीन कार्यकर्ता को शासन की कमान सौंप दी गई है। ऐसे में मुख्यमंत्री के लिए खुद को परिपक्व साबित करना और राज्य जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का बीते वर्ष में एक चैलेंज था।उत्तराखंड में बीजेपी को विपक्ष से भी कड़ी टक्कर मिल रही है। विपक्ष लगातार जनता के मुद्दों को उठाते हुए हमलावर रहा।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शुरू से ही फ्रंट फुट पर खेलते नज़र आएं हैं, भाजपा बड़े बहुमत के साथ पांचवी विधानसभा में चुनाव जीती थी जहां केंद्र ने मुख्यमंत्री पद के लिए एक बार फिर पुष्कर सिंह धामी पर भरोसा जताया वहीँ भाजपा ने टीम धामी के रूप में आठ कैबिनेट मंत्रियों को मैदान में उतारा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शुरू से ही फ्रंट फुट पर खेलते नज़र आएं हैं, धामी ने अपने शुरूआती दौर में सभी मंत्रियों को 100 दिनी रोडमैप तैयार करने को कहा, लेकिन बाद में सशक्त उत्तराखंड की थीम पर विभागवार ऐसे लक्ष्य तय किए गए, जिन्हें वर्ष 2025 तक पूरा करने का संकल्प लिया गया है।
9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए उत्तराखंड में अब तक 10 मुख्यमंत्री बदल चुके हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों को उत्तराखंड में शासन के लिए तक़रीबन 10-10 सालों का वक़्त मिला है जिसमें कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के 3 चेहरे दिए तो भाजपा अब तक 6 मुख्यमंत्री के चेहरे उतार चुकी है धामी सातवें मुख्यमंत्री हैं। मुख्यमंत्री धामी को पहले कार्यकाल में भले ही बेहद कम समय मिला हो, लेकिन तब भी उनका प्रदर्शन बेहतर रहा था, यही कारण भी रहा कि केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें फिर से अवसर दिया।
देखा गया है की पुष्कर सिंह धामी की कार्यशैली अपने पूर्ववर्तियों से कुछ अलग है। भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक व नकल तथा वनंतरा रिसॉर्ट जैसे प्रकरणों ने चुनौती पेश की, लेकिन सरकार सख्त नकल कानून और ऐसे प्रकरणों में उठाए गए कदमों के बूते इससे निपटने में सफल रही। इस एक वर्ष के कालखंड में मुख्यमंत्री धामी ने अनेकों दूरगामी निर्णय लेकर अपनी सूझबूझ का परिचय दिया है और भाजपा के “जो कहा सो किया’ को धरातल पर लाकर दिखाया है।
धामी सरकार का एक साल का कार्यकाल चुनौतियों से निपटने और सख्त फैसले लेने में गुजरा है। फिर चाहे राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए शुरू की गई कसरत हो अथवा जबरन मतांतरण पर रोक के लिए कानून में सख्त बदलाव या फिर भर्ती परीक्षाओं की शुचिता के लिए सख्त नकल रोधी कानून। इसके अलावा राज्याधीन सेवाओं में महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण, राज्य निर्माण आंदोलनकारियों के लिए सरकारी सेवाओं में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण जैसे कई बड़े निर्णय भी सरकार ने लिए हैं। इसके अतिरिक्त केदारनाथ व बद्रीनाथ की तर्ज पर मानसखंड मंदिर माला मिशन के तहत कुमाऊं के पौराणिक व प्राचीन मंदिरों का विकास। वृद्धावस्था, निराश्रित विधवा व दिव्यांग पेंशन में बढ़ोतरी, पति-पत्नी दोनों को पेंशन का लाभ देने का निर्णय। महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष कोष गठित करने का निर्णय लेने सहित कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इनमें भर्ती परीक्षा घोटाला, अंकिता हत्याकांड और जोशीमठ आपदा की चुनौती ने धामी सरकार को सबसे ज्यादा मुश्किल में डाला। लेकिन सरकार सख्त नकल कानून और ऐसे प्रकरणों में उठाए गए कदमों के बूते इससे निपटने में सफल रही।
मुख्यमंत्री का मुख्य सेवक आपके द्वार जनसम्पर्क कार्यक्रम भी जनता को आकर्षित करता दिखाई देता है।खासकर, जिस तरह उन्होंने स्वयं को राजधानी देहरादून में केंद्रित न कर जिलों में प्रवास की शुरुआत की, उससे सरकार आपके द्वार जैसा स्लोगन सार्थक होता दिख रहा है। धामी अक्सर प्रवास के दौरान सुबह-सवेरे या शाम को अनौपचारिक तरीके से गलियों-बाजारों में टहलते और आम जन से बातचीत करते नजर आते हैं, इससे उनकी छवि जन नेता की बन रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि धामी को एक कप्तान के तौर पर बल्लेबाजी करते हुए न केवल अपना विकेट बचाते हुए खूब रन बनाने होंगे वहीं फील्डिंग को भी इस तरह सजाना होगा की विपक्षियों को मात दी जा सके।धामी सरकार ने सशक्त उत्तराखंड का लक्ष्य बनाया है। इस लक्ष्य का पूरा करने के लिए उसने जो नीतियां और योजनाएं तैयार की हैं, उन्हें जमीन पर उतारने की भी सरकार पर बड़ी चुनौती है वहीं धामी के सामने 2024 में होने वाले लोकसभा की चुनाव की पांच सीटों पर भी अच्छा रिज़ल्ट देने की चुनौती रहेगी। ऐसे में देखना होगा कि मुख्यमंत्री धामी जनता का विश्वास हासिल करते हुए एक लंबा रास्ता कैसे तय करते हैं।